Katha: नारद मुनि ने बताया, कौन किसके भाग्य से कमा-खा रहा है

जनश्रुतियों में एक कथा (Katha) काफी प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि मनुष्य पूरा जीवन यूं ही अंहकार में निकाल देता है कि वो अपने भाग्य से कमा खा रहा है जबकि वास्तविकता इससे कोसों दूर होती है। भले की किसी काम में आपकी मेहनत लगी हुई है लेकिन उस काम से मिलने वाले फल में जाने अन्जाने में कई लोगों की हिस्सेदारी होती है। एक की कमाई में सबका हिस्सा होता है। कथा कुछ इस तरह है।

एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है…

नारदमुनि ने कहा – भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा…

नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है…

आदमी बहुत खुश रहने लगा…

उसकी जरूरतें 1 रूपये में पूरी हो जाती थी…

एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगीपूर्ण जीवन (Simple Life) और खुशी देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ…

आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना…

इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को…

मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है…

अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गयी…

उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है…??

नारदमुनि ने कहा – तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई हैं क्या…??

हाँ हुई है…

तो ये तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है…

इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आयेंगे…

एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी…

फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे हैं…

क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ…??

मुनिवर ने कहा- ये तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है…

हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है…

किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता…

लेकिन मनुष्य अहंकार (Ego) करता है कि मैंने बनाया,,,मैंने कमाया,,,

मेरा है,,,

मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वज़ह से हो रहा है…

हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है…

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