कच्चा तेल (Crude Oil) 3 साल के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया है। इससे पहले सितंबर 2018 में ये 80 डॉलर पर पहुंचा था, साफ है कि पेट्रोल डीजल अभी और महंगा होना है सरकार का मूड जनता को राहत देने का नही है। कुछ महीने पहले लोकल-सर्कल नाम के एक सामुदायिक प्लेटफॉर्म ने पूरे देश में 22 हज़ार से अधिक लोगों के बीच कराये एक सर्वे में पाया था कि पेट्रोलियम उत्पादों (Petroleum Products) की बेतहाशा बढ़ती क़ीमतों के कारण करीब 51 फ़ीसदी लोगों को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही है, जबकि 21 फ़ीसदी लोगों को बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों पर कैंची चलानी पड़ी है। वहीं, 14 प्रतिशत अपनी बचत से खर्च करने को मजबूर हुए हैं।
केंद्र चाहे तो एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) कम करके पेट्रोल-डीजल के दाम कम कर सकती है। मोदी सरकार जब से आयी है उसने पेट्रालियम पदार्थों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह इस्तेमाल किया है, उसने तेल के दामों को डी-रेग्युलेट (De-Regulate) करने का फायदा कभी जनता तक पुहचने ही नही दिया, जबकि ये नीति जब लागू की गयी थी तो सरकार ने दावा किया था कि इससे उपभोक्ता को सीधा लाभ मिलेगा। अगर तेल की कीमतें घटेंगी तो आपको सस्ता तेल मिलेगा और बढ़ेंगी तो आपको इसके लिये ज्यादा कीमत चुकानी होगी। इससे पहले सरकार तेल की कीमतें तय करती थी।
लेकिन, मोदी सरकार (Modi government) ने ऐसा नही किया क्योंकि जब क्रूड महंगा हुआ और तेल के दाम बढ़े तो आम लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन जब-जब सस्ता हुआ तो सरकारों ने टैक्स बढ़ाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया। खासकर कोरोना काल में तो क्रूड के बीस सालों में सबसे कम दाम देखे गये यानि क्रूड सस्ता होने का फायदा आम लोगों को नहीं बल्कि सरकारों को हुआ। लेकिन जब तेल फिर महंगा हुआ तो सरकार ने टैक्स नहीं घटाये। इसका नतीजा ये हुआ कि आम लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ता गया।
आज (29 सितंबर 2021) अति हो गयी है। गंगानगर में 113 रूपये, इंदौर में पेट्रोल 110 रु बिक रहा है अब पेट्रोल और डीजल की बढ़ती क़ीमतें न सिर्फ मध्य और निम्न मध्यवर्ग (Lower Middle Class) को बहुत भारी पड़ रही हैं बल्कि महंगाई भी बड़ी तेजी से बढ़ा रही है।