न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) परिसर में शिवलिंग (Shivling) की पूजा की मंजूरी मांगने के लिये सुनवाई के बाद फास्ट-ट्रैक कोर्ट 6 नवंबर को अपना फैसला सुनायेगा। हिंदू पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता अनुपम द्विवेदी ने कहा कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) महेंद्र पांडे की फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast-Track Court) ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और मुकदमे पर अपना आदेश 8 नवंबर तक सुरक्षित रख लिया।
इससे पहले 24 मई को वादी किरण सिंह जो कि विश्व वैदिक सनातन संघ (Vishwa Vedic Sanatan Sangh) के महासचिव भी हैं, ने वाराणसी जिला अदालत में मुकदमा दायर कर ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों के आने पर बैन लगाने, परिसर को सनातन संघ को सौंपने और शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने की अनुमति की मंजूरी मांगी थी।
25 मई को जिला अदालत के न्यायाधीश एके विश्वेश (Judge AK Vishvesh) ने मुकदमे को फास्ट-ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। इस मामले में वाराणसी के जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, ज्ञानवापी मस्जिद का मैनेजमेंट कर रही अंजुमन इंतेजामिया कमेटी और विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट (Anjuman Intejamia Committee and Vishwanath Temple Trust) को प्रतिवादी बनाया गया है।
निचली अदालत (सिविल जज-सीनियर डिवीजन) ने पहले 26 अप्रैल को मस्जिद की बाहरी दीवारों पर हिंदू देवताओं की मूर्तियों की रोजाना पूजा की मंजूरी मांगने वाली महिलाओं के समूह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, ने ज्ञानवापी परिसर के वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण (Videographic Survey) का आदेश दिया था। सर्वेक्षण के दौरान हिंदू पक्ष ने दावा किया कि मौके पर ‘शिवलिंग’ पाया गया।
हालांकि मुस्लिम पक्ष ने ये सुनिश्चित किया है कि कथित शिवलिंग “वज़ूखाना” तालाब में पानी के फव्वारे का हिस्सा थी, जहाँ नमाज़ अदा करने से पहले नमाज़ी हाथ मुंह-धोया करते है।
20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जटिलताओं और संवेदनशीलता को देखते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से ये मामला जिला न्यायाधीश (District Judge) को ट्रांसफर कर दिया, इस कवायद पर कोर्ट ने कहा कि- बेहतर है कि वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी (Senior Judicial Officer) के पास ये मामला हो, जिसके पास 25-30 साल से ज्यादा अनुभव हो।