Russia Ukraine War: कीव और मास्को की जंग के बीच आखिर कहां खड़ा है बीजिंग?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग (Russia Ukraine War) के बीच बीजिंग और मॉस्को के दरम्यान लगातार बढ़ता समीकरण पश्चिम के लिये मुश्किल का सब़ब बनता दिख रही है। वाशिंगटन को डर है कि जंग और रूस पर उसके बाद के प्रतिबंधों से बीजिंग और मॉस्को के बीच और भी तालुक्कात मजबूत होगें। ऐसे वक़्त में जब पश्चिम ने रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाये हैं, चीन मास्को हर मुमकिन तरीके से समर्थन कर रहा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में चीन के राजदूत ने बीते रविवार (20 मार्च 2022) को कहा कि उनका मुल्क यूक्रेन में इस्तेमाल के लिये रूस को हथियार नहीं भेज रहा है, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से इस संभावना से इंकार नहीं किया कि आने वाले कल में बीजिंग ऐसा कर सकता है। इससे पहले शुक्रवार (18 मार्च 2022) को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग (Xi Jinping) को फोन पर साफ कर दिया था कि अगर बीजिंग मास्को को किसी तरह की सामरिक मदद करता है तो इसके नतीज़ें ठीक नहीं होगें।

यूरोप के कई अन्य मुल्कों की तरह रूस-यूक्रेन जंग चीनी इक्नॉमी (Chinese Economy) के लिये भी बुरी है। चीन सबसे अधिक तादाद में तेल का इम्पोर्ट करता है और इस जारी जंग ने साल 2008 के बाद से तेल कीमतों को उच्चतम स्तर पर धकेल पहुँचा दिया है। चीन को अपनी विशाल आबादी को खिलाने के लिये कृषि उत्पादों और अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा, धातु समेत खनिजों की जरूरत होती है। ऐसे में रूस और यूक्रेन दोनों ही दुनिया के लिये गेहूं और अन्य खाद्य उत्पादों के अहम सप्लायर हैं।

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि मौजूदा जंग इस साल खाद्य कीमतों को 8% से 20% तक बढ़ा सकती है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस हफ़्ते कबूल किया कि पश्चिमी प्रतिबंधों का वैश्विक स्तर पर बड़ा असर पड़ेगा। इसका प्रभाव वित्त, ऊर्जा, परिवहन और सप्लाई चैन की स्थिरता समेत अर्थव्यवस्था के सभी पहलूओं पर पड़ेगा। जो पहले से ही महामारी से तबाह हो चुका है।

पुतिन (Putin) के साथ शी जिनपिंग की करीबियां उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा सकती है और बीजिंग को यूरोप समेत पश्चिम से अलग कर सकती है। यूक्रेन में रूस के युद्ध ने भू-राजनीति को भी चीन के नुकसान में तब्दील कर दिया है। इस जंग ने यूरोप और अमेरिका के बीच शीत युद्ध के बाद से यूरोपीय संघ (European Union) के भीतर तुरंत अप्रत्याशित एकता पैदा कर दी है।

नाटो (NATO) के पास अब एक साफ मकसद और तुरन्त पैदा हुआ एक नया ज़ज्बा है, जिससे चीन के लिए जोखिम बढ़ रहा है कि उसका मिशन एशिया में फैल सकता है। इन सभी तरीकों के बीच यूक्रेन के खिलाफ रूसी जंग का तुरन्त खात्मा चीन के लिये ज़्यादा फायदेमंद होगा।

शी जिनपिंग जंग को खत्म करने के लिए कूटनीति की अहमियत पर यूरोप के साथ सहमत हैं क्योंकि ये उन्हें रूसी हमदर्द होने की परछाई से बाहर निकलने की कोशिश करता है। चीन एक तरफ अमेरिका और यूरोप को जरूरत के वाणिज्यिक साझेदार (Commercial Partner) के तौर पर देखता है, वहीं दूसरी तरफ वो पुतिन और रूस को दोस्त और विश्वासपात्र मानता है।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ये भी एहसास है कि रूस और उसके नेता पुतिन को यूक्रेन में जंग खत्म करने के लिये ज़्यादा मजबूर नहीं कर पायेगें क्योंकि उनके पास बेहद नपी-तुली ताकत है। व्लादिमीर पुतिन इस जंग को तब तक जारी रखेंगे जब तक कि रूस कुछ ऐसा हासिल नहीं कर लेता, जिसे वो विश्वसनीय रूप से स्थायी जीत के दावे के तौर दुनिया के सामने पेश कर सके।

2021 में रूस के साथ चीन का कारोबार 147 बिलियन अमरीकी डालर के साथ सबसे ऊपर था। साल 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चीन का कारोबार 756 बिलियन अमरीकी डालर था। साल 2021 में ही यूरोपीय संघ के साथ चीनी कारोबार 828 बिलियन अमरीकी डालर था। अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों ने चीन में बेशकीमती निवेश किया हुआ है। ये नई प्रौद्योगिकियां चीन को उसके आर्थिक उत्थान और राजनीतिक स्थिरता में मदद करेंगी।

सह-संस्थापक संपादक :  राम अजोर

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