न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): Gyanvapi Masjid Controversy: औरंगजेब ने 9 अप्रैल, 1669 को भगवान आदि विशेश्वर मंदिर (Bhagwan Adi Visheshwar Temple) को गिराने का फरमान जारी किया, लेकिन जमीन पर वक्फ बनाने या मुस्लिम निकाय को जमीन सौंपने का कोई आदेश पारित नहीं किया, हिंदू याचिकाकर्ताओं (Hindu petitioners) ने बीते गुरूवार (19 मई 2022) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद कानूनी रूप से मस्जिद के रूप में योग्य नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद के उस इलाके को सील करने के वाराणसी अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं के जवाब में ये तथ्य पेश किया गया, जहां कथित तौर पर एक शिवलिंग पाया गया था। मुस्लिम पक्ष (Muslim side) की ओर से दायर याचिका पर अदालत आज (20 मई 2022) सुनवाई करेगी।
इस दौरान प्रतिवादियों द्वारा दायर दलील के ज़वाब में वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि- इतिहासकारों ने पुष्टि की है कि इस्लामी शासक औरंगजेब (Islamic ruler Aurangzeb) ने 9 अप्रैल, 1669 को फरमान जारी किया था, जिसमें तत्कालीन प्रशासन को वाराणसी में भगवान आदि विशेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे ये साबित हो सके कि तत्कालीन शासक या बाद के किसी शासक ने किसी को लेकर कोई आदेश पारित किया हो, जैसे कि ज़मीन पर वक्फ बनाने का आदेश या मुसलमानों के निकाय को जमीन सौंपने से जुड़े किसी तरह के आदेश। औरंगजेब द्वारा जारी फरमानों में हवाला एशियाटिक लाइब्रेरी कोलकाता (Asiatic Library Kolkata) से मिली किताबों से दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वक्फ को समर्पित संपत्ति पर ही संपत्ति के मालिक वक्फ (waqf) द्वारा मस्जिद बनाव सकते है। उन्होंने कहा कि किसी भी मुस्लिम शासक के आदेश के तहत उस जमीन पर जो मूल रूप से एक मंदिर की थी, उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। वक्फ को समर्पित जमीन पर ही वक्फ बनाया जा सकता है, जिसमें जमीन के मालिक की रज़ामंदी होना जरूरी है। इस मामले में ये साफ है कि अनादि काल से जमीन और संपत्ति देवता की है, और इसलिए कोई मस्जिद नहीं हो सकती है वहाँ।
याचिकाकर्ताओं ने अपने ज़वाब में आगे कहा कि- आदि विशेश्वर मंदिर को साल 1193 से 1669 तक हमलों का सामना करना पड़ा, जब इसे तोड़ा गया। बता दे कि आदि विशेश्वर 12 ज्योतिर्लिंगों (Jyotirlingas) में से था, जिन्हें वेदों, पुराणों, उपनिषदों और शास्त्रों में हिंदू धर्म के लिये बहुत अहम बताया गया है।
उत्तरदाताओं ने ये भी आरोप लगाया कि विचाराधीन संपत्ति किसी वक्फ की नहीं है और ये ब्रिटिश कैलेंडर (British Calendar) साल की शुरुआत से बहुत पहले ही देवता आदि विश्वेश्वर में निहित थी और ये अब भी देवता की संपत्ति है। उन्होंने औरंगजेब को ‘हिंदू मंदिरों को तबाह करने वाला चैंपियन बताया और कहा कि उसने काशी और मथुरा (Kashi and Mathura) में कई मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि- औरंगजेब प्रशासन (Aurangzeb Administration) ने आदेश का पालन किया और वाराणसी में आदि विश्वेश्वर के मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया और बाद में एक निर्माण किया गया, जिस पर उन्होंने ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ की नींव रखी। साथ ही आरोप लगाया कि वो (औरंगजेब) हिंदू मंदिर के धार्मिक चार्टर (Religious Charter) को देवी श्रृंगार की मूर्ति के रूप में नहीं बदल सके। गौरी, भगवान गणेश और अन्य सहयोगी देवता उसी भवन परिसर में बने रहे।”
याचिकाकर्ताओं के एक गुट ने मस्जिद के अंदर श्रृंगार गौरी के चित्र की मौजूदगी का दावा करने के बाद वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण (Videographic Survey) का आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि उन्हें देवता तक बेरोकटोक पहुंच मुहैया करवायी जाये।
हिंदू पक्ष ने बाद में दावा किया कि सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के अंदर एक शिवलिंग (Shivling) पाया गया। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि कथित बनावट एक फव्वारा था, शिवलिंग नहीं। उन्होंने वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) का रूख किया।