Russia Ukraine Conflict: आखिर जंग को लेकर क्यों बढ़ रही है अमेरिका की बेताबी?

रूस और अमेरिका ने पूरे विश्व का तापमान सुलगा रखा है। जंगी फिज़ाओं के बीच हाल ही में रूस की राजधानी मॉस्को से बड़ी अंतर्राष्ट्रीय खबर सामने आयी। जहां फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (French President Emmanuel Macron) ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) से मुलाकात की। रूस के बाद आज इमैनुएल मैक्रों भी यूक्रेन की यात्रा करेंगे, जहां एक अहम बैठक होने वाली है। इमैनुएल मैक्रॉन ने अपनी यात्रा से ठीक पहले ये कहकर अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों को चौंका दिया है कि रूस और यूक्रेन के बीच अभी भी एक सौदा हो सकता है, जो कि कीव युद्ध की संभावना से बचा सकता है। लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं चाहता।

अमेरिका ने कहा है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला करके जंग शुरू कर सकता है। हाल ही में इस पर अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों (US Security Agencies) ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने के लिये 70 फीसदी तक तैयार है। अमेरिका ने ये भी चेतावनी दी है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसकी सेना 48 घंटे के भीतर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंच जायेगी और युद्ध में यूक्रेन के हितों की रक्षा करेगी। यानि कि फ्रांस जैसे मुल्क जंग पर नरम रुख अपना रहे हैं, जबकि अमेरिका युद्ध को लेकर भड़काऊ राजनीति कर रहा है।

आखिर जंग को लेकर इतना उतावला क्यों हो रहा है वाशिंगटन?

युद्ध हो या न हो दोनों ही सूरतों में हथियारों की बहुत जरूरत होती है। अगर किसी देश को लगता है कि उसकी संप्रभुता को खतरा हो सकता है और दुश्मन देश उस पर हमला करके उसकी शांति भंग कर सकता है तो इन हालातों में वो मुल्क ज़्यादा हथियार इकट्ठा करना शुरू कर देता है।

यानि वो देश हथियारों का बड़ा खरीदार बन जाता है और यूक्रेन के मामले में यही हो रहा है। यूक्रेन सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका से खरीदता है। ऐसे में युद्ध की संभावना या युद्ध का होना दोनों ही मामलों में अमेरिका के लिये बेहतरीन कारोबारी सौदों के आसार बनेगें। इसलिए वो इस संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। मौजूदा वक़्त में दुनिया के 37 फीसदी हथियार संयुक्त राज्य अमेरिका ही दुनियाभर को बेचता हैं।

यानि हथियार बेचने के लिये अमेरिका दुनिया भर में किसी न किसी देश में जंग के हालात बनाये रखता है। मिसाल के लिये पहले उसने इराक में सैन्य अभियान चलाया। फिर अफगानिस्तान (Afghanistan) में 20 साल तक तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अब वो यूक्रेन को हथियारों के बड़े खरीदार के तौर पर देख रहा है। और ऐसा इसलिये है क्योंकि अगर यूक्रेन (Ukraine) और रूस के बीच लड़ाई होती है तो एक से ज़्यादा मुल्क इसमें हिस्सा लेंगे और ये मुल्क हथियारों के लिये काफी हद तक संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर होंगे।

यहां एक और बात ये है कि ज्यादातर देश सोचते हैं कि यूक्रेन रूस (Russia) से 48 घंटे तक नहीं लड़ पायेगा। लेकिन ये भी सच है कि यूक्रेन दुनिया का 12वां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक (Arms Exporter) देश है। और 2010 तक इसकी गिनती टॉप टेन देशों में होती थी। और इसकी एक वज़ह रूस भी है। साल 1991 तक रूस और यूक्रेन दोनों सोवियत संघ (Soviet Union) का हिस्सा थे, और सोवियत संघ के लिये बनाये गये ज़्यादातर हथियार कारखाने यूक्रेन में थे। साल 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो ये कारखाने और हथियार तकनीक यूक्रेन के लिये बड़े तौहफे के पर बनकर उभरी। इस तकनीक को बेचकर यूक्रेन हथियारों के क्षेत्र में एक बड़ा खिलाड़ी बना हुआ है।

यानि इस मामले में कूटनीति भी देखने को मिल रही है और सीमा पर तैनाती भी देखी जा रही है। फिलहाल यूक्रेन तीन मोर्चों पर रूस से घिरा हुआ है। पूर्वी यूक्रेन, उत्तर पूर्वी यूक्रेन और उत्तरी यूक्रेन। यूक्रेन से लगी करीब 450 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा (International Border) पर रूस के 15 लाख सैनिक खतरनाक हथियारों के साथ तैनात हैं। लेकिन यूक्रेन की सीमाओं के अंदर क्या हो रहा है, आप शायद नहीं जानते।

यूक्रेन की सैन्य ताकत रूस के मुकाबले में बेहद कम है। इसलिये यूक्रेन में क्षेत्रीय सुरक्षा बल भी विकसित किये जा रहे हैं, जिसका मकसद 10,000 स्थायी और प्रशिक्षित सैनिकों को तैनात करना है। और कुल 1 लाख 30,000 सैनिकों का रक्षा बल तैयार करना है।

दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों के लिये यूक्रेन एक शतरंज की बिसात की तरह है, जिसके जरिये वे अपने हितों की पूर्ति करना चाहते हैं। लेकिन यूक्रेन के आम नागरिकों के लिये ये जीने-मरने की जंग है। और लोग इस कड़ाके के ठंड के मौसम में अपनी नौकरी और ट्रेनिंग को छोड़ रहे हैं।

युद्ध की आशंका के बीच यूक्रेन के नागरिक और वहां रहने वाले दूसरे देशों के लोग भी चिंतित हैं। ज़्यादातर यूक्रेनी नागरिक रूस को इस संघर्ष का अपराधी मानते हैं और राजधानी कीव (Capital Kiev) में रूस के खिलाफ लगातार प्रदर्शन होते रहते हैं। इनमें से कई भारतीय मूल के भी हैं, जो युद्ध के पक्ष में नहीं हैं। और वे चाहते हैं कि इस समस्या का समाधान तैनाती से नहीं बल्कि कूटनीति से हो।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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