बिजनेस डेस्क (राजकुमार): घरेलू मंडियों में गेहूं के थोक मूल्य (Wholesale Price of Wheat) अब तक के उच्च स्तर से गिरने में कामयाब रहे हैं और केंद्र सरकार द्वारा खाद्यान्न के निर्यात पर कई नीतिगत हस्तक्षेपों के वक़्त रहते लागू होने के कारण दाम स्थिर हो गये है। मोदी सरकार (Modi government) ने देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने, कमजोर पड़ोसियों और अन्य देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिये नये नियम लागू किये हैं। वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में इज़ाफा हुआ है क्योंकि रूस और यूक्रेन (Russia and Ukraine) अहम गेहूं निर्यातक हैं। ।
इंदौर (Indore) में गेहूं की कीमतें 2,400-2,500 रूपये प्रति 100 किलोग्राम तक थीं, जिसे बड़ी मंडियों में से एक माना जाता है, जबकि यूक्रेन में संघर्ष के फैलने से पहले 2,000-2,100 रूपये का विरोध किया गया था। चूंकि हाल ही में पैदा हुई रबी की फसल का आवक मंडियों में हो चुकी है, इसलिये साल के इस वक़्त में गेहूं की कीमतें अक्सर निचले स्तर पर रहती हैं।
रबी की फसल से पहले भारत में कई गेहूं उगाने वाले इलाकों में लू के कारण फसल उत्पादन बहुत प्रभावित हुआ। देश में गेहूं की मौजूदा कीमत केंद्र के गारंटीकृत न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,015 रुपये प्रति 100 किलोग्राम से काफी ज़्यादा है, ऐसे हालात काफी कम देखने को मिलते है।
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव जंग में तब्दील होने के कारण गेहूं की निर्यात मांग को बढ़ावा मिला, नतीज़न बड़ी खाद्यान्न की मंडियों में दाम अब तक उच्चतम स्तर को छू रहे थे। फिलहाल इंदौर में गेहूं 2,400 रुपये प्रति 100 किलो से थोड़ा कम पर कारोबार कर रहा है। अन्य बाजारों में भी गेहूं की कीमतों में कुछ नरमी देखी गयी। मौजूदा रूख को देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में गेहूं की कीमत 2,300 रूपये तक गिर जायेगी।
अमेरिकी कृषि विभाग (US Department of Agriculture) के हालिया पूर्वानुमान के मुताबिक यूक्रेन में गेहूं का उत्पादन 2022-23 सीजन में सालाना आधार पर 41 फीसदी या 13.5 मिलियन टन घटकर 19.5 मिलियन टन रहने की उम्मीद है। भारत सरकार सिर्फ गेहूं के निर्यात को सीमित करने से आगे निकल गयी। केंद्र सरकार ने गेहूं के आटे साथ ही साथ मैदा, सूजी (रवा/सिरगी), होलमिल आटा समेत इससे जुड़े सामानों के एक्सपोर्ट को प्रतिबंधित कर दिया है।
सरकार ने कहा कि ये कदम देश की समग्र खाद्य सुरक्षा के प्रबंधन के साथ-साथ पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से उठाया गया था।
हाल के संसद सत्र के दौरान लोकसभा (Lok Sabha) में एक लिखित सवाल के ज़वाब में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) ने कहा था कि: “01.07.2022 तक 275.80 एलएमटी के बफर मानदंड के मुकाबले गेहूं का असल स्टॉक 285.10 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) है।”
जब उनसे एक अलग सवाल में पूछा गया कि, क्या ये सही है कि किसानों से सीधे खरीदे गये गेहूं की मात्रा में कमी आयी है क्योंकि निजी खरीद बढ़ गयी है? तो उन्होनें कहा कि- “व्यापारियों द्वारा गेहूं की ज़्यादा खरीद के कारण गेहूं की खरीद गिर गयी है क्योंकि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक हालातों के कारण गेहूं का बाजार मूल्य बढ़ गया था। इसके अलावा अगर किसान को एमएसपी (MSP) के मुकाबले बेहतर कीमत मिलती है तो वो अपनी उपज को खुले बाजार में बेचने के लिये आज़ाद हैं।”
बता दे कि कि किसान पहले से ही निजी खरीदारों से अपनी उपज के लिये अच्छे दाम हासिल कर रहे हैं, एमएसपी से ज़्याजा गेहूं की कीमतों में इज़ाफा सिर्फ ये संकेत देता है कि केंद्र सरकार को मूल्य गारंटी कार्यक्रम के तहत कम टन खरीदना पड़ा।