नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): सभी देवगणों में प्रथम पूज्य गणपति बप्पा का जन्मदिन गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) या विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में भक्त अपने दाहिनी हाथ में संकल्प के रूप में 14 गाँठ लगे हुए धागे को अपनी बाजू में धारण करते हैं। इस पवित्र धागे को अनंत कहा जाता है और इसलिए इस त्योहार को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) भी कहा जाता है। हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (Chaturthi date of Shukla Paksha of Bhadrapada month) के दिन श्रद्धालु अपने घरों में गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित करते है। इस साल विसर्जन वाले दिन गणेशोत्सव पर हस्त नक्षत्र प्रभावी रहेगा। हस्त नक्षत्र ज्योतिषीय शास्त्रों में शुभ फलदायी बताया गया है। चतुर्थी को बहुत ही खास योग बन रहा। ऐसा ज्योतिषीय संयोग 126 साल बाद बना है। जब सूर्य सिंह राशि में और मंगल मेष राशि में होगें।
गणेश चतुर्थी उत्सव छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के समय (1630-1680) दौरान सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया जाता था। गणपति को मराठा साम्राज्य (Maratha Empire) अपना अधिपति कुलदेवता मानता था। साल 1893 के दौरान स्वतन्त्रता प्राप्ति और राष्ट्रवाद जागने के उद्देश्य लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) ने इस परम्परा को फिर से शुरू किया ताकि लोगों को एक मंच पर लाया जा सके। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का उद्यापन/समापन 10 सितंबर को प्रथम पूज्य की प्रतिमा के विसर्जन के साथ होगा। विसर्जन वाले दिन अनंत चतुर्दशी है। कोरोना महामारी (Corona epidemic) के इस काल में बड़े पंड़ालों में सार्वजनिक कार्यक्रमों की प्रशासनिक अनुमति नहीं होगी। कोरोना गाइडलाइन्स और सोशल डिस्टेंसिंग (Corona Guidelines and Social Distancing) के निर्धारित मानकों के तहत मंदिरों में भी सीमित संख्या में ही भक्तों के एकत्र होने की अनुमति होगी।
गणपति प्रतिमा की स्थापना, पूजन और विसर्जन का मुहूर्त
21 सितंबर 2021 की दोपहर में सुबह 11 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 42 मिनट के बीच
गणेश चर्तुशी/विनायक चर्तुशी/गणेशोत्सव की समाप्ति- प्रतिमा विसर्जन का मुहूर्त- दोपहर 10 सितम्बर 2020
गणेश प्रतिमा स्थापित करने का वैदिक विधान
गणेश स्थापना के लिए चतुर्थी के दिन स्नान-ध्यान-दान के बाद श्रेष्ठ चौघड़िया में गणेशजी की प्रतिमा को पाटे पर स्थापित कर, लाल या पीला वस्त्र बिछाकर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप के साथ फलों और मोदक या बूंदी के लड्डू भगवान को अर्पित करें। इसके बाद दूर्वा, हरे मूंग, गुड़ और चावल चढ़ाएं। पूजा के दौरान गणेशजी को तीन, पांच या सात पत्तियों वाली दूर्वा अर्पित करनी चाहिए। दूर्वा चढ़ाने से गणेशजी बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की कथा और गणेश चालीसा का पाठ करने के बाद “ओम् गं गणपतये नमः” मंत्र से एक माला का जाप करे। पूजा के उपरान्त चंद्रोदय होने के बाद चन्द्रदर्शन से बचे अन्यथा आप पर चारित्रिक आधारहीन दोष की दशायें (Characterize baseless defects) बनने लगेगी।