देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी (Dev Prabodhini Ekadashi) भी कहा जाता हैं। इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है। सभी एकादशी पापों से मुक्त होने हेतु की जाती हैं लेकिन इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता हैं। राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती हैं, उससे कई अधिक पुण्य देवउठनी प्रबोधनी एकादशी का होता हैं।
इस दिन से चार माह पूर्व देव शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवं अन्य देवता क्षीरसागर (Kshirsagar) में जाकर सो जाते हैं। इसी कारण इन दिनों बस पूजा पाठ, तप एवं दान के कार्य होते हैं। इन चार महीनों में कोई बड़े काम जैसे शादी, मुंडन संस्कार, नाम करण संस्कार आदि नहीं किये जाते हैं। ये सभी मांगलिक कार्य देव उठनी प्रबोधनी एकादशी से शुरू होते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु और जलंधर के बीच युद्ध होता है। जलंधर की पत्नी तुलसी पतिव्रता रहती हैं। इसके कारण विष्णु जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को पराजित करने के लिये भगवान युक्ति के तहत जालंधर का रूप धारण कर तुलसी का सतीत्व भंग करने पहुँच गये। तुलसी का सतीत्व भंग (Breach Of Purity) होते ही भगवान विष्णु जलंधर को युद्ध में पराजित कर देते हैं। युद्ध में जलंधर मारा जाता है। भगवान विष्णु तुलसी को वरदान देते हैं कि वे उनके साथ पूजी जायेगी। इस दिन अबूझ मुहूर्त होने की वजह से पूरे देश में शादी विवाह के उत्सव शुरू हो जाते हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार गंगा राधा को जड़त्व रूप हो जाने और राधा को गंगा के जल रूप हो जाने का शाप देती हैं। राधा और गंगा दोनों ने भगवान कृष्ण को पाषाण रूप हो जाने का शाप दे दिया। इसके कारण ही राधा तुलसी, गंगा नदी और कृष्ण सालिगराम के रूप में प्रसिद्ध हुए। प्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम, तुलसी और शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कब मनाई जाती हैं देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी ?
कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी मनायी जाती हैं। ये दिन दिवाली के ग्यारहवें दिन आता हैं। इस दिन से सभी मंगल कार्यो का प्रारंभ होता हैं।
देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता हैं। इसका कारण ये हैं कि इस दिन सूर्य एवं अन्य गृह अपनी स्थिति में परिवर्तन करते हैं, जिसका मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं। इन प्रभावों में संतुलन बनाये रखने के लिये व्रत का सहारा लिया जाता हैं। व्रत एवं ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं।
इसे पाप विनाशिनी एवं मुक्ति देने वाली एकादशी कहा जाता हैं। पुराणों में लिखा हैं कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता हैं, इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थ दर्शन, हजार अश्वमेघ यज्ञ (Ashwamedha Yagya) एवं सौ राजसूय यज्ञ (Rajasuya Yagya) के तुल्य माना गया हैं।
इस दिन का महत्व स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया था, उन्होंने कहा था इस दिन एकाश्ना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवम पूर्ण व्रत पालन से कई जन्मों के पापों का नाश होता हैं। इस दिन से कई जन्मों का उद्धार होता हैं एवं बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती हैं।
जो मनुष्य यदि किसी कारणवश दीपावली पर्वकाल में लक्ष्मी पूजन न कर पाया हो, वो यदि इस दिन दीपावली पूजन करें (लक्ष्मीनारायण पूजन) तो निश्चित ही लक्ष्मी प्रसन्नता के साथ दीपावली पूजन का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस दिन रतजगा करने से कई पीढ़ियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता हैं। जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है, इससे मनुष्य इन्द्रियों पर विजय पाने योग्य बनता हैं।
इस व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से 100 गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता हैं। किसी भी व्रत का फल तब ही प्राप्त होता हैं जब वो नियमावली में रहकर विधि विधान के साथ किया जाये। इस प्रकार ब्रह्मा जी ने इस उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व नारद जी को बताया एवं प्रति कार्तिक मास में इस व्रत का पालन करने को कहा।
देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत के नियम
- इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म, स्नान आदि करना चाहिये।
- सूर्योदय के पूर्व ही व्रत का संकल्प लेकर पूजा करके सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करे।
- प्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम, तुलसी और शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है अत: इसे करने का पूर्ण प्रयास करें।
- अगर स्नान के लिये नदी अथवा कुँए पर जाये तो अधिक अच्छा माना जाता हैं।
- इस दिन निराहार व्रत किया जाता हैं। दूसरे दिन बारस को पूजा करने और पारणा करने पर व्रत पूर्ण माना जाता हैं।
- कई लोग इस दिन रतजगा कर नाचते, गाते एवम् भजन करते हैं। संभव होतो रात्रि जागरण कर हरि कीर्तन करें।
- घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर, चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करें।
- इस दिन बैल पत्र, शमी पत्र और तुलसी दल चढ़ाने का विशेष महत्व बताया गया है।
- उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व होता हैं।
- क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत कराने की प्रार्थना करें।
देवउठनी एकादशी के दिन करें ये विशेष उपाय
- अगर आप धन की इच्छा रखते हैं तो एकादशी के दिन किसी विष्णु मंदिर जाये और भगवान विष्णु को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगायें। इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। इससे भगवान विष्णु जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं।
- एकादशी पर एक नारियल व थोड़े बादाम भगवान विष्णु के मंदिर में चढ़ायें। ये उपाय करने से आपको जीवन के सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं और अटके कार्य भी बन सकते हैं।
- एकादशी पर भगवान श्रीविष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें। ये करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और साधक की हर मनोकामना पूरी कर सकती हैं।
- यदि आप निरंतर कर्ज में फंसते जा रहे हैं तो एकादशी के दिन किसी पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करें और शाम के समय दीपक प्रजवल्लित करें। पीपल में भी भगवान विष्णु का ही वास माना गया है। इस उपाय से जल्दी ही आप कर्ज मुक्त हो सकते हैं।
- इस दिन भगवान विष्णुजी को तुलसी अर्पित कर के श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- इस दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीविष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं।
- धन की कामना रखने वाले साधक एकादशी के दिन नीचे लिखे मंत्र का 5 माला जाप करें- स्फटिक माला से।
।।ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्री:।।
एकादशी के दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दक्षिणा, वस्त्र, आदि भेंट स्वरूप प्रदान करें। इससे आपको लाभ हो सकता है।
- जिनके विवाह मे अड़चनें आ रही हो उन्हें चाहिये कि प्रातः पीपल पर जल चढ़ावे एवं सायंकाल एक घी का दीपक पीपल के नीचे लगाकर थोड़ी चने की दाल और दो हल्दी की गांठ पीपल की जडों पर रखें। अगले दिन दोनों हल्दी की गांठ शीघ्र विवाह कामना करते हुए उठाकर ले आये और पीले कपड़ें मे बाँधकर अपने पास रखें।
- इस दिन तुलसी के पौधे के नीचे गाय के घी का दीपक जलायें और "ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः" मंत्र से पूजा करें। साथ ही भगवान विष्णु के किसी भी मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें। ऐसा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। तुलसी पूजन से धन वैभव मिलता है।
दिव्य तुलसी मंत्र :
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः ।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।
विष्णु प्रियायै धीमहि।
तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
- नौकरी पाने या कारोबार बढ़ाने के लिये इस दिन श्यामा तुलसी की जड़ पीले कपड़े में बांधकर, ऑफिस या दुकान में रखें।
- काफी कोशिशों के बाद भी अगर आमदनी नहीं बढ़ रही है या नौकरी में प्रमोशन नहीं हो रहा है तो एकादशी पर 7 कन्याओं को घर बुलाकर भोजन करायें। भोजन में खीर अवश्य होना चाहिये। कुछ ही दिनों में आपकी कामना पूरी हो सकती है।
देवप्रबोधिनी एकादशी से जुड़ी अन्य कथायें
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वो राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलायी, पर वो अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिये। वो नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वो भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किये भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वो अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वो राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिये। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिये ये सामान पूरा नहीं पड़ता। ये सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वो बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिये।
राजा की बात सुनकर वो बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आये। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आये तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिन भगवान नहीं आये, तब वो प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गये। ये देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वो भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
देव प्रबोधिनी एकादशी की व्रत कथा 2
एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गये। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?
तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूं। नगर में मेरी जान पहचान का कोई नहीं है। किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वो बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।
सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा।
राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाये। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाये तथा परोसकर राजा से खाने के लिये कहा। ये देखकर राजा बोला-रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा।
तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट लूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जायेगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।
इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। मां की आंखों में आंसू देखकर वो रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वो बोला- मैं सिर देने के लिये तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बतायी- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए।
भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें। उसी समय वहां एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया।
ऐसे करें देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत-पूजन
- देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाये।
- पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।
- फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें।
- देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भागवत कथा, पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें।
- घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजायें।
विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : -
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
इसके बाद विधिवत पूजा करें।
- पूजन के लिये भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाये।
- आंगन में देवोत्थान का चित्र बनायें, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलायें।
- विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।
इस मंत्र के साथ अर्पित करें पुष्पांजलि
'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'
पश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : -
'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥'
साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत और प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराये।
शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तयेत्' के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं)। अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें।