तुर्की (Turkey) पिछले कई सालों से सुर्खियों में है। तुर्की लगातार नाटो के नियमों की अनदेखी कर रहा है। अंकारा लगातार सक्रिय रूप से इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट (Islamic State) के आतंकवादियों की मदद कर रहा है। कुछ इसी तरह अंकारा सीरियाई और अजरबैजान-आर्मेनिया लड़ाई (Azerbaijan-Armenia battle) में सीधे तौर पर शामिल रहा है। अलग अलग मंचों पर बेहद गलत रूप से तुर्की ने पाकिस्तान को भी इस्लामी आंतकवाद फैलाने में मदद की। सऊदी अरब का मुकाबला करने के लिये एक समानांतर इस्लामी मंच बनाने की तड़प लगातार तुर्की के हुक्मरानों में देखी जा रही है।
फाइनेंशियल टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि ये संभावना है कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी को वित्तीय मदद रोकने में तुर्की लगातार नाकाम रहा है। इसलिये तुर्की को FATF की ग्रे सूची में डालने के प्रस्ताव पर लगातार चर्चा हो रही है। तुर्की पर दिसंबर 2019 में आयी FATF की रिपोर्ट के मद्देनज़र अंकारा कोशिशों में लगातार खोखलापन देखा गया। जिसके चलते लगातार टेरर फंडिंग रोकने तुर्की के नीति नियंता फेल दिखे।
नतीजन बीते दो सालों में कई समीक्षाओं के बीच तुर्की को नोटिस में रखा गया है। हाल ही में FATF ने 21-25 जून 2021 को अपनी बैठक के दौरान तुर्की की ग्रे लिस्टिंग के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया। तुर्की किस तरह दुनिया को बेवकूफ बना रहा है और आतंकी संगठनों की मदद कर रहा है, ये चिंता का सब़ब है। हम कुछ तथ्य पेश करने जा रहे है, जो कि साबित करते है कि तुर्की आंतकवाद का पालता पोसता है।
सीरियन आंतकी जमात को खुला सहयोग
फ्री सीरियन आर्मी, सीरियन इस्लामिक लिबरेशन फ्रंट (Syrian Islamic Liberation Front) और इसी तरह की दूसरी आंतकी जमातों का अंकारा खुला समर्थन करता है। दरअसल पिछले दरवाज़े से तुर्की का आला नेतृत्व इन आंतकी संगठनों को प्रशिक्षण, हथियार, स्ट्रैटजिक इस्ट्रूमेंट (Strategic Instrument) और रसद मुहैया करवाता है। कई बार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों में तुर्की और आंतकी गुटों के बीच सप्लाई लाइन का खुलासा हुआ है।
ये सब करते हुए तुर्की ने कई बार अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रखा। साल 2013 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को खत में लिखा था कि कैसे पश्चिमी विरोधी आतंकी तुर्की में पनाह हासिल कर रहे है लेकिन इस मामले पर तुर्की के सुरक्षा आधिकारियों और एनएसए ने आंखें मूंद ली।
अलकायदा के साथ गलबहियां
हाल ही में बीते सितंबर (2021) में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अल-कायदा (Al Qaeda) को फंड़िंग देने के मसले पर तुर्की के पांच लोगों को प्रतिबंध सूची में रखा था। उनमें से एक नूरेटिन मुस्लिहान नामक एक शख्स हथियारबंद हमले की योजना बनाने में शामिल था। इस हमले के पीछे तुर्की को मास्टर मांइड पर गया। हालांकि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन (President Recep Tayyip Erdogan) के दखल के बाद ये मामला पूरी तरह ठंडे बस्ते में चला गया। इसके साथ ही आरोपियों पर लगी निगरानी भी वापस ले ली गयी।
यासीन अल-क़ादी (अल-क़ायदा) और सालेह-अल-अरुरी (हमास) जैसी आंतकी ज़माते लगातार टेरर फंड़िग कर रही है। जिन पर अमेरिकी बैन लगा हुआ है, लेकिन ये सभी आंतकी संस्थायें अभी अपना काम करना जारी रखे हुए है। ये सब मामले साफतौर पर दिखाते है कि नाटो सदस्य (NATO member) होने के आड़ में तुर्की लगातार दबे छिपे पांव आंतकवाद को पालने पोसने में लगा हुआ है।
अल-कायदा को तुर्की का सीधा समर्थन 2012 में तब दिखाई दिया, जब उसने "अल-नुसर फ्रंट" जैसे खूंखार आतंकी संगठन और अल-कायदा को आतंकी संगठन मनाने से साफ इंकार कर दिया था। जबकि विश्व भर के कई देशों ने सकारात्मक अंतर्राष्ट्रीय दबाव में इन्हें आंतकी संगठन (Terrorist Organization) घोषित किया था। नतीजतन अल-नुसराह फ्रंट को आज तक तुर्की से फंड़िंग हासिल हो रही है।
इस्लामिक स्टेट को खुली टेरर फंड़िंग
साल 2013-2017 के दौरान मध्य पूर्व में इराक और सीरिया (ISIS) में इस्लामिक स्टेट के क्रूर शासन की खौफनाक तस्वीरें अभी भी लोगों के ज़हन में ताजा है। इस्लामिक स्टेट ने अपने शासनकाल के दौरान लगभग 3-4 बिलियन अमरीकी डालर की समानांतर अर्थव्यवस्था चलायी। इराक और सीरिया की तुर्की से करीबियां होने के कारण दोनों ने ही अपना पैसा अंकारा से पास बेहद महफूज़ तरीके से रखा।
साल 2016 में मोसुल एक छापे के दौरान बरामद दस्तावेजों के मुताबिक ISIS ने तुर्की के मनी एक्सचेंजर्स, एनजीओ और सर्राफा डीलरों के बड़े नेटवर्कों का इस्तेमाल किया। जिसके बाद इस्लामिक स्टेट ने अपना पैसा डॉलर, बुलियन बार और दूसरी विदेशी मुद्रा में बदल लिया। इसके अलावा ये भी सामने आया कि अफगानिस्तान में खुरासान प्रांत में इस्लामिक स्टेट के मनी ट्रांसफर का बड़ा हिस्सा तुर्की से आया।
ईरानी गैस और आंतकी नेटवर्क
नाटो देश होने के बावजूद तुर्की ने नाटो के हितों के उल्ट कई काम किये। जब संयुक्त राज्य अमेरिका ईरानी परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के लिये दुनिया भर में जनसमर्थन तैयार कर तेहरान पर दबाव बनाने की कवायद लगा हुआ था। तब ईरान से कोई भी उनसे पेट्रोलियम उत्पाद नहीं खरीद रहा था, ठीक उसी दौरान तुर्की का सरकारी स्वामित्व वाला बैंक "हल्कबैंक" ईरानी गैस खरीदने के लिये तैयार हुआ, जिसके एवज़ में उसने ईरान को सोने का भुगतान किया।
इन सर्राफा लेनदेन की सुविधा के लिये हल्कबैंक ने तेहरान में अपनी ब्रांच खोली। कुछ वैश्विक आतंकी गुटों को ईरान का समर्थन अब कोई रहस्यमय पहेली नहीं रहा है। इस तरह ईरानी गैस के एवज़ मिले तुर्की सोने से कई आंतकी ज़मातें कायम रही।
तुर्की की मानवीय राहत परिषद (IHH)
IHH अंकारा द्वारा संचालित एक गैर सरकारी संगठन है, जिसे सक्रिय रूप से एर्दोगन शासन का समर्थन हासिल है। इसके गठन के तुरंत बाद इसे सीआईए ने इसे टेरर फंडिंग ऑर्गनाइजेशन माना। तुर्की ने इसे दुनिया के सामने मानवीय संगठन के तौर पर पेश किया लेकिन ये संगठन आंतक को फंड़ हासिल कराता रहा है। साल 2001 में आईएचएच सऊदी के गैर सरकार संगठन यूनियन ऑफ़ गॉड का हिस्सा बन गया। जिसे साल 2008 में आतंकी यूनिट के तौर पर नॉमिनेट किया गया था।
हालाँकि IHH की तुर्की शाखा अभी भी उनकी एर्दोगेन सरकार के संरक्षण में फल-फूल रही है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि IHH अभी भी ISIS, अल-कायदा और दूसरे सलाफी संगठनों का समर्थन कर रहा है लेकिन आज तक इस पर कोई भी वाज़िब कार्रवाई नहीं हुई है।
साल 2019 की एफएटीएफ रिपोर्ट में जिक्र किया गया था कि तुर्की अंतरमहाद्वीपीय जंक्शन पर जगह और विविध अर्थव्यवस्था का फायदा उठा रही है। जिसके कारण आतंकवाद वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के जोखिम में इज़ाफा हुआ है। इसके अलावा तुर्की में आतंकवादी संगठनों, अपराधियों और विदेशी आतंकी लड़ाकों की गतिविधियों के कारण खतरे और भी गंभीर हो जाते हैं। साथ ही तुर्की में नशीली दवाओं के तस्करों, समानांतर इस्लामी बैंकिंग प्रणाली, मानव तस्करों, अवैध धन विनिमय करने वालों के लिये अंकारा काफी फेवरेबल रहा है। जिसने आंतकी खतरों को काफी संवेदनशील बना दिया।
सीआईए की कई खुफ़िया रिपोर्टों में ये भी खुलासा हुआ है कि बीते 15 सालों के दौरान कई गैर-बैंकिंग संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों ने संदिग्ध लेनदेन किये है।
पिछले कुछ सालों में, तुर्की की वित्तीय अपराध जांच एजेंसी मासाक ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 1267 और अन्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करने और कानूनी कार्रवाई करने में जानबूझकर देरी की, जो कि साबित करता है कि आतंकवाद को प्रायोजित करना तुर्की का अपना निजी एजेंडा है।
कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए दुनिया तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है और ऐसे हालातों में न सिर्फ आतंकवादियों को बल्कि उनके समर्थकों को भी कड़ी सज़ा देना लाज़िमी हो गया है। फाइनेंशियल मदद किसी भी आतंकी संगठन की रीढ़ होता है, और जिस तरह से तुर्की दुनिया भर में बड़े पैमाने पर आतंकियों के समर्थन में शामिल रहा है, उसे देखकर लगता है नाटो को एक फिर से तुर्की की सदस्यता पर गहरायी से सोचना चाहिये।