Pitru Paksha: पितृ कृपा के बिना मनुष्य का जीवन बड़ा अस्त व्यस्त हो जाता है। क्योंकि हमारे जीवन में इनका भी एक मुख्य स्थान है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में श्राद्ध (Shradh) आदि करने का नियम है। साल के सोलह दिवस हम अपने पितृ देवताओं (Pitra Devta) के नाम कर देते है, ताकि उनका आशीष हमें प्राप्त हो और हमारा जीवन सफल हो। किन्तु कभी कभी पितृ हमसे नाराज़ भी हो जाते है और पित्तरों का गुस्सा जातकों पर बड़ी भारी पड़ता है।
इसलिए हमें समय समय ये साधना संपन्न कर लेनी चाहिये थोड़ी मेहनत करके
किस कारण से पितृ रुष्ट हो जाते है ?
सामर्थ्यवान होते हुए भी तर्पण आदि ना करना।
पशु पक्षियों की सेवा ना करना।
वृक्षों को काटना या अकारण कष्ट देना।
पितरो की निंदा करना।
घर के वृद्धों की सेवा ना करना तथा उन्हें कष्ट देना।
और भी कई कारण जिससे पितृ नाराज़ हो जाते है। जिनके कारण हम लोगों का अस्तित्व है, जिनका नाम आपके नाम से जुड़ा है। उनकी ही यदि कृपा आप पर से हट जाये तो जीवन दुष्कर तो होगा ही ना।
इसलिए समय समय पर सामर्थ्य अनुसार पितरों को प्रसन्न करते रहना चाहिए। ताकि उनकी कृपा प्राप्त होती रहे। यदि किसी कारण पितृ रुष्ट हो जाये तो उन्हें मनाना अतिआवश्यक है। प्रश्न अब ये खड़ा हो जाता है कि हम कैसे अपने पितरों को मनायें।
चिंता ना करे साधना मार्ग ने हर समस्या का हल मनुष्य के हाथो में दिया है। आवश्यकता है तो बस इतनी की हम साधना करे वो भी पूर्ण समर्पण के साथ। आज यहाँ आपके सामने एक साधना उजागर कर रहा हूं जो कि मैनें खुद की है। ये मैं समय समय पर हर बरस पूर्ण करता हूं। जिसके माध्यम से पित्रों की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि वे किसी कारण रूठ गये हो तो मान भी जाते है।
चाहे वंशज की त्रुटि कितनी ही बड़ी क्यों ना हो परन्तु इस प्रयोग को करने के बाद उन्हें मानना ही पड़ता है क्योंकि सबसे बड़े पितृ भगवान नारायण (Lord Narayana) है और उनकी आज्ञा तो सभी पित्रों को मानना ही पड़ती है। ये प्रयोग अत्यन्त सरल है। बिना किसी समस्या के साधक इसे कर सकता है। इसमें आपको कोई भी विशेष नियम पालने की आवश्यकता नहीं है। बस एक ही नियम की आवश्यकता है और वो है पूर्ण विश्वास।
यदि प्रयोग के प्रति विश्वास ना हो तो वे सफल नहीं होते है। अतः पूर्ण विश्वास से करे।
पूर्णिमा को प्रातः 4 से 9 के मध्य स्नान करे और अपने पूजन कक्ष में जाकर उत्तर अथवा पूर्व की और मुख कर बैठ जाये। इसमें आसन एवं वस्त्र का कोई बंधन नहीं है। कोई भी वस्त्र धारण किये जा सकते है। किसी भी आसन पर बैठा जा सकता है। अब सामने एक थाली रखे किसी भी धातु की और उसमे केसर, हल्दी अथवा अष्टगंध से "पितृ" लिखे इसके बाद उस पर एक गोल बड़ी सुपारी रखे। ये सुपारी विष्णु स्वरुप है। इनका सामान्य पूजन करे। पुष्प अर्पित करे शुद्ध घृत का दीपक प्रज्वलित करे तथा गुड नैवेद्य में अर्पित करे।
अब एक पात्र में थोड़ा शुद्ध जल ले लीजिये और उस जल में ग़ुड, सफ़ेद तिल तथा काले तिल मिल लीजिये। अब निम्नलिखित मंत्र (Mantra) को पढ़े और एक चम्मच जल सुपारी पर अर्पित करे। इस प्रकार आपको ये क्रिया 108 बार करनी है। मंत्र पढ़ना है और जल अर्पित करना है। जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये सारे जल को पात्र में पुनः भर ले और ये जल पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित कर दे और प्रार्थना करे।
हे श्री हरि भगवान विष्णु यदि मेरे पितृ मुझसे रूठ गये हो तो आपके आशीर्वाद से वे मान जाये, एवं मुझे तथा मेरे पूरे परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे। मेरे कुल में कभी किसी को पितृदोष (Pitra Dosh) ना लगे और ना ही किसी पर कोई पितृ कभी कुपित हो।
इस प्रकार साधक को 5 पूर्णिमा तक ये क्रिया करनी होगी। यदि साधक चाहे तो इससे अधिक भी कर सकता है अथवा हर पूर्णिमा को करने का नियम बना सकता है। यदि बीच में कोई पूर्णिमा किसी कारण छूट जाये तो चिंता की कोई बात नहीं है। इसमें कोई दोष नहीं लगता है बस किसी भी तरह 5 पूर्णिमा कर ले। नैवेद्य में जो गुड अर्पित किया था वो भी पीपल को ही अर्पित करना है।
पितृ शांति मंत्र
ॐ नमो नारायण को नमस्कार, नारायण धाम को नमस्कार, नारायण के धाम कौन जाये, पितृ प्यारे सब जग न्यारे, नारायण शांति देओ, पितृ शांत कराओ, कुपित पितृ मनाओ, पूजा भेंट स्वीकार करो पितृ दोष नाश करो, मीठा भोग नित खाओ, रूठे पितर मनाओ, शेषनाग की आन दू, वसुंधरा की दुहाई।
मंत्र पूर्ण रूप से शुद्ध है अतः अपनी और से कोई परिवर्तन ना करे और जब तक क्रिया पूर्ण न हो किसी से भी बात ना करे। जो भी साधक पूर्ण भाव से इस प्रयोग को 5 पुर्णिमा करेगा उस पर निश्चय ही पित्रों की कृपा होगी। संभव हो तो इस दिन व्रत भी किया जा सकता है परन्तु ये आवश्यक अंग नहीं है लेकिन साधना के दिन जब तक प्रयोग पूर्ण ना कर ले तब तक जल के अतिरिक्त कुछ और ग्रहण ना करे। कभी कभी स्वप्न में पितृ दिखाई देते है अतः घबराने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा साधना में कभी कभी हो जाता है।
तो देर कैसी आज ही साधना का दिवस निश्चित करे और लग जाये अपने पितरो को मनाने में। अगर इतने सरल प्रयोग के बाद भी कोई इसे न कर पाये तो फिर ऐसे मनुष्य का कुछ नहीं हो सकता। अतः साधनाओं को गंभीरता से ले। तभी आप सफलता के निकट पहुंच पायेगें।