Katha: श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृंदावन में एक ऐसा मंदिर विद्यमान है, जहां कृष्ण की काली रूप में पूजा होती है। उन्हें काली देवी कहा जाता है। ये भी मान्यता है कि जब राधा का विवाह अयंग नामक गोप के साथ होना तय हुआ था तब व्याकुल होकर राधा, ‘कृष्ण-कृष्ण’ पुकारने लगी थीं। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें काली रूप में दर्शन देकर उनके दु:ख को दूर किया था। उसी दिन से श्रीकृष्ण की काली के रूप में पूजा होती है।।
कृष्ण यहां अपने भक्तों को कृष्ण काली रूप में ही दर्शन देते हैं। हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में देवी के दर्शन को आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण काली का रूप रखकर यमुना तट के केशीघाट (Keshi Ghat) पर दर्शन दिए थे, तभी से इस पवित्र स्थान को कृष्ण काली पीठ नाम दिया गया है। सती खंड से उत्पन्न पीठों में शामिल श्रीकृष्ण काली पीठ प्राचीन सिद्ध स्थली है। 500 साल पहले जब वृंदावन में प्रकाश हुआ, तो पीठ का प्रकाश भी चैतन्य महाप्रभु (Chaitanya Mahaprabhu) के अनुयायियों ने किया।
कृष्ण काली स्त्रोत के अनुसार श्रीराधाजी को प्रसन्न करने के लिए भगवान कृष्ण ने काली का रूप धारण किया। मां कृष्ण काली का पांच फीट लंबा दिव्य ग्रह विग्रह है, जिनका मुखारबिंद और चरण श्रीकृष्ण जैसे हैं। लंबी जिव्हा, काली में परिवर्तित हुए कृष्ण की चतुर्भुजा खड़ग बनी वंशी और मुंडमाला में तब्दील हुई बनमाला के दर्शन आज भी हो रहे हैं।
पुराणों में उल्लेख है कि जब राधा का विवाह अयंग नामक गोप के साथ होना तय हुआ था तब राधा व्याकुल होकर कृष्ण कृष्ण पुकारने लगी। तभी कृष्ण ने उन्हें काली रूप में दर्शन देकर उनके दुख को दूर किया था। उसी दिन से कृष्ण की काली रूप में पूजा की जाती है। वृंदावन के गोपीनाथ बाजार (Gopinath Bazaar of Vrindavan) में कृष्ण काली देवी का मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि कृष्णत्व कालिका, अर्थात कृष्ण ही काली है और काली ही कृष्ण हैं।
देवी पुराण (Devi Purana) के अनुसार एक बार माता पार्वती और भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर विहार कर रहे थे। उस वक्त भोलेबाबा माता पार्वती के रूप को देखकर काफी मोहित हो गये उन्होंने माता पार्वती से अजब-सी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने पार्वती मईया से कहा कि वे चाहते हैं कि एक बार पृथ्वीलोक में माता पार्वती पुरुषरूप में और महादेव स्त्रीरूप में अवतरित हों और दोनों दुबारा प्रेम करें।
महादेव की ये बात सुनकर माता पार्वती ने उनकी इच्छा पूरी करने की बात कही। उसी समय पृथ्वीलोक पर असुर राजाओं का साम्राज्य फैला था, जिससे चिंतित होकर ब्रह्मा और सभी देवतागण भगवान शिव और पार्वती मईया के पास आये और मदद मांगने लगे। तब माता पार्वती के मन में एक युक्ति सूझी और उन्होंने कहा कि वे नारीरूप में असुर राजाओं का वध करने में असमर्थ हैं और उन्होंने काली के रूप में उन सभी राजाओं को अभयदान दिया हुआ है। इसलिये वो अबकी बार वासुदेव और देवकी के 8वें पुत्र के रूप में जन्म लेंगी और कंस का संहार करेंगी। साथ ही उनकी सहायता के लिये भगवान विष्णु पांडु पुत्र अर्जुन के रूप में जन्म लेकर कौरव सेना का नाश करेंगे।
वहीं महादेव इच्छा पूरा करने के लिये वृषभानु पुत्री राधारानी (Radharani) के रूप में अवतरित होंगे। भगवान ब्रह्मा ने उनकी बात मान ली और द्वापरयुग में मां काली श्रीकृष्ण बनीं और राधारानी महादेव बने उन्होंने कृष्ण-राधा बनकर कई रासलीलायें भी की और भगवान शिव की इच्छा भी पूरी हो गयी।
देवी पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के नहीं बल्कि मां काली के अवतार थे, ब्रजरानी राधा देवी लक्ष्मी का स्वरूप नहीं अपितु महादेव का अवतार थीं। देवी पुराण के अनुसार भगवान महादेव वृषभानु पुत्री राधा के रूप में जन्मे। साथ ही श्रीकृष्ण की 8 पटरानियां रुक्मिणी, सत्यभामा आदि भी महादेव का ही अंश थीं। पार्वती की जया-विजया नामक सखियां श्रीदाम और वसुदाम नामक गोप के रूप अवतरित हुए। देवी पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने बलराम और अर्जुन के रूप में अवतार लिया। पांडव जब वनवास के दौरान कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shaktipeeth) पहुंचे तो वहां उन्होंने तप किया। इससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हुईं और उन्होंने पांडवों से कहा कि मैं श्रीकृष्ण के रूप में तुम्हारी सहायता करूंगी तथा कौरवों का विनाश करूंगी।