न्यूज डेस्क (निकुंजा वत्स): कोविड-19 महामारी के मद्देनजर उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) ने मुहर्रम के दौरान सभी धार्मिक जुलूसों पर प्रतिबंध (Ban on Muharram Procession) लगा दिया। हालांकि मौलवियों ने सर्कुलर में ‘फेस्टिवल’ शब्द के इस्तेमाल पर सवाल उठाये। मौलवियों ने मुहर्रम के साथ ‘त्यौहार’ शब्द का बार-बार इस्तेमाल करने पर निराशा ज़ाहिर की है। उत्तर प्रदेश के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को भेजे गए पत्र में, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) मुकुल गोयल ने निर्देश दिया कि मुहर्रम को कोरोना प्रोटोकॉल के तहत मनाया जाना चाहिये।
डीजीपी ने मौजूदा स्थिति को ‘बेहद संवेदनशील’ बताते हुए एसपी को उन इलाकों का दौरा करने को कहा जहां मुहर्रम के दौरान घटनायें हुई हैं और वहां हालात सामान्य बनाये रखने के लिए खास एहितयात बरतने के निर्देश दिये। अखिल भारतीय शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिये आज शाम एक बैठक बुलाई है। मौलाना कल्बे नूरी ने आईएएनएस के हवाले से कहा कि, “दिशानिर्देश अस्वीकार्य हैं क्योंकि ये शांतिप्रिय शियाओं को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।”
गोयल ने आदेश में कहा कि 10-19 अगस्त से 10 दिनों के दौरान किसी भी जुलूस (ताज़िया) को निकालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब मुहर्रम मनाया जायेगा और कोरोना प्रोटोकॉल (Corona Protocol) का सही ढंग से पालन करने के लिये मौलवियों को इस मुहिम में जोड़ा जाना चाहिये। मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि गोयल के साथ संवाद तभी संभव होगा जब दस्तावेज़ वापस ले लिया जायेगा।
मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि, भाषा निंदनीय (language reprehensible) है हमने मुहर्रम समितियों से पुलिस और प्रशासन द्वारा बुलायी गयी बैठकों का बहिष्कार करने को कहा है। शिया मरकज़ी चंद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि जिस व्यक्ति ने दस्तावेज़ का मसौदा तैयार किया है, वो साफ तौर से शांति भंग करने की साज़िश कर रहा है।
मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि, डीजीपी को पता होना चाहिये कि मुहर्रम निश्चित रूप से 'त्यौहार' नहीं है, बल्कि शोक का समय है। जारी दिशानिर्देश मुस्लिम समुदाय (Muslim community) के प्रति राज्य सरकार की संवेदनहीनता को दिखाते हैं।