न्यूज डेस्क (यर्थाथ गोस्वामी): गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व हर साल शक संवत (Saka Samvat) की आषाढ़ मास की पूर्णिमा (Full Moon of the Month of Ashadh) के दिन पड़ता है। ये शुभ अवसर इस साल 13 जुलाई को मनाया जायेगा। इस दिन लोग अपने गुरूओं को कई तरह से पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर और मठों में जाकर गुरूओं के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, कई लोग घर में ही गुरू की पूजा करते हैं। आपको बता दें कि ‘गुरु’ संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है शिक्षक, संरक्षक या कोई भी व्यक्ति जो आपको कुछ सिखाता हो।
आम धारणा के मुताबिक गुरू व्यक्ति के जीवन में अहम भूमिका निभाता है। वो व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का पोषण और विकास करने में मदद करता है। भारत में इस दिन को बहुत जोश के साथ मनाया जाता है, जबकि नेपाल (Nepal) के लोग इसे ‘शिक्षक दिवस’ के तौर पर मनाते हैं ताकि बच्चों को ज्ञान के मार्ग पर ले जाने वाले शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त किया जा सके।
त्योहार को ‘व्यास पूर्णिमा’ (Vyasa Purnima) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये ‘वेद व्यास’ (Veda Vyasa) की जयंती का प्रतीक है, जिन्हें महाभारत (Mahabharata) का लेखक माना जाता है।
गुरू पूर्णिमा का शुभ मूर्हूत
हिन्दू पंचांग (Hindu Calendar) के अनुसार गुरू पूर्णिमा 2022 का शुभ मुहूर्त 13 जुलाई को प्रातः 4 बजे से 14 जुलाई को प्रातः 12:06 बजे तक रहेगा।
गुरू पूर्णिमा का महात्मय
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वेद व्यास का जन्म माता-पिता ऋषि पाराशर (Rishi Parashar) और देवी सत्यवती से आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हें वेदों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिये जाना जाता है – ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद (Atharvaveda and Yajurveda)। महाभारत के रचयिता होने के कारण वेद व्यास को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
गुरू पूर्णिमा के दिन विभिन्न धर्मों के लोग अपने-अपने गुरूओं की आराधना करते हैं। कई हिंदू भक्त भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं, जैन धर्म का पालन करने वाले लोग तीर्थंकर महावीर और इंद्रभूति गौतम (Tirthankara Mahavir and Indrabhuti Gautam) की पूजा करते हैं। गुरू पूर्णिमा को भूटान, नेपाल, भारत समेत अन्य बौद्ध मतावलंबी देशों में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है।