Gyanvapi Case: वाराणसी डिस्ट्रिक कोर्ट ने खारिज की हिंदू पक्ष की मांग, शिवलिंग की कार्बन डेटिंग से जुड़ा था मामला

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): Gyanvapi Masjid Case: वाराणसी की जिला अदालत ने आज (14 अक्टूबर 2022) को हिंदू उपासकों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पाये जाने वाले ‘शिवलिंग’ की ‘वैज्ञानिक जांच’ की मांग की गयी थी। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के 17 मई के उस आदेश को ध्यान में रखते हुए याचिका खारिज कर दी, जहां मस्जिद में सर्वेक्षण के दौरान कथित तौर पर ‘शिवलिंग’ पाया गया था।

बता दे कि याचिका पर मंगलवार (11 अक्टूबर 2022) को बहस पूरी हो गयी और कोर्ट ने अपना फैसला आज के लिये सुरक्षित रख लिया। हिंदू याचिकाकर्ताओं ने कथित परिसर में अदालती वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान दावा किया था कि “वज़ूखाना” के पास “शिवलिंग” पाया गया। इस दावे को मुस्लिम पक्षकारों ने विवादित बताया और कहा कि वीडियोग्राफी के दौरान मिली वस्तु शिवलिंग नहीं बल्कि “फव्वारा” था।

जिला अदालत के जज एके विश्ववेश (Judge AK Vishwavesh) ने अंजुमन इंतेजामिया समिति (Anjuman Intejamia Committee) की आपत्तियों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। बता दे कि मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अंजुमन इंतेजामिया समिति कोर्ट में खड़ी है, साथ ही वो मस्जिद का प्रबंधन करती।

मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश हुए वकील मुमताज अहमद (Advocate Mumtaz Ahmed) ने कहा कि उन्होंने कोर्ट से कहा कि कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating of Shivling) इस तरह नहीं की जा सकती जैसे कि प्रक्रिया के दौरान वो क्षतिग्रस्त हो जाये, ये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना होगी।

इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी (Varanasi) के जिला मजिस्ट्रेट से कथित शिवलिंग को सुरक्षित रखने के लिये कहा था। ऐसे हालातों में इसकी जांच करवाना उचित नहीं ठहराया जा सकता है। मुस्लिम पक्ष ने ये भी तर्क दिया कि मूल मामला श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri) की पूजा के बारे में है जबकि मस्जिद में संरचना का इससे कोई लेना-देना नहीं है।

इस साल 12 सितंबर को जिला अदालत ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति के दीवानी मुकदमे की चुनौती को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि हिंदू पूजा स्थल अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है और ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले मुकदमे सुनवाई के लायक हैं।

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