Sufi Conference: अमन, चैन और भाईचारे की बहाली के लिये कश्मीर में हुई सूफी कॉन्फ्रेंस

न्यूज डेस्क (दान्याल कुरैशी): कश्मीर में सूफीवाद को बढ़ावा देने के लिये वॉयस फॉर पीस एंड जस्टिस ने बीते बुधवार (29 जून 2022) बारामूला के बाबरशी तंगमार्ग में सूफीवाद पर एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस (Sufi Conference) का आयोजन किया। इस कॉन्फ्रेंस का मकसद लोगों को इस्लाम (Islam) की रीढ़ सूफीवाद के बारे में जागरूक करना था, जो लोगों को शांति, प्रेम और भाईचारा फैलाना सिखाता है।

कॉन्फ्रेंस के दौरान घाटी के कश्मीरी गायकों ने सूफियाना संगीत का प्रदर्शन किया गया। इस कॉन्फ्रेंस ने लेखकों, कवियों, लेखकों और अन्य बुद्धिजीवियों समेत दर्शकों को अपनी ओर खींचा। कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिये पूरे कश्मीर घाटी से आये सैकड़ों लोगों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

इस दौरान वॉयस फॉर पीस एंड जस्टिस (Voice for Peace and Justice) के महासचिव शेख मिन्हाज (Sheikh Minhaj) ने अपने संबोधन में कहा कि कश्मीर में शांति के लिये सूफीवाद ही एकमात्र रास्ता है। सूफी संतों ने कश्मीर में शांति और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिये मीलों की यात्रा की। दूसरी ओर कुछ तत्व सूफीवाद के रास्ते से भटककर उग्रवाद फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने कश्मीर में सूफियों की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि लोगों को सूफीवाद का पालन करना चाहिये ताकि कश्मीर में स्थायी शांति स्थापित की जा सके।

मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और वॉयस फॉर पीस एंड जस्टिस के अध्यक्ष फारूक गांदरबली (Farooq Ganderbali) ने अपने भाषण में कहा कि, “कट्टरपंथी ताकतों ने कश्मीर के बहुसंख्यक लोगों की आवाज को दबाने की बहुत कोशिश की, मंदिरों और साहित्य को निशाना बनाया ताकि सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद किया जा सके। मौजूदा माहौल में कश्मीर में सूफीवाद धर्म, पंथ और जाति के बावजूद लोगों के साथ शांतिपूर्वक और पर्यावरण के अनुकूल माहौल में रहने का एकमात्र विकल्प है।”

डॉ शाजिद हुसैन (Dr. Shajid Hussain) ने मौजूदा हालातों की तुलना करते हुए कहा कि सूफीवाद कश्मीर में सांप्रदायिक सद्भाव को ताकत देता है और घाटी की हालिया तस्वीर में सूफीवाद ही कट्टरता की भावना को मिटाने का एकमात्र विकल्प हो सकता है। उन्होंने सूफी संतों के बलिदान और घाटी में शांति, भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने के प्रयासों की भी तारीफ की।

जामिया मस्जिद के ईमान जामिया बाबा पयामुदीन रेशी (Jamia Baba Payamuddin Reshi) ने अपने भाषण में कहा कि कश्मीर में सूफीवाद सिर्फ साहित्य तक सीमित है। उन्होंने कहा कि, “हमें सूफी संतों की शिक्षाओं को जमीनी हालातों पर उतारने के लिये काम करना चाहिए और कश्मीर में सूफीवाद के पुनरुद्धार के लिये अपनी युवा पीढ़ियों को इस मुहिम में शामिल करना चाहिये।”

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