Janmashtami 2021: भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का मनाया जाने वाला व्रत जन्माष्टमी का व्रत कहलाता है। यदि इस व्रत को सम्पूर्ण विधि विधान से किया तो ये अनंत अक्षय फलदायी (Infinite Fruitful) होता है। स्वयं भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण (Lord Yogeshwar Shri Krishna) भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि करते है और भक्त की आने वाली कई पीढ़ियों का भक्ति का वरदान मिलता है।
Janmashtami का व्रत विधान
इस दिन प्रात:काल स्नान करके निर्जल व्रत (Waterless Fasting) रखना होता है। पूर्णरूपेण सच बोलना चाहिए। अपराहन पुनः स्नान आदि से निवृत्त होकर फलों का भोग भगवान श्रीकृष्ण को लगाकर फल ग्रहण किया जा सकता है। धूप-दीप, पंचोपचार, षोडशोपचार से अपने सामर्थ्यानुसार भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करनी चाहिए। रात को बारह बजने के बाद श्रीकृष्ण का जन्म माना गया है। उस समय भगवान की मूर्ति के आगे धूप-दीप चढ़ाकर दही का चरणामृत बनाना चाहिए। कोटू (कूर), सिंघाड़े या सूखी धनिया के आटे को भूनकर उसमें सूखा मेवा मिलाकर पंजीरी बनाना चाहिए और सम्भव हो सके तो फलों का भी प्रसाद बनाना चाहिए। भगवान का भोग लगाने के बाद फल और प्रसाद खाकर व्रत तोड़ना चाहिए। यह व्रत स्त्री, पुरुष, किशोर कोई भी कर सकता है।
Janmashtami की कथा
राजा कंस (Kansa) अपनी बहन देवकी (Devaki) के विवाह के पश्चात् उसे विदाई देने के लिये रथ हांक रहा था। रथ पर कंस के बहनोई वासुदेव (Vasudev) भी सवार थे। भले ही कंस आततायी और क्रूर था लेकिन वो अपनी बहन देवकी से अनन्य प्रेम करता था। ठीक उसी समय आकाशवाणी हुई–”हे मूर्ख कंस ! जिसे तू रथ पर ले जा रहा है उसी के गर्भ से जो आठवां पुत्र होगा वही तेरा काल बनेगा।” आकाशवाणी सुनकर कंस को क्रोध आ गया। रथ से उतरकर उसने अपनी तलवार खींच ली। जैसे ही तलवार देवकी के ऊपर उठाई, बासुदेव ने उसका हाथ थामते हुए कहा- “हे राजन ! यह क्या करने जा रहे हैं?”
"इससे मेरा काल जन्म लेगा?" कंस ने क्रोध से तमतमाते हुए कहा। वासुदेव तो संत हदय थे, बोले-"अभी प्रसव में बहुत समय है। फिर जब-जब देवकी पुत्र को जन्म दे तब-तब आप उस पुत्र को लेकर उसका वध कर देना।" कंस की मति भगवान ने भ्रष्ट कर दी थी। वो मान गया था। उसने वासुदेव और देवकी को मथुरा के कारागार में डाल दिया। राजा कंस ने अपनी बहन के सात बच्चों का वध कर डाला। जब आठवां पुत्र होने का समय आया, तब कंस ने जेल में पहरा कड़ा कर दिया।
देवकी को भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को पुत्र हुआ तो उस समय घनघोर वर्षा हो रही थी। जेल के फाटक खुले हुये थे ये चमत्कार ही था कि देवकी और वासुदेव की वेड़ियां और हथकड़ियां भी स्वत: टूट गयी थीं। पुत्र-कृष्ण का सलौना रूप देखकर देवकी आयी बोली-"स्वामी, इस बालक को देखकर मेरी ममता जाग उठी है। कितना सुन्दर बालक है! आप इसे दे दो। "सत्य कहती हो प्रिये ! मगर इसे छिपाऊँगा कहाँ?" वासुदेव ने कहा। "हाँ, याद आया ! आज मुझे स्वप्न आया था। गोकुल में यशोदा और नन्द बाबा के पर एक कन्या का जन्म हुआ है। आप इस बालक को वहां छोड़कर उस कन्या को ले आना। भगवान ने मुझे स्वप्नः दिया है वो कन्या देवी का अवतार है।
वासुदेव जी कृष्ण को लेकर कारागार से बाहर आए अपने हाथों की टूटी हथकड़ियां और जेल के खुले द्वार देख वासुदेव जान गये थे कि ये भगवान की माया है। वो बालक को एक टोकरी में रखकर रात में ही चल पड़े। रास्ते में यमुना नदी पार करनी थी। काली घटा के साथ वर्षा हो रही थी। वासुदेव ने भगवान का स्मरण किया और नदी में प्रवेश कर गये। यमुना भगवान के अवतार को पहचान गई थी। वो भगवान के पैर छूना चाहती थी। इसीलिए वासुदेव ज्यों-ज्यों यमुना में प्रवेश करते जा रहे थे, यमुना का जल बढ़ता चला गया था। यहाँ तक कि जब वासुदेव के मुंह के पास यमुना का जल स्तर आ गया था, तब अवतारी श्री कृष्ण भगवान ने अपने पैर नीचे टोकरे से लटका दिये।
यमुना जी बालक रूपी भगवान के चरणों का स्पर्श करते ही बिल्कुल कम हो गई। वासुदेव जी आसानी से यमुना पार हो गये और गोकुल गांव में नन्द बाबा के घर रात में ही पहुंचकर वासुदेव बालक को नन्द वावा के पास नन्द गाँव छोड़ आये और वहां से कन्या ले आये। सुबह कंस ने बन्दीगृह में आकर देवकी की गोद से कन्या छीन ली और वध करने के लिए ज्यों ही कन्या को ऊपर उठाकर शिला पर पटकना चाहा तो कन्या उसके हाथ से छूट गयी।
वो कन्या आद्या शाक्ति महामायी विंध्यवासिनी (Aadya Shakti Mahamayi Vindhyavasini) थी आकाशवाणी हुई-"हे दुष्ट कंस ! तू क्या मुझे मारेगा, तेरा वध करने वाला जन्म ले चुका है।" कंस घबरा गया था। उसने राज्य में अपने असुरगणों पूतना, शकटासुर, अघासुर, बकासुर, चाणूर आदि कृष्ण की खोज में भेजा परन्तु भगवान ने सबका वध किया। कंस के अत्याचार और अनाचार को खत्म करने के लिये भरे दरवार में कंस के केश पकड़कर वध कर डाला था। फिर कंस के पिता राजा उग्रसेन को राजगद्दी पर फिर से बिठा दिया, जिनसे कंस ने पहले राज्य छीना था। इसी उपलक्ष्य में भारत में जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।