Himachal Pradesh Elections 2022: जातीय समीकरण तय करेगें कांग्रेस और भाजपा की चुनावी उम्मीदें

चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Elections) की तारीखों का ऐलान कर दिया है। पहाड़ी राज्य में मतदान 12 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 8 दिसंबर को होगी। सूबे की राजनीति ज्यादातर दो पार्टियों और दो परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। साल 1993 और 2017 के बीच राज्य में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह (Congress’s Virbhadra Singh) और भाजपा के प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal of BJP) ने बारी-बारी से मुख्यमंत्री बने। हालांकि भाजपा के पास दो बार के सीएम रहे शांता कुमार (Shanta Kumar) के तौर पर एक और कद्दावर नेता है, लेकिन ज्यादातर अन्य नेता और संगठन केवल नाममात्र के ही है।

हिमाचल पर्यटकों का स्वर्ग है, कई लोग ऐंडवेचर स्पोर्ट्स के लिये यहां आते है। यहां की राजनीति भी उतनी ही ऐंडवेचरों से भरी हुई है। दशकों से कोई भी तीसरा दल या गठबंधन अपने लिये सूबे में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुआ है। साल 2012 में कुछ बागी भाजपा नेताओं ने हिमाचल लोकहित पार्टी (Himachal Lokhit Party) का गठन किया, जिसने मीडिया में लहरें पैदा कीं। हालांकि ये ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर सकी, लेकिन पार्टी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, उसमें 4.5 फीसदी वोट हासिल किये, जिससे बीजेपी की संभावनाओं को इतना नुकसान पहुंचा कि उसे सत्ता गंवानी पड़ी।

बसपा, माकपा और राकांपा (CPI(M) and NCP) जैसी अन्य पार्टियां भी अपनी किस्मत चुनावी मैदान आजमा रही हैं। हिमाचल की द्विध्रुवीय राजनीति की ये हो सकता है कि यहां के प्रमुख सामाजिक समूह अपना खुद का ब्रांड बनाने के बजाय भाजपा या कांग्रेस में ज़्यादा विश्वास रखते हैं।

इस पहाड़ी राज्य की राजनीति में राजपूतों और ब्राह्मणों का वर्चस्व है। जैसा कि हिमाचल के पावर कॉरिडोर में एक लोकप्रिय कहावत है, “राजा (सीएम) को राजपूत होना चाहिये और किंगमेकर (संगठन की देखभाल करने वाला शख्स) ब्राह्मण होना चाहिए।” दरअसल शांता कुमार (ब्राह्मण) को छोड़कर हिमाचल का हर मुख्यमंत्री राजपूत रहा है।

हिमाचल की आधी से ज्यादा आबादी इन दो जातियों से है- राजपूत 33 फीसदी और ब्राह्मण 18 फीसदी। 25 प्रतिशत से ज्यादा दलितों की आबादी भी अहम अनुपात है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक सूबे में ओबीसी 13.5 फीसदी, एसटी 5.7 फीसदी और मुस्लिम 3 फीसदी से नीचे हैं। ऊंची जाति का वोट बीजेपी के पक्ष में थोड़ा झुका हुआ है, भले ही भगवा खेमा कांग्रेस के दलित वोटबैंक (Dalit Vote Bank) में लगातार सेंधमारी कर रहा है।

हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में पंजाबियों (ज्यादातर कारोबारी) से लेकर ऊपरी इलाकों में तिब्बतियों तक (धर्मशाला में दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती सरकार हैं) शामिल। चीन के साथ सीमा साझा करने वाले राज्य में बड़ी आबादी फौजियों की है, जिनमें से ज्यादातर को भाजपा के प्रति सहानुभूति हैं (गलवान संघर्ष अभी भी सार्वजनिक स्मृति से मिटना बाकी है)।

दूसरा कारण वंशवादी राजनीति है। वीरभद्र सिंह का पिछले साल निधन हो गया, लेकिन उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह (Pratibha Singh) मंडी से सांसद और कांग्रेस की प्रदेश इकाई की अध्यक्ष हैं; उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह (Vikramaditya Singh) शिमला ग्रामीण से विधायक हैं। प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) साल 2017 में सुजानपुर (Sujanpur) से हार गये, लेकिन उनके बेटे अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई अहम विभागों को संभाला। अगर बीजेपी इस बार हिमाचल जीतती है तो हमीरपुर (Hamirpur) के सांसद भी शीर्ष पद की दौड़ में सबसे आगे होगें।

ये दोनों परिवार राज्य में चुनावी नतीजों को काफी हद तक अपना असर डाल सकते हैं। पिछले दो चुनावों के आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि मध्यम और गरीब तबके का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी में शामिल हो गया है, जबकि अमीर वर्ग अभी भी कांग्रेस के पक्ष में है।

इस साल की शुरुआत में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने अपनी पूरी राज्य इकाई को भंग कर दिया क्योंकि शीर्ष नेतृत्व भाजपा में शामिल हो गया। आप हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में बसे पंजाबी वोटरों को टारगेट करने की जुगत में है और माना जा रहा है कि वो कांग्रेस के वोट शेयर में बड़ी सेंधमारी कर सकती है। अब सबकी निगाहें 12 नवंबर पर टिकी हैं।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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