शशांक शेखर (ब्यूरो): कोरोना एक साथ कई मोर्चों पर मानवता को नुकसान पहुंचा रहा है। दुनिया भर के तकरीबन कई बड़े देश लॉकडाउन की चपेट में है। एक तरफ लोगों की जान को खतरा है तो दूसरी ओर वायरस दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को खोखला करने में लगा हुआ है। रिसर्चर, डॉक्टर्स, साइंटिस्ट और तकनीकी विशेषज्ञ इसके खिलाफ एकजुट हो चुके हैं। वायरस के बढ़ते खतरे पर लगाम कसने के लिए कई नामी-गिरामी आर्गेनाइजेशन दिन-रात एक कर काम करने में लगे हुए है। मोदी जी के मुताबिक इतनी भयावह स्थिति दूसरे विश्व युद्ध में भी नहीं बनी थी। खैर कोरोना ने अपनी पहचान मानव सभ्यता के दर्ज इतिहास में जरूर करवा ली है।
इस बीच कई बड़े संस्थान कोरोना के खिलाफ मोर्चा संभाल चुके हैं। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने महामारी से लड़ने के लिए मॉलिक्यूलर सर्विलांस सिस्टम सहित पर्सनल प्रोटेक्शन इंस्ट्रूमेंट और इंफेक्शन जांच के लिए इंस्टेंट टेस्ट किट की खोज की है। मॉलिक्यूलर सर्विलांस सिस्टम की मदद वैज्ञानिकों को इंफेक्शन पैटर्न समझने में खासा मदद मिलेगी। ये वायरस के जीनोम और उसके अनुवांशिकीय गुणों का एनालिसिस करने में भी सक्षम होगा। इससे मिलने वाली जानकारी और आंकड़ों से कारगर दवाई बनाने में काफी सहायता मिलेगी। CSIR फौरी तौर पर हैज्मेट सूट का भी विकल्प तैयार कर रहा है, जिससे संक्रमण रोकथाम के कामों में लगे डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ का जोखिम कम हो सकेगा।
जोनाथन क्विक ऑफ ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि, ये बीमारी तीन स्तरों पर फैलती है। पहले स्तर पर ये सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम से मेल खाती है। अगले स्तर पर ये साल 1918 में फैले फ्लू की तरह काम करती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक तीसरे स्तर में वायरस की सक्रियता पर तापमान असर डाल सकता है। फिलहाल उत्तरी गोलार्ध में मौसम के अनुसार तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, ऐसे में संक्रमण की दर पर शोधकर्ताओं ने नज़रें बनायी हुई है। जैसे शोध आगे बढ़ेगा वैसे ही वायरस इन्फेंक्शन को लेकर नई जानकारियां सामने आएंगी।
वायरस संक्रमण की दर और सामुदायिक स्तर पर इसके फैलने के पैटर्न को समझने के लिए एक मैथमेटिकल मॉडल भी डेवलप किया गया है। जिसका नाम है मैथमेटिकल मॉडल ऑफ ट्रांसमिनेबिलिटी ऑफ नोवल कोरोना। इसकी मदद से किसी खास़ इलाके में इंफेक्शन के फैलाव और उसकी श्रृंखला को समझने में मदद मिलेगी। मॉडल इंफेक्शन के लेवल 2 से लेवल 3 में जाने के तौर-तरीकों का विश्लेषण करता है। इस मॉडल के हालिया नतीजे बता रहे हैं कि, संक्रमण किस तरह चमगादड़ों से इंसानों में फैला।
नॉर्वे के ओस्लो में स्थित कोलेशन फॉर एपिडेमिक प्रीपेडनैस इनोवेशन के शोध कार्य काफी आगे चल रहे हैं। ये संस्थान पहली बार चर्चा में तब आया, जब इसने मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) पर अपने रिसर्च पेपर पब्लिश किये। MERS और कोरोना के जेनेटिक स्ट्रक्चर तकरीबन मिलते जुलते हैं।
नोवाक्स और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड जॉइंट रिसर्च प्रोग्राम चला रहे हैं। इस प्रोग्राम की मदद से इंफेक्शन रोकने की वैक्सीन इजाद की गई है। जिसका इंसानी शरीर पर क्लिनिकल ट्रायल होना बाकी है। जल्द ही इस बात से पर्दा उठ जाएगा, ये टीका कितना कारगर है। दूसरी ओर वाशिंगटन के साबिन वैक्सीन इंस्टिट्यूट के रिसर्चर मोदर्णेन ने एक्सपेरिमेंटल वैक्सीन की खोज की है। जिसका ट्रायल और टेस्टिंग अप्रैल महीने से शुरू हो जाएगी।
आईआईटी दिल्ली, अबॉट फार्मास्यूटिकल, जैसे कई एमिनेंट ऑर्गेनाइजेशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट के कामों में लगे हुए है। इन्हीं लोगों की वजह से उम्मीदों की रोशनी कायम है। इंसानियत के लिए यही लोग मसीहा, पैगंबर, नबी, रसूल और भगवान है।