न्यूज डेस्क (समरजीत अधिकारी): सुप्रीम कोर्ट ने आज (25 अप्रैल 2022) कहा कि वो जुलाई के महीने में अनुच्छेद 370 (Article 370) को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर के विभाजन को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करेगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना (Chief Justice NV Ramanna) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वो जुलाई के महीने में कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करने की कोशिश करेगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम (Senior Advocate P. Chidambaram) और शेखर नफड़े ने जल्द सुनवाई के लिये अदालत के समक्ष याचिकाओं का जिक्र किया। नफाडे ने पीठ से कहा, ये अनुच्छेद 370 का मामला है… परिसीमन भी चल रहा है। सीजेआई ने कहा कि, मैं छुट्टी के बाद ये मामला सुनूंगा। ये पांच न्यायाधीशों का मामला है। विवरण दें हम उन्हें सूचीबद्ध करेंगे। न्यायाधीशों और पीठ संरचना के साथ कुछ मुद्दे हैं।”
संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने वाले कानून की वैधता और उन्हें विशेष दर्जा देने को चुनौती देने वाली कई याचिकायें शीर्ष अदालत के सामने लंबित हैं। बाद में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Kashmir Reorganization Act 2019) के मुताबिक परिसीमन के लिये सरकार की कार्रवाई के खिलाफ कुछ याचिकाएं दायर की गयी। इन याचिकाओं में कहा गया कि केंद्र द्वारा बड़े पैमाने पर बदलाव लाये जा रहे हैं, जो बड़ी तादाद में लोगों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
याचिकाओं में कहा गया है, “इस तथ्य के बावजूद कि याचिका 2019 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, केंद्र सरकार ने कुछ अपरिवर्तनीय कार्रवाई की है। केंद्र ने विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) होने से पहले सभी निर्वाचन क्षेत्रों के लिये क्षेत्र में सीमाओं को चिह्नित करने के लिये परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन किया है।”
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत दिये गये जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने और क्षेत्र को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के अपने निर्णय का ऐलान किया।
मार्च 2020 में पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच को 7-न्यायाधीशों की पीठ के सामने संदर्भित करने से इनकार कर दिया था, बड़ी बेंच के लिये ये कहते हुए कि मामले को संदर्भित करने की कोई वज़ह नहीं थी।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 जो जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटता है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली कई याचिकायें (Petitions) निजी व्यक्तियों, वकीलों, कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा शीर्ष अदालत (Supreme Court) में दायर की गयी है।