Presidential Polls: इन वज़हों से बीजेपी ने चुना राष्ट्रपति पद के लिये द्रौपदी मुर्मू का नाम

न्यूज डेस्क (मृत्युजंय झा): Presidential Polls: विपक्षी दलों ने अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) सरकार में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को राष्ट्रपति पद के लिये संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं की दिल्ली में एक बैठक के बाद घोषित किया गया कि झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) एनडीए अध्यक्ष पद की उम्मीदवार होंगी।

विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को चुना, जिन्होंने 2018 में भाजपा छोड़ दी और मोदी का विरोध करने वाले नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हो गये। इससे पहले विपक्षी दलों ने शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी (Gopalkrishna Gandhi) को उम्मीदवार बनाने की कोशिश की थी। लेकिन इन नेताओं ने इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें विपक्ष के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिये पर्याप्त वोट मिलने की संभावना के बारे में चिंता थी।

भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद के लिये नामांकित होने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। 64 वर्षीय द्रौपदी मुर्मू ओडिशा (Odisha) से आती हैं। राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारों की जाति, क्षेत्र और धर्म बहुत मायने रखता है। जब सरकार को देश को संदेश देना होता है, नागरिकों तक पहुंचना होता है, तो वो उसी के मुताबिक राष्ट्रपति का चुनाव करती है। मिसाल के लिये: पिछली बार भाजपा (BJP) ने राष्ट्रपति पद के लिये रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को अपने उम्मीदवार के रूप में चुना था, जो कि दलित हैं। अब बीजेपी ने इस पद के लिये एक आदिवासी महिला नेता को चुना है।

गुजरात (Gujarat) में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ (Madhya Pradesh and Chhattisgarh) में भी चुनाव होंगे, जहां आदिवासी समुदायों की आबादी काफी तादाद में है। इसलिए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना बड़ा फैसला माना जायेगा। एक और बात… वो एक महिला है, इसलिए ये फैसला देश की महिलाओं के बीच भी लोकप्रिय हो सकता है।

राष्ट्रपति के चुनाव के लिये सभी राज्यों के लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद और विधायक वोट करते हैं। ये चुनाव अन्य चुनावों से अलग है क्योंकि हरेक वोट का मूल्य अलग होता है। इस मूल्य की गणना प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर की जाती है। साल 1971 की जनगणना को जनसंख्या के आधार के तौर पर लिया जाता है। उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण इसके विधायकों के मतों का मूल्य सबसे ज़्यादा है।

उत्तर प्रदेश के प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य 208 है। यानि इस हिसाब से उत्तर प्रदेश के 403 विधायकों के वोट का मूल्य 83,824 है। लेकिन दूसरी तरफ सिक्किम के एक विधायक के वोट की कीमत सिर्फ 7 है क्योंकि 1971 की जनगणना के मुताबिक सिक्किम की आबादी महज दो लाख थी। इस हिसाब से सिक्किम के 32 विधायकों के वोट का मूल्य मात्र 224 है।

इस चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले विधायकों की संख्या 4,033 है। इन सभी वोटों का मूल्य 5,43,231 है। जबकि लोकसभा और राज्यसभा के 776 सांसदों के वोट का मूल्य 5,43,200 है। यानि हर सांसद के वोट का मूल्य 708 होता है।

इस वैल्यू को हासिल करने के लिए सभी विधायकों के कुल वोट के मूल्य को सभी सांसदों की संख्या से विभाजित किया जाता है। और फिर ये 708 का मान आता है। सभी सांसदों और विधायकों के मतों का कुल मूल्य 10,86,000 है राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिये 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोटों की दरकार होती है।

फिलहाल बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास करीब 48 फीसदी वोट हैं। कांग्रेस और उसके सहयोगियों के पास 24 फीसदी वोट हैं, टीएमसी के पास 5.4 फीसदी वोट हैं, जगनमोहन रेड्डी (Jaganmohan Reddy) की वाईएसआर कांग्रेस के पास 4 फीसदी और नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) की बीजू जनता दल के पास करीब तीन फीसदी वोट हैं। अगर वाईएसआर कांग्रेस या बीजू जनता दल (Biju Janata Dal) में से कोई एक पार्टी एनडीए (NDA) को अपना समर्थन देती है तो उसका उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव में जीत जायेगा।

यहां बड़ी बात ये है कि वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress) अध्यक्ष जगमोहन रेड्डी ने इसी महीने पीएम मोदी से मुलाकात की थी और नवीन पटनायक ने भी 30 मई को पीएम मोदी से मुलाकात की थी। इसलिए मुमकिन है कि ये दोनों पार्टियां राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी का समर्थन करेंगी।

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