Terror funding business model: इन बिजनेस मॉडल्स पर काम करती है टेरर फंड़िंग

Terror Funding Business Model: यासीन मलिक (Yasin Malik) को टेरर फंड़िंग मामले में उम्रकैद की सज़ा हुई है। ऐसे में अब हर जगह टेरर फंड़िंग मॉडल को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। हमारे देश में बहुत सारे संगठन और गैर सरकारी संगठन हैं, जो भलाई के नाम पर बड़ी-बड़ी दुकानें चलाते हैं। गरीबों और वंचितों की मदद करते हैं। पूरी दुनिया इन लोगों को मसीहा समझने लगती है। उन्हें बड़ा इनाम मिलता है। इन सबके पीछे उनके काले कारनामे हमेशा के लिये छिपे रहते हैं।

कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस (Hurriyat Conference) लाखों रुपये का चंदा लेकर कश्मीर का समर्थन करने वाले युवाओं को पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने के लिये भेजती थी। इन छात्रों से मिले चंदे से हुर्रियत नेता कश्मीर में अपनी जेब भरते थे और बाकी पैसे आतंकियों में बांट देते थे। टेरर फंडिंग (Terror funding) के एक मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस (Jammu and Kashmir Police) ने वहां की एक अदालत में चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें इस पूरे बिजनेस मॉडल को विस्तार से डिकोड किया गया है।

एनजीओ का मुखौटा और टेरर फंडिंग

एनजीओ समाज सुधार को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। वो मानवाधिकारों का मुद्दा उठाते हैं और जो कहते हैं कि उनका मकसद देश में सकारात्मक बदलाव लाना है। लेकिन जिस मकसद को ये एनजीओ बदलाव की बात कहते हैं, उसके पीछे असल में एक बिजनेस मॉडल है। सीबीआई ने दिल्ली, राजस्थान, चेन्नई और हैदराबाद (Chennai and Hyderabad) समेत देश में 40 जगहों पर छापेमारी की। छापेमारी की ये कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों और एनजीओ के दफ्तरों पर छापेमारी की गयी।

जांच में ये सामने आया कि एनजीओ एफसीआरए लाइसेंस हासिल करने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय (Union Home Ministry) के कुछ अधिकारियों को रिश्वत देने वाले थे। ये रिश्वत की राशि 2 करोड़ रुपये से ज़्यादा थी। बता दे कि कोई भी एनजीओ तब तक विदेशी चंदा नहीं ले सकता जब तक उसके पास एफसीआरए लाइसेंस न हो। FCRA विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम एक ऐसा कानून जिसके तहत गैर सरकारी संगठनों को विदेशों से मिलने वाली सहायता राशि की मॉनिटरिंग की जाती है।

भारत सरकार ने कुछ वक़्त पहले इन गैर सरकारी संगठनों के लाइसेंस रद्द कर दिये थे क्योंकि उन पर विदेशी चंदे की जानकारी छिपाने का आरोप था। इनमें से कुछ एनजीओ पर देश को अस्थिर करने और लोगों को धर्म परिवर्तन के लिये मजबूर करने का भी आरोप था।

अब क्योंकि भारत सरकार की कार्रवाई के बाद उन्हें विदेश से फंडिंग नहीं मिल पा रही थी। इसलिए इन एनजीओ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों से संपर्क किया और उन्हें रिश्वत देकर इस लाइसेंस को फिर से बहाल कराने की कोशिश की। आरोप है कि हवाला के जरिये दो करोड़ रूपये रिश्वत के तौर पर मांगे गये। जब भारत सरकार को इसकी शिकायत मिली तो इस पूरे बिजनेस मॉडल का पर्दाफाश हो गया।

इनमें से एक एनजीओ दिल्ली के उसी जामिया नगर (जामिया नगर) का है, जो शाहीन बाग (Shaheen Bagh) से महज दो किलोमीटर दूर है। इस एनजीओ का नाम जहांगीराबाद एजुकेशन ट्रस्ट (Jahangirabad Education Trust) है और इसके डायरेक्टर शफी मोहम्मद (Shafi Mohammed) नाम के शख्स हैं। इसके अलावा तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश (Tamil Nadu and Andhra Pradesh) के दो-दो एनजीओ भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं। मणिपुर और असम (Manipur and Assam) के एक-एक एनजीओ पर भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप है।

हुर्रियत का मेडिकल सीट वाला टेरर फंड़िग मॉडल

पाकिस्तान (Pakistan) के मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कश्मीर के मुस्लिम छात्रों के लिये खास कोटा रखा गया है। इसके तहत हर साल 40 एमबीबीएस सीटें कश्मीरी छात्रों के लिये रिजर्व की जाती हैं और कश्मीर के छात्रों को अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी एडमिशन को प्राथमिकता दी जाती है। यानि पाकिस्तान सरकार एक खास कार्यक्रम के तहत कश्मीरी छात्रों को वहां आकर पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करती है। बात ये है कि कश्मीरी छात्रों को ये एडमिशन सीधे पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में नहीं मिलता है। बल्कि उन्हें इसके लिये हुर्रियत कांफ्रेंस में जाना पड़ता है।

हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर में 26 विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों का गठबंधन है, जो कश्मीर की आजादी की मांग करता है। ये पूरी व्यवस्था ऐसी है कि अगर कोई कश्मीरी छात्र पाकिस्तान जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहता है तो उसे हुर्रियत कांफ्रेंस से सिफारिशी खत लेना होगा। हुर्रियत कांफ्रेंस ये खत उन्हीं छात्रों को देती है, जो कश्मीर में अलगाव और आतंकवाद का समर्थन करते हैं।

अगर कोई छात्र और उसका परिवार हुर्रियत कांफ्रेंस के विचारों से सहमत है तो उस छात्र को सिफारिश खत आसानी से मिल सकता है। हालांकि इसके लिये हर छात्र से 10 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं। यानि इस हिसाब से हुर्रियत कांफ्रेंस हर साल कश्मीर से 40 मुस्लिम छात्रों को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिये पाकिस्तान भेजती है और इसके बदले में उसे सालाना 4 करोड़ रुपये मिलते हैं।

अब जबकि पाकिस्तान में कश्मीर के छात्रों के लिये पहले से ही सीटें रिजर्व हैं, पैसा सीधे हुर्रियत कांफ्रेंस की जेब में जाता है और फिर इस पैसे से कश्मीर में आतंकी फंडिंग की जाती है। पत्थरबाजों को पैसा दिया जाता है। कश्मीर में ऐसे ओवर-ग्राउंड वर्कर तैयार किये जाते हैं, जो अलगाववाद और आतंकवाद का समर्थन करते हैं।

साथ ही हुर्रियत कांफ्रेंस उन कश्मीरी युवाओं से भी संपर्क करती है, जो आतंकवादी बनने के लिये तैयार हैं। ऐसे लोगों को हुर्रियत कांफ्रेंस की ओर से शानदार ऑफर भेजा जाता है। इस ऑफर के तहत कहा जाता है कि अगर परिवार का कोई शख़्स आतंकवादी बनने का फैसला करता है तो हुर्रियत कॉन्फ्रेंस उस परिवार के एक सदस्य को एमबीबीएस करने के लिये पाकिस्तान भेज देगी। यानि एमबीबीएस की सीट आतंकी के परिवार को प्रोत्साहन के तौर पर दी जाती है और कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में ये भी कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में हुर्रियत कांफ्रेंस द्वारा पाकिस्तान भेजे गये कश्मीरी छात्र उन सभी परिवारों से थे जिनके सदस्य आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए थे और बाद में मुठभेड़ों में मारे गये।

हुर्रियत कांफ्रेंस की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि ये कश्मीर के लोगों की आवाज है। लेकिन हकीकत में इस आवाज के पीछे एक बिजनेस मॉडल काम कर रहा है, जिसके तहत कश्मीर और वहां की आव़ाम को लगातार अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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