रॉफेल डील के बारे में हम सभी ये जानते हैं कि भारत में उसे लेकर किस तरह कमीशनबाजी का खेल खेला गया। इसमें लाभार्थी थे मोदी सरकार, अनिल अंबानी जैसे दिवालिया होने की कगार पर खड़े उद्योगपति ओर सुषेण गुप्ता जैसे आर्म्स डीलर, जिन्होंने रॉफेल को तिगुनी कीमत में बिकवाया लेकिन हम ये नहीं जानते कि फ्रांस सरकार ने इस सौदे के बदले में क्या पाया ?
आपको क्या लगता है कि फ्रांस की सरकार इतनी बेवकूफ थी जो मोदी और अनिल अंबानी की हर बात मानती जा रही थी? उसे इस सौदे में कुछ नही मिला? दरअसल यही है इस रॉफेल डील के पीछे छिपी हुई अनटोल्ड स्टोरी।
हाल ही में पैगासस खुलासे में एक व्यक्ति का नाम और आया और वो थे फ्रांस की एनर्जी कम्पनी ईडीएफ की भारतीय शाखा के निदेशक और कंट्री हेड हरमनजीत नेगी। इनका फोन नंबर भी लीक के आंकड़े में शामिल है।
अब आप ये समझिए कि ये कम्पनी करती क्या है। EDF का फुलफोर्म है ‘इलेक्ट्रिकिट डी फ्रांस’ ये न्यूक्लियर एनर्जी से जुड़ी कम्पनी है। दरअसल फ्रांस में 75 फ़ीसद बिजली, न्यूक्लियर एनर्जी से ही आती है और फ्रांसीसी कम्पनियां पूरी दुनिया में परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Nuclear Power Plants) लगाने का काम कर रही है।
अप्रैल 2015 में पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान, नया राफेल सौदा वजूद में आया लेकिन एक और बड़ा सौदा हुआ जिसके बारें मे लोग ठीक से नहीं जानते। पीएम मोदी की इसी यात्रा के दौरान फ़्रांस की एक बड़ी न्यूक्लियर एनर्जी कम्पनी अरेवा ने भारत में बनने वाले दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र जैतापुर परियोजना के लिये अपने भारतीय भागीदारों के साथ दो समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
जैसे रॉफेल को बनाने वाली दसॉल्ट फ्रांस में बेहद मुश्किल दौर में थी। ऐसे ही मार्च 2015 में ही साफ हो गया था कि अरेवा कम्पनी भी गहरे संकट में है। उसे साल 2014 में 5.38 बिलियन अमरीकी डालर का रिकॉर्ड घाटा हुआ था।
अब यहाँ EDF की एंट्री होती है। जैतापुर परमाणु संयंत्र समझौते के मूल प्रमोटर अरेवा को दिवालिया होने से बचाने के लिए 2017 में एक अन्य फ्रांसीसी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी इलेक्ट्रिकाइट डी फ्रांस (ईडीएफ) द्वारा अरेवा का अधिग्रहण कर लिया ओर मोदी सरकार की इच्छानुसार भारत के परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) ने बिना कोई समीक्षा किये अरेवा के साथ उसी समझौते को EDF के साथ नवीनीकृत कर लिया।
मोदी सरकार अगर चाहती तो वो समझौते से पीछे हट सकती थी या अपनी शर्तों को मनवा भी सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया मोदी सरकार ने जैतपुरा की परियोजना को मेक इन इंडिया" परियोजना घोषित कर दिया था और उसमें ऐसी भारतीय कंपनियों को कांट्रेक्ट दिलवाये गये जिन्हें परमाणु क्षेत्र में काम करने का बिल्कुल भी पूर्व अनुभव नहीं था।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी में बनने वाला जैतपुरा परमाणु प्लांट मूल रूप से UPA सरकार द्वारा बनायी गयी परियोजना थी लेकिन जब साल 2011 में जापान में आयी सुनामी की वजह से जब फुकुशिमा रिएक्टर्स को तबाही देखनी पड़ी तो इस प्रोजेक्ट को वहीं रोक दिया गया। तब वहां स्थानीय रहवासियों ने इसका हिंसक विरोध भी किया गया था लेकिन पीएम मोदी को फ्रांस सरकार को रॉफेल डील के बदले कोई न कोई रिटर्न गिफ्ट (Return Gift) तो देना ही था पर ये रिटर्न गिफ्ट बहुत महंगा था
क्या आप अंदाजा लगा सकते है कि इस प्रोजेक्ट की लागत कितनी है? इसकी निर्माण लागत है ₹1.12 लाख करोड़ रुपये (US$16.35 बिलियन) ) जबकि रॉफेल डील की कुल रकम 59 हजार करोड़ रुपये ही है यानि लगभग दुगुना।
बनने के बाद जैतापुर परमाणु परियोजना विश्व में सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा जिसमे 1650 मेगावाट के छह रिएक्टर होंगे जिसकी कुल क्षमता 9600 मेगावाट होगी।
खैर, सौदा तो किसी न किसी से करना ही था लेकिन ये अनटोल्ड स्टोरी यहाँ खत्म नहीं होती ।
दरअसल जैतपुरा परमाणु प्लांट परमाणु संयंत्र से जुड़ी थर्ड जेनरेशन की ईपीआर तकनीक से बनाया जा रहा है, जो EDF के पास ही है और इसे उन्नत सुरक्षा सुविधाओं के साथ सबसे उन्नत और ऊर्जा कुशल माना जाता है। लेकिन ये भी पूरा सच नही है
वर्तमान में केवल चीन के Taishan परमाणु संयंत्र ही एकमात्र ऐसी साइट है जहाँ EPR डिज़ाइन रिएक्टर ऑप्रेशनल हैं, और वहां पिछले महीने संभावित "रेडियोएक्टिव विकिरण के रिसाव" के बारे में सीएनएन ने एक स्टोरी की थी जिसके बारे में भारतीय मीडिया में भी खूब हल्ला मचाया गया था।
भारतीय मीडिया चीन के ताइशेंन परमाणु संयंत्र में हुई संभावित दुर्घटना को रूस के चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र की घटना से जोड़कर देख रहा है लेकिन भारत का बिका हुआ मीडिया यह नहीं बता रहा है कि इस परमाणु संयंत्र के निर्माण में फ्रांसीसी पावर ग्रुप ईडीएफ की लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है ओर उसी कम्पनी को भारत मे बनने वाले दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र में भी मोदी सरकार ने ठेका दिया है और इसमें बनाये जाने वाले ईपीआर डिजाइन के रिएक्टर भी ताइशन के ही समान हैं। जब वहां दुर्घटना हो सकती है तो क्या भारत मे दुर्घटना नहीं हो सकती ?
एक बात और जान लीजिये कि जैतापुर परियोजना के कांट्रेक्ट में ईडीएफ को ईपीआर डिजाइन रिएक्टर और तकनीकी जानकारी प्रदान करने तक सीमित रखा गया है, जो इस बात के संकेत है कि ये फ्रांसीसी कम्पनी दुर्घटना की स्थिति में किसी भी दायित्व से मुक्त होगी।
2015 में ही परमाणु दुर्घटनाओं के मामलों में नुकसान के लिए "देयता" और "मुआवजे" से संबंधित परमाणु क्षति के लिये पूरक मुआवजे (सीएससी) पर एक अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन हुआ था। इस कन्वेंशन का मसकद वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं को परमाणु दुर्घटनाओं की हालातों में नुकसान के लिये दायित्व से छूट देना है।
भारत की मोदी सरकार 2016 में परमाणु क्षति के लिये पूरक मुआवजे (सीएससी) पर कन्वेंशन की पुष्टि कर चुकी है यानि अब लगभग ये साफ है कि ये शर्त मानी जा चुकी है कि फ्रांसीसी कंपनी EDF की तकनीक और सलाह से बनाये जाने वाले EPR रिएक्टर में कोई दुर्घटना होती है तो फ्रांस की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
भारत मे रत्नागिरी में इस परमाणु संयंत्र के लिये जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है। इसमें सिंचित भूमि को बंजर बताया गया है। ये परमाणु परियोजना स्थानीय किसानों, मछुआरों, बागवानों, कृषि श्रमिकों और मौसमी प्रवासी श्रमिकों सहित हजारों लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगी। जो ट्रॉलर और मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर काम करते हैं। ये परियोजना कोंकण क्षेत्र से लग रही है, जो दुनिया के "जैव विविधता हॉटस्पॉट" में से एक है। वहाँ अत्यधिक उपजाऊ भूमि है जो अनाज, बाजरा, जड़ी-बूटियों, औषधीय और फूलों के पौधों की बहुतायत पैदावार करती है।
यहां दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाया जा रहा है और ईश्वर न करे कि यहाँ भोपाल गैस कांड या रूस के चेर्नोबिल जैसी कोई दुर्घटना घटती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?
यह थी रॉफेल डील के पीछे छिपी हुई अनटोल्ड स्टोरी जिसके बारे में हमारा बिका हुआ मीडिया बिल्कुल खामोश है।