Naga Panchami: जाने नागपंचमी के मंगल मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि और कथा के बारे में

Naga Panchami: इसे सनातन धर्म की महानता कहिये या फिर सनातन धर्म की सभी जीवों के प्रति दया भावना, इस धर्म में लगभग हर एक जीव को उचित स्थान प्राप्त है, हर जीव पूजनीय है। सनातन धर्म में साँपों का विशेष स्थान है। खास कर के पुराणों में सांप का जिक्र कई जगहों पर मिलता है। दुनिया के सभी धर्मों में शायद सनातन धर्म ही एक मात्र ऐसा धर्म भी है जहां एक विशेष दिन खास कर के साँपों के समर्पित भी है। इस पर्व को नाग पंचमी के नाम से जाना जाता है।

नाग पंचमी का मुहूर्त

प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सावन महीने की पंचमी तिथि 12 अगस्त 2021 को गुरुवार की दोपहर 03 बजकर 24 मिनट से शुरू हो जायेगी और 13 अगस्त 2021 को शुक्रवार की दोपहर 01 बजकर 42 मिनट पर इसका समापन हो जायेगा। इस तरह से नाग पंचमी का पर्व साल 2021 में 13 अगस्त को शुक्रवार के दिन देश भर में मनाया जायेगा।

नाग पंचमी पूजन मुहूर्त : 13 अगस्त 2021 को सुबह 05 बजकर 48 मिनट से 08 बजकर 27 मिनट तक

अवधि : 02 घंटे 39 मिनट

नाग पंचमी का महत्व

सर्प की छवि आम लोगों के बीच हमेशा से बुरी रही है, लेकिन सनातन धर्म में सर्प को पूजनीय माना गया है। सृष्टि के संचालक और पालनकर्ता भगवान श्री हरि विष्णु भी शेषनाग (Sheshnag) पर ही विराजमान हैं जो कि सर्प का ही अवतार हैं। सर्प का जिक्र विष्णु पुराण में भी मिलता है जहां शेषनाग की चर्चा है। वहीं शिव पुराण में भी वासुकि नामक सर्प की चर्चा है, जिसे भगवान शिव गले में धारण करते हैं। यहाँ तक कि भगवद्गीता (Bhagavad Gita) में नागों के नौ प्रकार का जिक्र है जिनकी पूजा करने को कहा गया है।

श्लोक:

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।

शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ।।  

अर्थात : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं। इससे सर्प भय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती।

इसके अलावा, नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ अन्य सभी जीवों के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए, उनके संवर्धन के लिए और साथ ही साथ उनके संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरणा देता है। प्रमुख नागों का उल्लेख देवी भागवत (Devi Bhagwat) में किया गया है। कहा जाता है कि पुराने समय में ऋषि-मुनियों ने नागों की पूजा इत्यादि करने के लिए अनेकों व्रत-पूजन का विधान बताया है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और फिर उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है।

मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन जो भी जातक नाग देवता के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा व रुद्राभिषेक करते हैं, उसके जीवन से कालसर्प दोष खत्म होता है और साथ ही साथ राहु और केतु की अशुभता भी दूर होती है।

इस दिन सर्पों को स्नान कराने, व उसकी पूजा करने से जातकों को अक्षय यानी कि कभी न खत्म होने वाले पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन नागों की पूजा करने वाले जातकों के जीवन से सर्प-दंश (Snakebite) का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर यदि सर्प का चित्र बनाया जाये तो उस घर पर नाग देवता (Naag Devta) की कृपा होती है और उस घर के सदस्यों के सारे दुख दूर हो जाते हैं।

नाग पंचमी का ज्योतिषीय महत्व

• नाग पंचमी का त्यौहार नागों की पूजा का दिन माना जाता है। ये श्रावण मास में मनाया जाता है जो कि भगवान शंकर का प्रिया महीना है और शंकर जी के गले में नाग का वास होता है इसलिए विशेष रूप से नागों की पूजा स्थित प्रभावशाली होती है।

• ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष नाग दोष या शनि राहु शापित दोष होता है उस की शांति के लिए नाग पंचमी का दिन सर्वाधिक उपयुक्त होता है। इस दिन रुद्राभिषेक (Rudrabhishek) कराने और भगवान शिव की पूजा करने तथा उपरोक्त दोषों की शांति कराने से लाभ मिलता है।

• यदि कुंडली में राहु केतु की दशा चल रही है तो भी नाग पंचमी की पूजा से लाभ मिलता है।

• जिन लोगों का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में होता है उन्हें नाग पंचमी की पूजा विशेष फलदायी होती है।

• यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव पीड़ित हो या संतान संबंधित समस्या हो अथवा संतान के भाव में सर्प दोष निर्मित हो रहा हो तो नाग पंचमी  के दिन नागों की पूजा करनी चाहिए।

नाग पंचमी पूजन विधि

• नाग पंचमी में विशेषतः आठ नागों यानी कि अनंत, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख की पूजा की जाती है।

• नाग पंचमी से एक दिन पहले यानि कि चतुर्थी तिथि को सिर्फ एक बार भोजन करें।

• इसके बाद नाग पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठ जाएँ और स्नान कर के साफ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें।

• नाग पंचमी के दिन अपने घर के दरवाज़े के दोनों तरफ गोबर से सांप बनाएं।

• इस सांप/नाग को दही, दूर्वा, गंध, कुशा, अक्षत, फूल, मोदक और मालपुआ आदि समर्पित करें।

• इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और व्रत करें, ऐसा करने से घर में साँपों का भय नहीं रहता है। (हालाँकि अगर ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन नहीं करा सकते हैं तो, उनके नाम से दान-दक्षिणा आदि निकाल दें और फिर उसे किसी मंदिर में दान कर दें)

• इसके अलावा इस दिन नागों को दूध से स्नान कराने, उनकी पूजा करने से भी सांप के डर से मुक्ति मिलती है।

• नागों की पूजा में हल्दी का उपयोग अवश्य किया जाना चाहिए,परन्तु चावल निषेध है।

• इसके बाद नाग देवता को हल्दी, लाल सिंदूर, चावल और फूल अर्पित कर उनकी पूजा करें।

• मुमकिन हो तो किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा दें।

• इस दिन की पूजा में इस मन्त्र का जाप अवश्य करें,

 ‘अनन्तं वासकिं शेषं पद्मकम्बलमेव च।तथा कर्कोटकं नागं नागमश्वतरं तथा।। धृतराष्ट्रं: शंखपालं कालाख्यं तक्षकं तथा। पिंगलञ्च महानागं प्रणमामि मुहुर्मुरिति।।’

• मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के दिन लोहे की कड़ाही में कोई भी चीज़ बनाना वर्जित माना गया है।

• इसके अलावा इस दिन नैवेद्यार्थ भक्ति द्वारा गेहूं और दूध का पायस बनाकर भुना चना, धान का लावा, भुना हुआ जौ, नागों को दें।

नाग पंचमी की कथा

प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। ये देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? ये बेचारा निरपराध है।' ये सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा।

तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। ये कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।

उसे दूसरे दिन बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वो बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वो बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

कुछ दिन व्यतीत होने पर वो सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वो उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे ये बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। ये देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गयी। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिये। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने ये वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। ये देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वो राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वो उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।

छोटी बहू को ये बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जायें और जब वो मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाये। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। ये देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

ये देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तूने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए, ये हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। ये सुनकर राजा ने वो सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।

ये देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वो अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। ये सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि ये धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। ये सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

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