Indian Diplomacy: बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक (Winter Olympics in Beijing) का भारत का राजनयिक बहिष्कार और बीते सप्ताह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में यूक्रेन के मसले पर यूएन की कार्रवाई से नदारद होकर नई दिल्ली ने कूटनीतिक मोर्चें पर बेहद संतुलित दांव चला। पहले मामलें में भारत सरकार ने अपना सशक्त पक्ष लिया और दूसरी जगह अपनी गैरमौजूदगी दर्ज करवाकर स्टैंड न लेने की कवायद से पूरी दुनिया का अवगत करवा दिया।
भारत के राजनयिक बहिष्कार का कथित कारण चीन द्वारा ओलंपिक समारोहों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक की प्रमुख भूमिका है, जिसने गलवान में अपनी देखरेख में सैन्य कार्रवाई को अंज़ाम दिया था।
बीजिंग खेलों के उद्घाटन और समापन समारोह में नई दिल्ली के बहिष्कार को अमेरिकी झुकाव (American leanings) से जोड़ कर देखा जा रहा है। जबकि दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC- United Nations Security Council) यूक्रेन के मामले पर चर्चा के दौरान भारत की अनुपस्थिति को रूस ने खुलकर अपने पक्ष में माना। बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक खेलों का अलग-अलग पश्चिमी मुल्कों ने अलग अलग कारणों से बहिष्कार किया। जबकि भारत ने एथलीट दल में अपना एक ही खिलाड़ी भेजा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 31 जनवरी की बैठक में, भारत ने यूक्रेन पर रूसी स्थिति की ओर अपने झुकाव को दिखाने करने के लिये वोट मांगने वाली चर्चा में हिस्सा नहीं लिया। जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत यूएनएससी के दस सदस्यों ने चर्चा के पक्ष में मतदान किया, रूस और चीन ने इन चर्चाओं को रोकने की पुरजोर कोशिश लेकिन दोनों नाकाम रहे।
आज भारत अमेरिका के साथ वैसा ही जुड़ा हुआ है जैसा पहले कभी नहीं था। हाल के सालों में भारत-अमरीकी संबंध लॉजिस्टिक्स समझौते और बहुआयामी सैन्य-रणनीतिक पहलू (Multifaceted Military-Strategic Aspects) समेत कई स्तरों पर गहरे हुए हैं। वहीं चीन के साथ भारत के संबंध और खराब हुए हैं, खासकर पूर्वी लद्दाख में सैन्य आमने-सामना के बाद। रक्षा सहयोग के साथ भारत-रूस संबंध मजबूत और सामरिक महत्व के हैं, जैसा कि भारत का अमेरिका के साथ है। भारत अमेरिका और रूस दोनों से भारी मात्रा में सैन्य हार्डवेयर खरीदता है।
इसलिये यूएनएससी में यूक्रेन (Ukraine) के मुद्दे पर अमेरिका और रूस के बीच भारत को पक्ष नहीं लेना चाहता था। नई दिल्ली ने अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने हितों को बनाये रखने के लिये बेहद महीन पैंतरा आजमाया। जिसमें भारत कामयाब रहा। इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति (TS Tirumurti, Permanent Representative of India to the United Nations) ने कहा कि, “भारत का हित एक ऐसा समाधान खोजने में है जो सभी देशों के वैध सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए तनाव को तत्काल कम कर सके और इसका मकसद देश में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता हासिल करना है। इस तरह की अभिव्यक्ति का मतलब न तो रूस के कार्यों की आलोचना है और न ही रूस के खिलाफ अमेरिका के अगुवाई वाले कदमों का समर्थन।”
हालांकि रूस को राहत मिल सकती है और पक्ष चुनने में भारत की नाकामी से अमेरिका निराश हो सकता है, कड़े कदम से पता चलता है कि भारत इस बड़े शक्ति संघर्ष में नहीं आने के लिये दृढ़ है। नई दिल्ली बीच के संतुलित रास्ते की पैराकारी करता है ताकि सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी देशों के साथ उसके स्थायी हित बने रहे वरना प्रतिद्वंद्वी शक्ति केंद्रों के दबाव से हर समय बीच के रास्ते पर चलना मुश्किल हो जायेगा।
दुनिया की बड़ी जंगी ताकतें इस ताकत के खेल में सहयोगियों की दरकार रखती है, जैसे कि रूस-चीन और नाटो गठबंधन। ऐसे में जो मुल्क किसी के साथ खड़े होकर पक्ष नहीं ले रहे है तो वो संतुलन बनाने की जद्दोजहद में मज़बूरी और नतीज़ों के बीच पीसकर रह जाते है। ऐसे में ब्रिक्स और आरआईसी जैसों मंचों पर बातचीत करने में मुश्किल चुनौतियां पैदा हो सकती है। जहां भारत सरकार बिना अमेरिकी दखल के चीन और रूस मुद्दे उठाती है। दूसरी ओर इंडो-पैसिफिक (Indo-Pacific) में अमेरिकी अगुवाई वाला क्वाड गठबंधन जहां चीन के खिलाफ भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने मोर्चेबंदी बना रखी है। और खुद को बीजिंग के सामने मजबूती से खड़ा किया है।
दिलचस्प ये भी है कि इस हफ़्ते ऑस्ट्रेलिया में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक कुछ संकेत दे सकती है कि आखिर भारत महाशक्तियों के द्वारा बिछायी गयी इस बिसात में अपनी चाल कैसे और किस दिशा में आगे बढ़ाता है।
हालांकि जो साफ है वो ये है कि भारत को वैश्विक मंच पर अपनी तटस्थ प्रोफाइलिंग से समझौता करना होगा। जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि- वैश्विक व्यवस्था बदल रही है। इन हालातों के बीच विदेश मामलों में भारत को मतभेदों और विवाद में पड़ने से लगातार सावधान रहना होगा और ये ध्यान में रखना होगा कि “घरेलू सुधारों का असल में वैश्विक महत्व है”।
इसी मुद्दे को लेकर हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि- “अगर भारत को वैश्विक सूची में ऊंचा पायदान हासिल करना है तो उसे खुद को बदलना होगा। दुनिया और खासतौर से पड़ोस मुल्क टकटकी लगाये बैठे है कि भारत कैसे खुद को बदलता है।”