कोविड-19 के खिलाफ डीएनए वैक्सीन (DNA Vaccine) विकसित करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बनने के लिये पूरी तरह तैयार है, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने बुधवार 21 जुलाई को ये जानकारी संसद में दी। कोरोना के लिए डीएनए वैक्सीन अहमदाबाद स्थित जायडस कैडिला द्वारा विकसित किया जा रहा है। इसे ZyCoV-D के नाम से जाना जाता है। भारत बायोटेक की कोवैक्सिन की तरह ZyCoV-D पूरी तरह से स्वदेशी भारतीय तकनीक से विकसित है।
इससे पहले जुलाई में कंपनी ने इस वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल के लिये सक्षम प्राधिकरण मंजूरी मांगी था। ZyCoV-D के तीसरे चरण के परीक्षणों के शुरूआती नतीज़ों के मुताबिक ये वैक्सीन 66.6 फीसदी कारगर है। इसका परीक्षण में पूरे देश में 50 अलग जगहों पर 28,000 वॉलिंटियर्स पर किया जा रहा है। ताजातरीन रिपोर्टों के मुताबिक डीएनए वैक्सीन को मंजूरी मिल सकती है और अगस्त 2021 तक इसे बाजार में उतारा जा सकता है।
क्या होती है DNA vaccine?
ZyCoV-D पहली डीएनए-आधारित वैक्सीन है, जो कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रभावी है। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक क्लीनिकल ट्रायल के दौरान किसी भी वॉलिंटियर्स में कोई गंभीर बीमारी या मौत का दस्तावेजी सबूत नहीं मिला है।
Zydus Cadila का ZyCoV-D आनुवंशिक या न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन है। ये टीका फाइजर और मॉडर्न जैसे आरएनए तकनीक वाले टीकों की श्रेणी में आता है। इन्हें थर्ड जेनरेशन वैक्सीन भी कहा जाता है। ये जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार किये जाते है। जहां न्यूक्लिक एसिड (डीएनए) का इस्तेमाल करके इंसानी शरीर में वायरस, बैक्टीरिया और परजीवियों के खिलाफ इम्युनिटी (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया) विकसित की जाती है।
टीकों को विकसित करने की प्रक्रिया के दौरान वायरस की आनुवंशिक जानकारी के हिस्से को शरीर में कोशिकाओं में डाला जाता है, जिसके मानवीय कोशिकाओं की को प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस हमले की पहचान कर लेती है और ज़वाब में प्रतिरक्षा तंत्र तैयार कर लेती है। जिसके बाद शरीर में एंटीबॉडी तैयार होना शुरू हो जाते है। इस पूरी कवायद की जानकारी इंसानी कोशिकाओं या यूं कहे कि जेनेटिक मेमोरी (Genetic Memory) में स्टोर हो जाती है। जिसके बाद वैज्ञानिक इसी जेनेटिक मेमोरी को स्टोर की गयी कोशिकाओं से टीका तैयार कर लेते है। जिनमें वायरस हमले को पहचानने और वक़्त रहते संक्रमण से लड़ने की काबिलियत होती है।
इस्तेमाल में आने वाले ज्यादातर कोविड-19 टीके दो-खुराक वाले है (जॉनसन एंड जॉनसन के सिंगल शॉट वैक्सीन के अलावा), वहीं डीएनए बेस्ड Zydus Cadila के ZyCoV-D की तीन खुराकें लेनी जरूरी होगी। हरेक खुराकों के चार हफ़्तों के बीच लेने की सिफारिश की गयी है। तभी टीकाकरण पूर्ण माना जाता है।
एक और पहलू जो ZyCoV-D वैक्सीन को काफी अलग बनाता है, वो ये है कि इसका इस्तेमाल इंट्राडर्मल इंजेक्शन के रूप में किया जायेगा यानि कि "सुई-मुक्त प्रणाली" कंपनी के मुक्त सुई मुक्त वैक्सीनेशन साइड-इफेक्ट की संभावनाओं को काफी हद तक कम कर देता है।
इसके अलावा ZyCoV-D अपने समकक्ष mRNA टीकों के उल्ट, जिन्हें बहुत ठंडे तापमान पर स्टोर की जरूरत होती है। इसे 2-8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर कम से कम तीन महीनों तक ये वैक्सीन काफी स्टेबलाइज़ रहती है यानि कि इसके भंडारण और परिवहन की प्रक्रिया दूसरे mRNA टीकों के मुकाबले कम जटिल होगी।
कंपनी ने दावा किया है कि, आने वाले वक़्त में वायरस के म्यूटेंड होने के मामलों को देखते हुए ZyCoV-D वैक्सीन आसानी से अनुकूल हो जायेगी और इसकी कारगर क्षमता बरकरार रहेगी। आसान शब्दों में कहें तो इसका असर खुद ही अपना बॉयोलॉजिकल अपग्रेडेशन (Biological Upgradation) कर लेगा। टेस्टिंग के दौरान ZyCoV-D को 12 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सुरक्षित पाया गया है। जायडस कैडिला की योजना एक साल के भीतर 10-12 करोड़ ZyCoV-D टीके की खुराकें बनाने की है।
हालांकि ये कोविड-19 के खिलाफ एकमात्र डीएनए-आधारित वैक्सीन हो सकती है, जिसने किसी समक्ष प्राधिकरण (Competent Authority) के सामने अपनी मौजूदगी दर्ज करवायी है। कुछ दूसरी कंपनियां भी इसे बनाने की कोशिश कर रही हैं। इसमें जापानी बायोटेक फर्म AnGes शामिल है, जो ओसाका विश्वविद्यालय के साथ अमेरिकी कंपनी इनोवियो के सहयोग से काम कर रही है।