न्यूज डेस्क (मृत्युजंय झा): आज (22 सितंबर 2022) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। जिसके तहत ट्रस्ट को 25 साल के ऑडिट से छूट देने के लिये गुहार लगायी गयी। गौरतलब है कि इस ट्रस्ट को त्रावणकोर शाही परिवार (Travancore royal family) ने बनाया था।
न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने ट्रस्ट के ऑडिट की अनुमति दी और कहा कि इसे तीन महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिये। शीर्ष अदालत ने कहा कि पिछले साल ऑडिट की अनुमति देने का उसका आदेश केवल मंदिर (Sri Padmanabha Swamy temple) तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसमें ट्रस्ट को भी शामिल किया गया है।
हालांकि न्यायिक खंडपीठ (Judicial Bench) ने मंदिर ट्रस्ट की उस याचिका पर आदेश पारित करने से परहेज किया, जिसमें मंदिर को “स्वतंत्र और विशिष्ट इकाई” घोषित करने की मांग की गई थी। ट्रस्ट त्रावणकोर कोचीन हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम 1950 के तहत गठित मंदिर प्रशासनिक और सलाहकार समितियों के प्रशासनिक नियंत्रण से बाहर होना चाहता था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "हमने पहली प्रार्थना को खारिज कर दिया और ये साफ कर दिया है कि ऑडिट का मकसद सिर्फ मंदिर तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसमें ट्रस्ट भी शामिल था। हम दूसरी प्रार्थना से संबंधित मुद्दों पर फिलहाल सुनवाई नहीं करना चाहते है। ट्रस्ट को तत्कालीन त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा बनाया गया था जो दुनिया के सबसे अमीर प्रतिष्ठित मंदिर श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर का प्रबंधन करता है।
पिछले साल शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर और ट्रस्ट दोनों के पिछले 25 वर्षों के आय और व्यय रिकॉर्ड का किसी भरोसेमंद संस्थान द्वारा ऑडिट किया जाना चाहिये। शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद ऑडिट में लगी निजी चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म (Private Chartered Accountancy Firm) ने ट्रस्ट से आय और व्यय के रिकॉर्ड जमा करने को कहा।
शीर्ष अदालत ने त्रावणकोर के तत्कालीन शाही परिवार के तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के मैनेजमेंट के अधिकार को भी बरकरार रखा था। इसके साथ शीर्ष अदालत ने नौ साल की कानूनी लड़ाई का फैसला भी कर दिया।, जिसमें इस बात को लेकर विवाद था कि क्या केरल राज्य के पूर्ववर्ती शाही परिवार को रियासत के अंतिम महाराजा की मृत्यु के बाद प्राचीन मंदिर का प्रशासन और प्रबंधन संभालने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) के 2011 के फैसले को भी खारिज कर दिया था, जिसने राज्य सरकार को मंदिर के प्रबंधन और संपत्ति पर नियंत्रण रखने के लिये ट्रस्ट स्थापित करने का निर्देश दिया था। अब ट्रस्ट ने ऑडिट के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि ट्रस्ट का गठन सिर्फ शाही परिवार से जुड़ी ऐतिहासिक मंदिर की पूजा और अनुष्ठानों की देखरेख के लिये किया गया था, जिसमें प्रशासन की कोई भूमिका नहीं थी।
ट्रस्ट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने ऑडिट की अनुमति नहीं देने के लिये कहते हुए शीर्ष अदालत में तर्क दिया कि ट्रस्ट के सामने एमिकस क्यूरी (Amicus Curie) ने मांग की कि ट्रस्ट के खातों का भी ऑडिट किया जाना चाहिए। मंदिर के लिये कोर्ट द्वारा गठित प्रशासनिक समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत ने कहा कि ट्रस्ट के खातों का भी ऑडिट कराने की जरूरत है।
बसंत ने आगे कहा कि, "मंदिर आज भारी वित्तीय तंगी (Severe Financial Crunch) से जूझ रहा है। ट्रस्ट को मंदिर के दिन-प्रतिदिन के खर्चों को पूरा करना है। वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं। मंदिर का सौ करोड़ रुपए मासिक खर्च है, हम मुश्किल से 60-70 लाख रुपये हासिल कर पा रहे हैं, इसलिए हमने कुछ दिशा-निर्देश मांगे हैं।"
एडवोकेट दातार ने बाद में साफ किया कि ट्रस्ट ऑडिट पर आपत्ति नहीं कर रहा है और स्पष्टीकरण मांग रहा है कि इसे प्रशासनिक समिति (Administrative Committee) के तहत नहीं रखा जाना चाहिये।