एजेंसियां/न्यूज डेस्क (वृंदा प्रियदर्शिनी): Abrahamic Religion: अरब मुल्कों में एक नये धर्म की चर्चा जोरों पर है। जिसका न तो कोई अनुयायी है और न ही कोई धार्मिक ग्रंथ। इतना ही नहीं इस धर्म के वजूद को लेकर भी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी है।
इस नये धर्म का नाम इब्राहीम धर्म है और इसे कई लोग एक धार्मिक प्रोजेक्ट (Religious Project) के तौर में देख रहे हैं। ये नया धर्म तीन पुराने धर्मों – ईसाई धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म का मिश्रण है। इस धर्म का नाम पैगंबर अब्राहम (Prophet Abraham) के नाम पर रखा गया है। इस धर्म में इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म की सामान्य बातें और मान्यतायें शामिल हैं।
अरब देशों में इब्राहीम धर्म की चर्चा पिछले एक साल से चल रही है और इस नये धर्म ने कई विवादों को भी जन्म दिया है। इस धर्म के जरिये से एक ऐसे धर्म को बनाने का विचार है कि जिसका न कोई शास्त्र हो, न कोई अनुयायी हो और न ही कोई वजूद हो। इस धार्मिक प्रोजेक्ट का एकमात्र मकसद आपसी मतभेदों को दूर कर पूरी दुनिया में शांति स्थापित करना है।
जो लोग इस नये धर्म की सोच के खिलाफ हैं, उनका मानना है कि ये धोखे और शोषण की आड़ में एक नया राजनीतिक आह्वान (Political Call) है और इस नये धर्म का मुख्य उद्देश्य अरब देशों के साथ इजरायल (Israel) के संबंधों को सामान्य बनाना और बढ़ाना है। इसे इब्राहीम संधि के नाम से भी जाना जाता है।
"अब्राहमिया" शब्द का इस्तेमाल सितंबर 2020 में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इज़राइल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ शुरू हुआ।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके सलाहकार जेरेड कुशनर के जरिये स्पॉन्सर्सड समझौते (Sponsor Agreement) को "अब्राहमियन समझौता" कहा जाता है। उस समय अमेरिकी विदेश विभाग (US State Department) द्वारा ये कहा गया कि अमेरिका तीन अब्राहमिक धर्मों और सभी मानवता के बीच शांति को आगे बढ़ाने के लिये इंटर कल्चर और इंटररिलीजियस संवाद (Intercultural and interreligious dialogue) का समर्थन करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।