एक संत थे वृन्दावन में रहा करते थे, उनकी श्रीमद्भागवत में बड़ी निष्ठा थी। उनका प्रतिदिन का नियम था कि वे रोज एक अध्याय का पाठ किया करते थे, और राधा रानी (Shri Radharani) जी को अर्पण करते थे। ऐसे करते करते उन्हे 55 वर्ष बीत गये, पर उनका एक दिन भी ऐसा नही गया जब राधारानी जी को भागवत का अध्याय न सुनाया हो।
एक रोज वे जब पाठ करने बैठे तो उन्हें अक्षर दिखायी ही नहीं दे रहे थे और थोड़ी देर बाद तो वे बिलकुल भी नहीं पढ़ सके। अब तो वे रोने लगे और कहने लगे – हे प्रभु ! मैं इतने दिनों से पाठ कर रहा हूँ फिर आपने आज ऐसा क्यों किया अब मैं कैसे राधारानी जी को पाठ सुनाऊंगा।
रोते-रोते उन्हें सारा दिन बीत गया। कुछ खाया पीया भी नहीं क्योंकि पाठ करने का नियम था और जब तक नियमसेवा पूरी नहीं करते, खाते पीते भी नहीं थे। आज नियम नहीं हुआ तो खाया पिया भी नहीं। तभी एक छोटा-सा बालक आया और बोला,बाबा ! आप क्यों रो रहे हो ? क्या आपकी आँखे नहीं है? इसलिए रो रहे हो ?
बाबा बोले- नहीं लाला ! आँखों के लिये क्यों रोऊंगा मेरा नियम पूरा नहीं हुआ इसलिए रो रहा हूँ। बालक बोला - बाबा! मैं आपकी आँखें ठीक कर सकता हूँ। आप ये पट्टी अपनी आँखों पर बाँध लीजिये।
बाबा ने सोचा लगता है वृंदावन (Vrindavan) के किसी वैद्य का लाला (बेटा) है, कोई इलाज जानता होगा। बाबा ने आँखों पर पट्टी बांध ली और सो गये,जब सुबह उठे और पट्टी हटायी तो सब कुछ साफ दिखायी दे रहा था। बाबा बड़े प्रसन्न हुए और सोचने लगे देखूं तो उस बालक ने पट्टी में क्या औषधि रखी थी और जैसे ही बाबा ने पट्टी को खोली तो पट्टी में राधा रानी जी का नाम लिखा था।
इतना देखते ही बाबा फूट फूट कर रोने लगे और कहने लगे - वाह ! किशोरी जी आपके नाम की कैसी अनंत महिमा है। मुझ पर इतनी कृपा की और श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagwat) से इतना प्रेम करती हो कि रोज़ मुझ से श्लोक सुनने आपको भी आनंद आता है। इस तरह श्री कृष्ण की सर्वांगमयी शक्ति (Omnipotent power of Shri Krishna) श्रीमती राधारानी भक्तों पर असीम कृपा करती है। श्री जी, किशोरी, लाड़ली जी, लाली और गौरांगी जैसे नामों से पुकार भक्त अपनी गुहार उन तक पहुँचाते है।