विपक्षी एकता में टूट 18 जुलाई के राष्ट्रपति चुनावों से पहले ही दिखायी दे रहा थी, और ये तब और ज़्यादा साफ हो गयी जब एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के खिलाफ भारत के 15 वें राष्ट्रपति बनने के लिये भारी अंतर से जीत हासिल की।
बीजद, शिवसेना और वाईएसआर कांग्रेस (BJD, Shiv Sena and YSR Congress) जैसे कई गुटनिरपेक्ष दलों द्वारा ओडिशा (Odisha) की आदिवासी नेता को अपना समर्थन देने के बाद राज्य विधानसभाओं के कई विधायकों ने विपक्षी उम्मीदवार सिन्हा को अपनी पार्टियों के समर्थन को धता बताते हुए उनके समर्थन में क्रॉस वोट किया।
हालांकि मुर्मू के पक्ष में 125 विधायकों ने 17 सांसदों के साथ वोट किया। इन विधायकों में असम में 22, मध्य प्रदेश में 19, महाराष्ट्र में 16, झारखंड और गुजरात में 10-10 और छत्तीसगढ़ में छह विधायक शामिल हैं।
जैसे ही मुर्मू को 64 फीसदी से ज़्यादा वोट मिले नतीज़ों ने विपक्षी नेताओं और यहां तक कि यूपीए खेमे (UPA Camp) के भीतर बनी दरार को उजागर कर दिया क्योंकि लगभग आधा दर्जन गैर-एनडीए दलों ने कांग्रेस के साथ जाने से इनकार कर दिया।
इसी क्रम में तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) ने गुरूवार को ऐलान किया कि वो उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहेगी और यशवंत सिन्हा के मामले के उलट यूपीए उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा (Margaret Alva) के साथ खड़ी नहीं होगी।
संसद में सबसे बड़े विपक्षी दलों में से एक टीएमसी ने कहा कि अल्वा को यूपीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर घोषित करने से पहले कांग्रेस ने उनसे सलाह नहीं ली।
इससे एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के लिये एक और आसान जीत का रास्ता साफ हो जाता है, जो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की अगुवाई वाली टीएमसी सरकार के सामने लगातार सिलसिलेवार गतिरोध के साथ खड़े रहे हैं।
साल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए से मुकाबला करने के लिये एक बड़ा मोर्चा बनाने के विपक्ष की कोशिश के लिये टीएमसी को मानने में यूपीए की नाकामी एक और झटका है। इससे ये भी संकेत मिलता है कि कांग्रेस और टीएमसी (Congress and TMC) के बीच एक बड़ा नतीजा सामने आने वाला है।
क्रॉस-वोटिंग ने हाल के राज्यसभा चुनावों में भी विपक्षी खेमे में दरारों को उजागर कर दिया है, जब महाराष्ट्र, हरियाणा और कर्नाटक (Maharashtra, Haryana and Karnataka) में क्रॉस वोटिंग हुई।
राजनीतिक विशेषज्ञों ने अक्सर एनडीए के विस्तार के लिये एक बड़े कारण के तौर पर बिखराव वाले विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया। सभी गैर-एनडीए दलों को एक छत्र के नीचे लाने के कई प्रयास क्षेत्रीय क्षत्रपों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के कारण बेकार हो गये हैं।