बिजनेस डेस्क (राजकुमार): भारत में बढ़ती महंगाई के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में कहा कि देश के केंद्रीय बैंक को वैश्विक साथियों की तरह दरें बढ़ानी होंगी। उन्होंने कहा कि इसे अर्थव्यवस्था के हितों के खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिये।
राजन ने कहा कि, “ऐसे वक़्त में राजनेताओं और नौकरशाहों को ये समझना होगा कि नीतिगत दरों में इज़ाफा विदेशी निवेशकों (Foreign Investors) को लाभ पहुंचाने वाली कोई राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है, बल्कि आर्थिक स्थिरता में निवेश (Investment) है, जिसका सबसे बड़ा फायदा भारतीय नागरिकों को मिलेगा।”
उन्होनें कहा कि- “कोई भी खुश नहीं है जब दरों को बढ़ाया जाना है,” उन्होंने आलोचना के मुद्दे पर कहा कि- उच्च दरों ने उनके कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को पीछे रखा। भविष्य की नीति का मार्गदर्शन करने के लिये सही तथ्य अङम हैं। ये जरूरी है कि आरबीआई वो करे जो उसे करने की जरूरत है, और व्यापक राजनीति उसे वो काबिलियत देती है जिसकी उसे जरूरत है।”
रिजर्व बैंक ने घरेलू विकास का समर्थन देने के लिये नीतिगत दरों पर यथास्थिति बनाये रखी है। केंद्रीय बैंक (Central bank) ने चालू वित्त वर्ष के लिये महंगाई दर (Inflation Rate) का अनुमान 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया है। इसने मुद्रास्फीति को प्राथमिकता देते हुए अपने विकास पूर्वानुमान को 7.8% से घटाकर 7.2% कर दिया है।
रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने लोगों को अपनी बात समझाने के लिये अतीत की एक मिसाल दी। अपने कार्यकाल का एक उदाहरण देते हुए राजन ने कहा कि जब उन्होंने कार्यभार संभाला था, भारत पूरी तरह से मुद्रा संकट के बीच था और रुपये में तेजी से गिरावट आयी थी। तब महंगाई दर 9.5 फीसदी थी।
आरबीआई ने सितंबर 2013 में रेपो दर (Repo Rate) को 7.25% से बढ़ाकर 8% कर दिया, इससे पहले कि मुद्रास्फीति में गिरावट आने पर इसे 6.5% पर लाया गया। इसके साथ सरकार के साथ हस्तारक्षित मुद्रास्फीति-लक्षित ढांचे (Signed Inflation-Targeting Framework) था। उन्होंने कहा कि इन कार्रवाइयों ने न सिर्फ अर्थव्यवस्था और रुपये को स्थिर करने में मदद की, बल्कि विकास को भी बढ़ाया।
आरबीआई की तारीफ करते हुए राजन ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने तेल की कीमतों में तेजी के बावजूद वित्तीय बाजारों को शांत रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि ये 1990-91 के संकट के उल्ट है, जो तेल की ऊंची कीमतों से भी प्रभावित हुआ था। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) 600 बिलियन अमरीकी डालर से ज़्यादा है।