Russia Ukraine War: आखिर में मास्को और कीव के बीच इन्हीं शर्तों पर रूक सकती है जंग

रूस और यूक्रेन के बीच जंग (Russia Ukraine War) जारी है और अब ये जंग 12वें दिन में पहुंच गयी है, जब रूस ने पहली बार 24 फरवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि ये जंग और तनातनी कैसे खत्म होगी। दोनों देशों के बीच पहले ही दो दौर की बातचीत गतिरोध में खत्म हो चुकी है और तीसरा दौर शुरू हो रहा है।

लेकिन ऐसा नहीं लगता कि रूस भी युद्ध से इतनी आसानी से बाहर निकलने वाला है। पुतिन का यूक्रेन के साथ रुकने का कोई इरादा नहीं है। हर बार रूसी राष्ट्रपति दूसरे देशों में अपने हमलों को सही ठहराने के लिये झूठे हालात पैदा करते रहे हैं। उन्होंने अगस्त 2008 के रूसी हमले हमले को सही ठहराने के लिये जॉर्जिया (Georgia) पर आक्रमण का झूठा आरोप लगाकर इसकी शुरुआत की।

पुतिन ने यूक्रेन के डोनबास (Donbass) अलगाववादियों का समर्थन किया, जिन्हें तैयार करने, बनाने और हमला करने में पुतिन ने उनकी काफी मदद और फिर साल 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया इलाके पर कब्जा कर लिया। इस बार भी पुतिन ने वही रणनीति खेली, जिसमें यूक्रेन पर मास्को ने आरोप लगाया कि रूसी हितो की अनदेखी करते हुए कीव वाशिंगटन (Washington) के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। यूक्रेन पर हमला करने से पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में दो अलगाववादी इलाकों डोनेट्स्क और लुहान्स्क (Donetsk and Luhansk) को आज़ादी मुल्कों के तौर पर मंजूरी दी।

जंग रूकने की जरूरी शर्तें

1. संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो सैन्य हथियारों की मदद से यूक्रेनी प्रतिरोध पुतिन को रोकने के लिये नाकाफी नहीं होगा। जब तक अमेरिका और नाटो ‘सीधी सैन्य नहीं देने’ की अपनी नीति से समझौता नहीं कर लेते। यूक्रेन बुरी तरह से लड़ाई हार सकता है। पश्चिम बड़े पैमाने जंग का जोखिम नहीं उठायेगा

ये वास्तविकता यूक्रेन के लोगों के लिये दुखद है, जो पश्चिम के लिये बड़ी नैतिक चोट है। साथ ही ये उन अमेरिकी राजनीतिक और सैन्य नेताओं का अपमान है, जिन्होंने उस व्यवस्था को बनाने के लिए कड़ी मेहनत की, जिससे वो और उनके सहयोगी इतने लंबे समय से फायदे में रहे। इसका मतलब है कि यूक्रेन की हार के साथ जंग खत्म हो सकती है।

2.  रूस ने पश्चिमी सैन्य गठबंधन नाटो (Military Alliance NATO) को उन ज्यादातर इलाकों से बाहर निकालने के लिये चार सूत्री फॉर्म्यूला तैयार किया है, जो कभी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे। पश्चिम से रूस की मांगों में नाटो के सदस्यों से कानूनी तौर से बाध्यकारी आश्वासन शामिल है कि यूरोप के पूर्वी बेल्ट में कोई और विस्तार नहीं होगा, जो रूसी सीमाओं को खतरे में डालता है। ये यूक्रेन में युद्ध को रोकने के लिये रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (President Vladimir Putin) द्वारा रखी गयी शर्तों में से एक है।

3. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के साथ बातचीत जारी रखने के लिये तैयार हैं, अगर वो सभी ‘रूसी जरूरतों’ को पूरा करता है। पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन की सेना रूसी सेना के सामने आत्मसमर्पण करे। इसका मतलब ये है कि वो यूक्रेन में लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गयी वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) सरकार को गिराना चाहते है और राष्ट्रपति को हटाकर अपनी कठपुतली सरकार कीव में बनाना चाहते है। ऐसे में वो यूक्रेन से अपनी कुछ सेना निकाल लेगें और जंग रुक जायेगी।

4. मास्को ने मांग की कि नाटो को सबसे पहले ‘बुखारेस्ट फॉर्मूला’ को छोड़ देना चाहिये, जिसे नाटो ने साल 2008 के बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन (Bucharest Summit) में अपनाया था। बुखारेस्ट फॉर्मूला अमेरिका की अगुवाई वाले सैन्य ब्लॉक में यूक्रेन और जॉर्जिया के साथ रखने की सोच रखी गयी थी। इस पर रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Russian Foreign Minister Sergei Lavrov) ने कहा कि, “पश्चिमी मुल्कों को पूर्व यूएसएसआर राज्यों के इलाकों में सैन्य सुविधायें स्थापित करने से बचना चाहिये, जो कि नाटो गठबंधन के सदस्य नहीं हैं, इसमें किसी भी सैन्य गतिविधि के संचालन के लिये उनके बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल ना करना भी शामिल है।”

 5. अगर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उनके पद से हटा दिया जाता है तो रूस और यूक्रेन के बीच जंग के खात्मे की पुख़्ता संभावना है। अगर यूक्रेन से लड़ने वाले रूसी सैनिकों की जान यूं ही लगातार जाती रहती है तो इससे न सिर्फ अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है बल्कि पुतिन को रूसी जनसमर्थन खोना पड़ सकता है। रूस के सैन्य, राजनीतिक और धनी लोगों के पुतिन के खिलाफ जाने से शायद मास्को (Moscow) के भीतर क्रांति का भी खतरा है। पश्चिम ने ये साफ कर दिया है कि अगर पुतिन चले जाते हैं और एक सामान्य नेता उनकी जगह लेता है तो रूस के कुछ प्रतिबंध हटाये जा सकते हैं और राजनयिक संबंधों में भी सुधार हो सकता है।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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