Epidemic: बच्चों की दिमागी सेहत पर सीधा असर डालती महामारी

दो साल पहले तक दुनिया भर में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चे स्कूल जा रहे थे। लेकिन जब महामारी (Epidemic) आयी तो सरकारों ने सबसे पहले बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए स्कूलों को बंद कर दिया। छोटे बच्चों को नोवल कोरोना वायरस (Novel Corona Virus) से बचाना जरूरी था। बच्चों से जुड़ी दूसरी चिंता ये थी कि पढ़ाई कैसे चलेगी। इसके लिए विकल्प के तौर पर ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) का इस्तेमाल किया गया।

पिछले दो साल से ज्यादातर बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, जिसके फायदे और नुकसान का अध्ययन दुनियाभर के शोधकर्ता लगातार कर रहे हैं। हाल ही में भारत के 250 मिलियन से ज़्यादा स्कूली बच्चों को मद्देनज़र रखते हुए अमेरिका की एक निजी एजेंसी बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (Private Agency Boston Consulting Group) ने एक रिसर्च की, जिसमें कोरोना वायरस के कारण बच्चों पर स्कूल बंद होने के प्रभाव का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया।

इस शोध की सबसे बड़ी खोज ये थी कि ऑनलाइन अध्ययनों ने बच्चों में सामाजिक और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Social And Emotional Intelligence) के विकास में बड़ी रूकावट पेश की है। बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो दूसरे बच्चों से भी बहुत कुछ सीखते हैं। स्कूल में उन्हें न सिर्फ दूसरें बच्चों के साथ बल्कि शिक्षकों के साथ भी संवाद करने का मौका मिलता है। इसमें कुछ चीजें बच्चों के लिये अच्छी होती हैं और कुछ चीजें खराब। बच्चे स्कूल में अच्छी चीजों पर प्रतिक्रिया करना सीखते हैं और बुरी चीजों पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

हालांकि 90 फीसदी से ज़्यादा बच्चे पिछले दो सालों से सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा से वंचित थे क्योंकि उन्हें ऑनलाइन कक्षाओं में ऐसी सुविधा नहीं मिल पायी। स्कूल के शिक्षक भी इसी संकट से जूझ रहे हैं, क्योंकि जब बच्चे स्कूल में पढ़ने आते थे तो शिक्षकों का हर बच्चे के साथ भावनात्मक रिश्ता होता था. उन्होंने बच्चों के चेहरे देखे और समझ गये कि कौन सा बच्चा पाठ को समझता है और कौन नहीं। बच्चे ने अपना गृहकार्य किया या नहीं? अगर होमवर्क नहीं किया तो उसका क्या कारण था? ऐसी सभी बातों का ध्यान शिक्षकों ने रखा लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई में भी ये मुमकिन नहीं था।

इस रिसर्च में 71 फीसदी माता-पिता ने बताया कि उनके बच्चे का तीन महीने या उससे ज़्यादा समय तक किसी तरह का कोई टेस्ट नहीं हुआ। अगर एक्ज़ाम नहीं होते है तो माता-पिता को ये भी पता नहीं चल पाता है कि बच्चा ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ समझ रहा है, या कि वो सिर्फ कंप्यूटर और मोबाइल पर टाइम पास कर रहा है।

बच्चे समय पर अपना मोबाइल या कंप्यूटर खोलकर बैठ जाते हैं। इससे अभिभावकों की चिंता भी बढ़ गयी है, क्योंकि जब स्कूल खुले तो बच्चों के सोने, जागने, स्कूल जाने, खेलने, खाने, सब कुछ के लिये एक तयशुदा टाइम टेबल (Fixed Time Table) थी। लेकिन इस स्टडी में 49 फीसदी अभिभावकों ने माना कि जब से उनके बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की है, बच्चों के पास न तो पढ़ने का कोई निश्चित समय है और न ही सोने या खाने-पीने का। बाहर खेलना भी लगभग बंद ही हो गया है।

ये रिसर्च भारत में की गयी है, लेकिन स्कूल बंद होने और ऑनलाइन पढ़ाई का नुकसान देश तक ही सीमित नहीं है। पूरी दुनिया में स्कूलों और बच्चों के सामने ऐसा ही संकट है। यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष) ने बताया है कि 635 मिलियन से ज़्यादा बच्चे कोरोना वायरस की वज़ह से आंशिक या पूरी तरह स्कूल बंद होने से पीड़ित हैं क्योंकि ऑनलाइन अध्ययन करने वाले कई बच्चे पाठ्यक्रम को नहीं समझ पाते हैं।

आखिर में शोध में शामिल 80 फीसदी से ज़्यादा शिक्षकों का मानना ​​था कि ऑनलाइन पढ़ाते समय वे चाहकर भी बच्चों के साथ भावनात्मक संबंध नहीं बना पाते हैं, जो न तो बच्चों के लिये ठीक है और न ही शिक्षक के लिये अच्छा। .

90 फीसदी शिक्षकों के लिये भी ये एक चुनौती है। पढ़ाने के बाद परीक्षा भी ऑनलाइन कराई जानी चाहिये। अब शिक्षकों के पास ये पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि ऑनलाइन परीक्षा देने वाले कितने बच्चे पढ़ रहे हैं और जवाब दे रहे हैं और कितने बच्चे धोखा दे रहे हैं या किसी की मदद ले रहे हैं। माता-पिता भी उतने ही परेशान हैं। जब स्कूल खुलते थे तो माता-पिता एक-दूसरे से बात कर सकते थे। लेकिन जबसे स्कूल बंद हुए तो अभिभावकों को एक नयी चिंता सताने लगी।

कई अमेरिकी राज्यों में स्कूलों में तीसरी कक्षा के दो-तिहाई बच्चों के लिये गणित के मामूली सवालों को हल करना मुश्किल हो रहा है। गरीब और कम आय वाले देशों में 100 में से 70 बच्चे साधारण वाक्य भी नहीं लिख पाते हैं।

एक बात हमें याद रखनी चाहिए कि अलग-अलग देशों, राज्यों, शहरों और गांवों में हालात अलग-अलग हैं। इसलिये चुनौतियां हर जगह अलग हैं। आपको शहर में रहने वाले ऐसे कई माता-पिता मिल जायेगें जो ऑनलाइन पढ़ाई से संतुष्ट हैं और स्कूल खुलने पर भी अपने बच्चे को बाहर भेजने को तैयार नहीं हैं। उनके पास अपने बच्चों की शिक्षा के लिये कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन हैं। अगर घर में वाई-फाई कनेक्शन है और बिजली चली जाती है तो इन्वर्टर और जनरेटर का पावर बैकअप भी होता है। ऐसे परिवारों के बच्चे ऑनलाइन सबसे अच्छा विकल्प महसूस कर रहे हैं, लेकिन जो लोग छोटे शहर या गांव में हैं, उनके लिये ऑनलाइन पढ़ाई का कोई मतलब नहीं है।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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