Soul & Body: जानें क्या होता है, जब आत्मा छोड़ती है शरीर

आत्मा (Soul) जब शरीर (Body) छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है। ऐसे में वो स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट को झेला होता है।

अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है। उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है, इसलिये शरीर के पाँच प्राण एक ‘धनंजय प्राण’ को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरम्भ कर देते हैं।

ये प्राण, आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिये सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं। जोकि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है। धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म-शरीर (Subtle Body) में प्रवेश कर जाती है।

बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते है कि व्यक्ति को पता चल जाता है। उसे बेचैनी होने लगती है, घबराहट होने लगती है। सारा शरीर फटने लगता है, खून की गति धीमी होने लगती है। सांस उखड़ने लगती है। बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं।

अर्थात अब चेतना लुप्त (Consciousness lost) होने लगती है और मूर्च्छा आने लगती है। चैतन्य ही आत्मा के होने का संकेत है और जब आत्मा ही शरीर छोड़ने को तैयार है तो चेतना को तो जाना ही है और वो मूर्छित होने लगता है। बुद्धि समाप्त हो जाती है और किसी अन्जाने लोक में प्रवेश की अनुभूति होने लगती है-ये चौथा आयाम होता है।

फिर मूर्च्छा आ जाती है और आत्मा एक झटके से किसी भी खुली हुई इंद्री से बाहर निकल जाती है। इसी समय चेहरा विकृत हो जाता है। यही आत्मा के शरीर छोड़ देने का मुख्य चिन्ह होता है। शरीर छोड़ने से पहले केवल कुछ पलों के लिये आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को शत-प्रतिशत सजीव करती है ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध ना रहे और फिर उसी समय आत्मा निकल जाती है और शरीर खाली मकान की तरह निर्जीव रह जाता है।

इससे पहले घर के आसपास कुत्ते-बिल्ली के रोने की आवाजें आती हैं। इन पशुओं की आँखे अत्याधिक चमकीली होती है। जिससे ये रात के अँधेरे में तो क्या सूक्ष्म-शरीर धारी आत्माओं को भी देख लेते हैं। जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है तो उसके अपने सगे-संबंधी जो मृतात्माओं के तौर पर होते है। उसे लेने आते है और व्यक्ति उन्हें यमदूत (Messenger Of Death) समझता है और कुत्ते-बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते है और अन्जान होने की वजह से उन्हें देखकर रोते है और कभी-कभी भौंकते भी हैं।

शरीर के पाँच प्रकार के प्राण बाहर निकलकर उसी तरह सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं। जैसे गर्भ में स्थूल-शरीर का निर्माण क्रम से होता है।सूक्ष्म शरीर का निर्माण होते ही आत्मा अपने मूल वाहक धनंजय प्राण के द्वारा बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है। आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है उसे खोलती, तोड़ती हुई निकलती है। जो लोग भयंकर पापी होते है उनकी आत्मा मूत्र या मल-मार्ग से निकलती है। जो पापी भी है और पुण्यात्मा भी है उनकी आत्मा मुख से निकलती है। जो पापी कम और पुण्यात्मा अधिक है उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है और जो पूर्ण धर्मनिष्ठ हैं, पुण्यात्मा और योगी पुरुष है उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र (Brahmarandhra) से निकलती है।

अब शरीर से बाहर सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हुआ रहता है लेकिन ये सभी का नहीं हुआ रहता। जो लोग अपने जीवन में ही मोहमाया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष है। उन्ही के लिये तुरंत सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हो पाता है। अन्यथा जो लोग मोहमाया से ग्रस्त है परंतु बुद्धिमान है ज्ञान-विज्ञान से अथवा पांडित्य से युक्त है। ऐसे लोगों के लिये दस दिनों में सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है।

हिंदु धर्मशास्त्र (Hindu theology) में दस गात्र का श्राद्ध और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसीलिये है कि दस दिनों में शरीर के दस अंगों का निर्माण इस विधान से पूर्ण हो जाये और आत्मा को सूक्ष्म-शरीर मिल जाये। ऐसे में जब तक दस गात्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता और सूक्ष्म-शरीर तैयार नहीं हो जाता आत्मा, प्रेत-शरीर में निवास करती है। अगर किसी कारण वश ऐसा नहीं हो पाता है तो आत्मा प्रेत-योनि में भटकती रहती है।

एक और बात आत्मा के शरीर छोड़ते समय व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है। शरीर से प्राण निकलते समय कण्ठ सूखने लगता है। हृदय सूखता जाता है और इससे नाभि जलने लगती है लेकिन कण्ठ अवरूद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता और ऐसी ही स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है। प्यास अधूरी रह जाती है। इसलिये अंतिम समय में मुख में 'गंगा-जल' डालने का विधान है।

इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है शमशान का 'पीपल'। यहाँ आत्मा के लिये 'यमघंट' बंधा होता है। जिसमे पानी होता है। यहाँ प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती है, जो उसके लिये अमृत तुल्य होता है। इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है।

ये सब हिन्दू धर्म शास्त्रों में विधान है कि मृतक के लिये ये सब करना होता है ताकि उसकी आत्मा को शान्ति मिले। अगर किसी कारण वश मृतक का दस गात्र का श्राद्ध ना हो सके और उसके लिये पीपल पर यमघंट भी ना बाँधा जा सके तो उसकी आत्मा प्रेत-योनि में चली जायेगी और फिर कब वहां से उसकी मुक्ति होगी कहना कठिन होगा।

हां कुछ उपाय अवश्य है पहला ये कि किसी के देहावसान होने के समय से लेकर तेरह दिन तक निरन्तर भगवान के नामों का उच्च स्वर में जप अथवा कीर्तन किया जाये और जो संस्कार बताये गये हैं उनका पालन करने से मृतक भूत प्रेत की योनि, नरक आदि में जाने से बच जायेगा लेकिन ये करेगा कोन ?

ये संस्कारित परिजन, सन्तान, नातेदार ही कर सकते हैं अन्यथा आजकल अनेक लोग केवल औपचारिकता निभाकर केवल दिखावा ही अधिक करते हैं। दूसरा उपाय कि मरने वाला व्यक्ति स्वयं भजनानंदी हो भगवान का भक्त हो और अंतिम समय तक यथासंभव हरि स्मरण में रत रहा हो।

तीसरा भगवान के धामों में देह त्यागी हो अथवा दाह संस्कार काशी, वृंदावन या चारों धामों में से किसी में किया गया हो। स्वयं विचार करना चाहिए कि हम दूसरों के भरोसे रहें या अपना हित स्वयं साधें।

जीवन बहुत अनमोल है, इसको व्यर्थ मत गंवाओ। एक एक पल को सार्थक करो हरिनाम का नित्य आश्रय लो। मन के दायरे से बाहर निकल कर सचेत होकर जीवन को जिओ, ना कि मन के अधीन होकर। ये मानुष जन्म बार बार नहीं मिलता।

जीवन का एक एक पल जो जीवन का गुजर रहा है वो फिर वापिस नही मिलेगा। इसमें जितना अधिक हो भगवान का स्मरण जप करते रहें, हर पल जो भी कर्म करो बहुत सोच कर करो। क्यूंकि कर्म परछाईं की तरह मनुष्य के साथ रहते है। इसलिए सदा शुभ कर्मों की शीतल छाया में रहो। वैसे भी कर्मों की ध्वनि शब्दों की ध्वनि से अधिक ऊँची होती है, अतः सदा कर्म सोच विचार कर करो।

जिस तरह धनुष में से तीर के चल जाने के बाद वापिस नहीं आता, इसी तरह जो कर्म आपसे हो गया वो उस पल का कर्म वापिस नही होता चाहे अच्छा हो या बुरा। इसलिए इससे पहले कि आत्मा इस शरीर को छोड़ जाये, शरीर में रहते हुए आत्मा को यानि स्वयं को जान लो और जितना अधिक हो सके मन से, वचन से, कर्म से भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण का ध्यान, चिंतन, जप कीर्तन करते रहो। निरन्तर स्मरण से हम यम फांस से तो बचेंगे ही बचेंगे साथ ही हमें भगवत धाम भी प्राप्त हो सकेगा। जोकि जीवन का वास्तविक लक्ष्य है।

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