Mumbai Terror Attack: आज 13 साल पहले मुंबई पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले की याद देशभर को दहला देती है। जिसे हम 26/11 के हमले के नाम से जानते हैं, तो उस आतंकी हमले के बारे में सोचते ही आपके दिमाग में सबसे पहला नाम क्या आता है?
आप में से ज्यादातर लोग आतंकी आमिर अजमल कसाब (Terrorist Amir Ajmal Kasab) का नाम लेंगे, जो इस हमले में जिंदा पकड़ा गया इकलौता आतंकी था। लेकिन आप में से कितने लोगों को शहीद तुकाराम ओंबले (Tukaram Omble) और मेजर संदीप उन्नीकृष्णन (Major Sandeep Unnikrishnan) के नाम याद हैं, जो इस हमले से मुंबई को बचाते हुए शहीद हुए थे?
ये भारत पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला था। हमला करने वाले 10 आतंकी पाकिस्तान से आये थे। मुंबई में अलग-अलग जगहों पर 60 घंटे तक आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें 9 आतंकी ढेर हो गये। दसवें आतंकी अजमल कसाब को मुंबई पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले ने जिंदा पकड़ा था। उसी दौरान कसाब ने तुकाराम ओंबले के पेट में गोली मार दी। गोली लगने के बावजूद वीर तुकाराम ने कसाब को नहीं बख्शा और शहीद हो गये।
शहीद तुकाराम ओंबले ने अगर उन्होंने कसाब को जिंदा न पकड़ा होता तो दुनिया के सामने भगवा आतंकवाद (Saffron Terrorism) के झूठ का पर्दाफाश न होता। जब पाकिस्तान से आया एक आतंकी आमिर अजमल कसाब पकड़ा गया था, उसके हाथ में एक कलावा (लाल धागा) बंधा हुआ था और वो अपना नाम समीर चौधरी बता रहा था। ये पाकिस्तानी साजिश थी।
इसी तरह राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के मेजर उन्नीकृष्णन (Major Unnikrishnan of the National Security Guard) भी इस हमले में आतंकियों का सामना करते हुए शहीद हो गये। वो इस हमले के दौरान शहादत देने वाले एनएसजी के पहले कमांडो थे। लेकिन तभी एक नेता ने संदीप उन्नीकृष्णन के खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर दी थी जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।
मेजर उन्नीकृष्णन केरल से थे, लेकिन वो और उनका परिवार बैंगलोर में रहता था। तब केरल में माकपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन (Chief Minister VS Achuthanandan) थे। वो मेजर उन्नीकृष्णन के परिवार से मिलने बेंगलुरु पहुंचे थे लेकिन ये एक राजनीतिक दौरा था। इस दौरान जब मेजर उन्नीकृष्णन के परिवार वालों ने केरल के मुख्यमंत्री का विरोध किया तो उन्होंने मेजर उन्नीकृष्णन के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की और कहा कि अगर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद नहीं हुए होते तो एक जानवर भी उनके घर नहीं जाता। यानि देश के जवान अपनी जान दे रहे थे और देश का एक वामपंथी नेता उन शहीदों और उनके परिवारों का अपमान कर रहा था जबकि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने मीडिया से बात की तो कहा कि उन्हें न सिर्फ अपने बेटे पर बल्कि देश के उन सभी सैनिकों पर भी गर्व है जो सीमा पर योद्धाओं की तरह देश की रक्षा कर रहे हैं।
हैरानी की बात ये है कि मुंबई पर हमला करने वाले इन सभी 10 आतंकियों को हिंदू पहचान दी गयी। न सिर्फ उन्हें हिंदू नामों के साथ पहचान पत्र दिये गये, बल्कि उनके हाथों में एक कलावा भी बंधा हुआ था, क्योंकि हिंदू अक्सर अपने हाथों इसे बांधते हैं।
पाकिस्तान ये साबित करना चाहता था कि भारत के हिंदू उनकी सरकार के खिलाफ खड़े हो गये हैं और उन्होंने मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ हथियार उठा लिये हैं। लेकिन इस्लामाबाद (Islamabad) की ये चाल नाकाम रही क्योंकि आमिर अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया।
कैसे 26/11 के हमलों को हिंदू आतंकवाद के तौर पर पेश करने की कोशिश की गयी थी, इसका खुलासा मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया (Former Mumbai Police Commissioner Rakesh Maria) ने अपनी पुस्तक ‘लेट मी से इट नाउ’ में किया। ये किताब साल 2020 में पब्लिश हुई। कसाब से पूछताछ का जिक्र करते हुए राकेश मारिया इस किताब में लिखते हैं कि-
अगर सब ठीक होता तो कसाब मारा जाता, उसके हाथ में लाल धागा यानि कलावा होता। इतना ही नहीं उसके पास से एक आई-कार्ड बरामद हुआ था, जिसमें उसका नाम समीर दिनेश चौधरी लिखा हुआ था। और इस आईडी कार्ड के मुताबिक वो हैदराबाद के अरुणोदय डिग्री और पीजी कॉलेज का छात्र था। उनके घर का पता टीचर्स कॉलोनी, नगरभवी, बैंगलोर था। अगर हमले के दिन कसाब मारा गया होता तो मुंबई पुलिस की एक टीम हैदराबाद जाकर जांच शुरू कर देती। और बैंगलोर में समीर दिनेश चौधरी के घर के बाहर, मीडिया के लोगों की लाइन में लग जाती और हर कोई उसके परिवार और पड़ोसियों का इंटरव्यू लेना शुरू कर देता।
लेकिन अफसोस ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया और पूछताछ में उसने खुलासा किया कि वो पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला है और उसे इस हमले के लिये लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) ने ट्रेनिंग दी है।
अब सवाल ये है कि अगर कसाब के मरने के बाद ये फर्जी आईडी कार्ड बरामद किया गया होता तो हमारे देश की मीडिया एक पल के लिये भी सच्चाई की तह तक जाने की कोशिश करती? शायद नहीं, क्योंकि उसके आतंकवादी होने से बड़ी खबर ये रही होगी कि वो हिंदू आतंकवादी है।
राकेश मारिया उस समय मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट कमिश्नर थे। जबकि हसन गफूर उस समय मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे। लेकिन राकेश मारिया को उस दिन कंट्रोल रूम की जिम्मेदारी दी गयी थी और उन्होंने ही कसाब से पूछताछ की थी।
राकेश मारिया इस किताब में लिखते हैं कि कसाब को यकीन था कि भारत में मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है और भारत की सभी मस्जिदों में ताला लगा हुआ है। यहाँ तक कि अज़ान की जो आवाज़ें कसाब बंद में सुनता था, उसे भी वो अपनी कल्पना ही मानता था।
जब राकेश मारिया को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने एक साथी को कसाब को पास की एक मस्जिद में ले जाने के लिए कहा। कसाब ने जब उस मस्जिद में नमाज़ होती देखी तो वो हैरान रह गया और उसे अपने आप पर विश्वास नहीं हुआ। उसे ये सब नामुमकिन लगा।
क्या विडंबना है कि इन तरीकों से न सिर्फ पाकिस्तान के मुसलमानों को भारत के बारे में उकसाया जाता है, बल्कि भारत के मुसलमानों को भी इसी तरह की हरकतों से धमकाया जाता है।
राकेश मारिया ने अपनी किताब में आगे लिखा है कि एक दिन उसने कसाब से पूछा कि ये सब करने से उसे क्या मिलेगा यानि लोगों का खून बहाकर उसे क्या हासिल होगा और उसने ऐसा क्यों किया?
इसके जवाब में कसाब ने कहा कि साहब आप नहीं जानते कि हमारे मालिक ने हमसे कहा है कि जब आप जिहाद में मारे जायेगें तो हमारी लाशें चमकने लगेंगी और उनमें खुशबू आने लगेगी। जन्नत में हमारा स्वागत होगा, सुंदर हूरें (सुंदर कुंवारी देवकन्यायें) होंगी और स्वर्ग में हमें सभी तरह की सुख-सुविधाएं मिलेंगी। अच्छा जीवन सिर्फ स्वर्ग में ही मुमकिन है, यहां धरती पर नहीं।
इसके बाद राकेश मारिया को बहुत गुस्सा आया और वो कसाब को अस्पताल ले गये जहां बाकी के 9 आतंकियों की लाशें रखी गयी थी।
राकेश मारिया कसाब को वहाँ ले गये और कहा ये देखो ये तुम्हारे जिहादी दोस्त हैं जो जन्नत में हैं। मारिया के मुताबिक ये देखकर कसाब का मुंह खुला रह गया। शवों से बदबू आ रही थी और वहां खड़ा होना भी मुश्किल था।
तभी राकेश मारिया ने कसाब से पूछा कि तुम्हारे मालिक ने कहा है सुगंध, वो सुगंध कहां है और चमकीला शरीर कहां है?
मारिया बार-बार कसाब से ये बातें पूछती रहे लेकिन कसाब के पास इसका कोई जवाब नहीं था। फिर मारिया ने कसाब से कहा कि जिहाद में मरते ही शरीर चमकने लगता है तो तुम्हारे मालिक खुद जिहाद में अपनी जान क्यों नहीं दे देते और जन्नत में मजे करते। ये बातें सुनकर कसाब का चेहरा सूख गया और वो जमीन पर बैठ गया।
लेकिन मारिया के मुताबिक कसाब ने अपने गुनाहों के लिये माफी नहीं मांगी क्योंकि उसे शायद एहसास हुआ कि बहुत देर हो चुकी है और वो अपने ही आकाओं की साजिश का शिकार हो गया था।
राकेश मारिया ने इस किताब में मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाये हैं। 26/11 का हमला एक बहुत बड़ा आतंकवादी हमला था और आतंकवादियों को मारने में तीन दिन लगे। उस वक्त मीडिया इस हमले की लाइव कवरेज कर रहा था और आतंकी भारत के न्यूज चैनल देखकर अपनी आगे की रणनीति तैयार कर रहे थे।
मारिया ने इस किताब में लिखा है कि कैसे आतंकियों ने सीधे एक न्यूज चैनल से संपर्क किया और ताज होटल में मौजूद एक आतंकी ने चैनल को लाइव इंटरव्यू दिया। उन्होंने न्यूज एंकर के सामने अपनी सारी मांगें रखीं और फिर उस एंकर ने अपने सीनियर्स को बुलाया और बताया कि ये इंटरव्यू कितना शानदार था।
मारिया के मुताबिक इन आतंकियों को हिंदी बोलने की ट्रेनिंग दी गयी थी और कहा गया था कि पूछने पर खुद को हैदराबाद का रहने वाला बता दें। यानि आतंकियों को कहीं पता था कि इंडियन मीडिया इस मौके को हाथ से जाने नहीं देगी और उन्होंने उसी के मुताबिक तैयारी की थी।
इन आतंकियों को हिंदी के कठिन शब्द भी सिखाये जाते थे ताकि किसी को इनकी भाषा पर शक न हो। अब आप सोच रहे होंगे कि हमारे देश का मीडिया कैसे आतंकियों के जाल में आ गया और जाने अनजाने में मीडिया की लाइव कवरेज और हौंसले ने आतंकियों की राह आसान कर दी।
कसाब को मुंबई की आर्थर रोड जेल (Arthur Road Jail) में रखा गया था और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (Underworld Don Dawood Ibrahim) को कसाब को मारने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी क्योंकि कसाब ही पाकिस्तान के खिलाफ एकमात्र ज़िंदा सबूत था और पाकिस्तान उसे हर कीमत पर छुड़ाना चाहता था।
कुल मिलाकर कसाब को पहले न सिर्फ धर्म के नाम पर उकसाया गया और वो भारत पर हमला करने के लिए तैयार था, बल्कि उसे भारत की गलत तस्वीर भी दिखायी गयी, जहां मुसलमानों पर अत्याचार होता है। मौत के वक्त ही कसाब समझ गया होगा कि उसके आकाओं ने उससे न सिर्फ झूठ बोला बल्कि उसे धर्म और जिहाद के नाम पर मरने के लिये भारत भी भेज दिया। लेकिन आज हमारे ही देश के कुछ लोग जो खुद को राजनीति का मालिक समझते हैं, वो भी देश के मुसलमानों को ऐसी झूठी तस्वीरें दिखाते हैं और अपने ही देश के खिलाफ भड़काते हैं।
26/11 के हमले के वक़्त महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी और देश में यूपीए का शासन था। सभी को उम्मीद थी कि भारत इस हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी सैन्य कार्रवाई करेगा लेकिन उस समय की सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। इस हमले से सात साल पहले 9/11 को अमेरिका पर हमला हुआ था। इस हमले के तुरंत बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान और अलकायदा (Taliban and Al Qaeda) के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिये। भारत चाहता तो पाकिस्तान के खिलाफ भी ऐसी ही कार्रवाई कर सकता था, लेकिन उस समय की सरकार ने ये हिम्मत नहीं दिखायी।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी (Congress leader Manish Tewari) ने हाल ही में एक किताब लिखी है, जिसका नाम है- 10 फ्लैश पॉइंट, 20 ईयर। इसमें उन्होंने 26/11 हमले का भी जिक्र किया है। इसमें वो लिखते हैं कि जब कोई राष्ट्र संयम दिखाता है तो कभी-कभी ये शौर्य की नहीं बल्कि कमजोरी की निशानी होती है, अक्सर एक समय ऐसा आता है, जब आपके कामों को आपके शब्दों पर भारी पड़ना चाहिये। 26/11 ऐसा ही एक समय था। इसलिए मुझे लगता है कि भारत को इस हमले के बाद पाकिस्तान को तुरन्त कड़ा जवाब देना चाहिए था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान दिवस (Constitution Day) कार्यक्रम के दौरान 26/11 के हमलों का भी जिक्र किया और इस हमले में शहीद हुए मुंबई पुलिस और भारतीय सेना के जवानों को याद किया।