Sawan: सावन के पावन महीने से जुड़े है ये पांच पौराणिक तथ्य

सावन (Sawan) मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। इसी के साथ ही चौमासा की शुरूआत हो जाती है। शेषशायी भगवान नारायण (Seshasayee Bhagwan Narayan) इन चार महीनों के लिये योगनिद्रा (Yoga Nidra) में चले जाते है। सृष्टि का समस्त कार्यभार बाबा भोलेनाथ (Baba Bholenath) के हाथों में आ जाता है। इसी वज़ह से इन चार महीने के लिये भगवान शिव जागृत देवता है, उनका स्मरण मात्र से ही मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति करता है। ऐसे में इस पवित्र महीने से कुछ पौराणिक तथ्य जुड़े हुए आइये जाने उनके बारे में।

सावन माह से जुड़े पांच पौराणिक तथ्य

1. मरकंडू ऋषि (Markandu Rishi) के पुत्र मारकण्डेय (Markandeya) ने लंबी आयु के लिये सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज (Yamraj, The God of Death) भी नतमस्तक हो गये थे।

2. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण ये भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गये थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक (Arghya and Jalabhishek) से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिये शिव कृपा पाने का ये उत्तम समय होता है।

3. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ (Neelkanth Mahadev) पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिये सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिये शिवलिंग (Shivling) पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

4. ‘शिवपुराण’ (Shivpuran) में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिये जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

5. शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिये ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिये अमूल्य होता है। ये चार महीनों में होने वाला वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिये सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।

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