Russia Ukraine War: रूस ने अमेरिका और पश्चिमी देशों पर गंभीर आरोप लगाये। जिसमें कहा गया कि अमेरिका इस जंग में यूक्रेन की सेना की मदद कर रहा है। पिछले 13 दिनों में उसने यूक्रेन को 500 से ज्यादा स्टिंगर मिसाइलें दी हैं। जर्मनी ने 500 स्टिंगर मिसाइलें; नीदरलैंड (Netherlands) 200 और बाकी नाटो देशों ने यूक्रेन को 700 स्टिंगर मिसाइलें दी। जर्मनी ने यूक्रेन की सेना को 1,000 टैंक रोधी मिसाइलें भी भेजी हैं। इसके अलावा अमेरिका ने पोलैंड (Poland) और यूक्रेन की सीमा पर एक हवाई इलाका बनाया है, जहां यूक्रेन को अमेरिका और अन्य पश्चिमी मुल्क आसमानी हिफाजत दे रहे है।
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन (US Secretary of State Antony Blinken) ने पोलैंड-यूक्रेन सीमा पर यूक्रेन के विदेश मंत्री से खुद मुलाकात की। अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन में वो सब कुछ कर रहे हैं, जो उन्होंने कभी अफगानिस्तान के लिये किया था। यानि जिस तरह इन देशों ने सोवियत संघ (Soviet Union) और सोवियत रूस को हराने के लिये अफगानिस्तान को अस्थिर किया, उसी तरह आज ये सभी देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर शांति और लोकतंत्र की बात कर रहे हैं, लेकिन साथ ही वे यूक्रेन को हथियार भेज रहे हैं और इस जंग की आग को हवा दे रहे हैं।
1980 के दशक में जब अफगानिस्तान (Afghanistan) पर सोवियत संघ का नियंत्रण था और यहां तक कि जब मुजाहिदीन संगठन उसकी सेना के खिलाफ लड़ रहे थे, तब भी अमेरिका और नाटो देशों ने उसी तरह उनकी मदद की थी। अमेरिका ने उस समय मुजाहिदीन संगठनों को स्टिंगर मिसाइलें देकर सोवियत संघ को हराने के लिये युद्ध की आग सुलगाई थी। और फिर तालिबान के मुजाहिदीन इन मिसाइलों की मदद से सोवियत संघ के विमानों को आसानी से मार गिराने में कामयाब रहे। और यही अमेरिका आज भी कर रहा है।
वो यूक्रेन को ज़्यादा से ज़्यादा स्टिंगर मिसाइलें दे रहा है, जिससे रूसी वायु सेना को इस जंग में भारी नुकसान उठाना पड़े। अफगानिस्तान युद्ध के समय अमेरिका ने सोचा था कि आतंकवाद सिर्फ एशियाई मुल्कों की समस्या है, लेकिन जब 9/11 के हमले हुए तो उसने 2001 में तालिबान की सरकार को हटा दिया, अपने सैनिकों को अफगानिस्तान भेज दिया और पूरे देश को जंगी आग में धकेल दिया। जंगी बादल करीब दो दशकों तक अफगानिस्तान पर छाये रहे। अगर अमेरिका यूक्रेन में भी ऐसा करने में कामयाब हो जाता है तो यो युद्ध लंबे समय तक चलेगा। और जैसे अभी एशिया में अफगानिस्तान है, वैसे ही यूरोप में भी अफगानिस्तान होगा, जिसे दुनिया यूक्रेन के नाम से जानेगी।
आज इन दोनों देशों में अस्थिरता और डर का माहौल है। दोनों देशों के नागरिक दुनिया में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि सभी यूरोप (Europe) के अफगानिस्तान यानि यूक्रेन के लोगों को पनाह दे रहे हैं, लेकिन एशिया के अफगानिस्तान को किसी ने मदद नहीं दी क्योंकि एशिया में अफगानिस्तान में नीली आंखों और भूरे बालों वाले लोग नहीं रहते हैं। वो ईसाई नहीं हैं और उनकी चमड़ी गोरी नहीं है।
पिछले 13 दिनों में दो मिलियन यूक्रेनी यूरोपीय देशों में शरण लिये हुए हैं। पिछले एक साल में अफगानिस्तान में मुश्किल से तीन लाख लोग दुनिया में शरण नहीं ले पाये हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध बीते 13 दिनों से चल रहा है और अब तक रूसी सेना ने ज्यादातर पूर्वी यूक्रेन, दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन, दक्षिणी यूक्रेन और उत्तरी यूक्रेन पर कब्जा कर लिया है। और अब इन सभी इलाकों से उनकी जंगी टुकड़ियां मध्य यूक्रेन की ओर बढ़ रही हैं। इसके अलावा रूस का दावा है कि उसके सैनिक कीव में राष्ट्रपति भवन से सिर्फ 16 किलोमीटर दूर हैं। और उत्तरी कीव (North Kyiv) के इलाकों में यूक्रेन और रूस के बीच सैन्य संघर्ष जारी है। बीते 24 घंटों में युद्ध ने विकराल रूप ले लिया है। और शायद अब रूस कीव पर बड़ी कार्रवाई करेगा। क्योंकि कीव में इरपिन जैसे रिहायशी इलाकों की ज्यादातर इमारतें अब तबाह हो चुकी हैं और यहां एक भी आम नागरिक नहीं बचा है। यानि कीव बहुत तेजी से खाली हो रहा है और ये खाली इलाके युद्ध के शोर से गूंज रहे हैं।
अमेरिका और ब्रिटेन (America and Britain) ने रूस के तेल और गैस आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन पुतिन ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ तो वो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की सप्लाई बंद कर देंगे और यूरोप को जिस गैस की सप्लाई की जरूरत है उसे भी बंद कर दिया जायेगा। अगर रूस ऐसा कदम उठाता है तो कच्चे तेल की कीमतें 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी, जो पहले से ही ऐतिहासिक स्तर पर हैं। आज युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें 139 डॉलर प्रति डॉलर पर पहुंच गईं, जो साल 2008 के बाद सबसे ज्यादा है। इसका सीधा असर भारत और भारत के आम लोगों की जेब पर पड़ेगा। आने वाले महीनों में पेट्रोल 150 रुपये प्रति लीटर के आंकड़े को भी पार कर सकता है।
अमेरिका और नाटो यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की (President Zelensky) ने कहा है कि ये मदद समुद्र में पानी की बूंद के बराबर है। ज़ेलेंस्की चाहते है कि नाटो यूक्रेन के युद्धग्रस्त इलाकों को नो-फ्लाई ज़ोन घोषित करे, लेकिन नाटो ने आधिकारिक तौर पर ऐसा करने से इनकार कर दिया है और ज़ेलेंस्की इसे यूक्रेन के साथ पश्चिमी देशों का विश्वासघात बता रहे है।
जानकारी के लिये बता दे कि नो-फ्लाई ज़ोन शब्द का इस्तेमाल खास हवाई इलाके के लिये होता है। जहाँ ये सुनिश्चित किया जाता है कि उस इलाके में किसी भी देश का विमान उड़ान नहीं भर सकता है। साल 2011 में नाटो ने लीबिया के कई इलाकों को नो-फ्लाई जोन की श्रेणी में रखा था, ताकि लीबिया (Libya) के तानाशाह गद्दाफी विद्रोहियों के खिलाफ अपनी वायु सेना का इस्तेमाल न कर सकें। और ज़ेलेंस्की भी यही चाहते है।
दरअसल जब नाटो किसी इलाके को नो फ्लाई जोन में डालता है तो उस इलाके में नाटो देशों के विमान मंडराने लगते हैं। और अगर किसी दूसरे देश का सैन्य विमान उस हवाई इलाके में आता है तो उस पर हमला कर तबाह कर दिया जाता है। अब अगर यूक्रेन में ऐसा होता है तो नाटो सीधे इस जंग में शामिल हो जायेगा और व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) पहले ही कह चुके हैं कि ऐसे में वो समझेंगे कि पश्चिम ने रूस के खिलाफ सीधी जंग का बिगुल फूंक दिया है। यही वज़ह है कि नाटो ज़ेलेंस्की के दबाव के बावजूद यूक्रेन में नो-फ्लाई ज़ोन घोषित नहीं कर रहा है।