सऊदी अरब और Iran के बीच सुलगती जंगी चिंगारियां

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी अरब और ईरान (Saudi Arabia and Iran) के बीच दशकों पुरानी अदावत फिर से उभरती दिख रही है। हाल ही में दोनों दुश्मनी फिर से सुर्खियों में आ गयी, जब अमेरिकी खुफ़िया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तेहरान सऊदी सल्तनत को निशाना बनाने के लिये तैयार है। ईरान और सऊदी अरब के बीच का झगड़ा क्षेत्रीय प्रभुत्व और धार्मिक वर्चस्व के लिये संघर्ष है। खुफिया जानकारी साझा करने वाले अधिकारियों में से एक ने दावा किया कि 48 घंटों के भीतर ईरानी मिसाइलों सऊदी की चमक दमक को नेस्तनाबूत कर सकती है।

जिसके बाद ईरान ने इस बात से इनकार किया है कि वो सऊदी अरब के लिये खतरा है। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी (Nasir Canaanite) ने कहा कि पश्चिमी मीडिया में सऊदी अरब के खिलाफ ईरानी धमकी की खबरें सामने आयी थीं, लेकिन वो पूरी तरह से खोखली और बेबुनियादी है। इस बात खब़र में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है।

मध्य पूर्व शीत युद्ध के बाद से ही ईरान-सऊदी अरब दोनों ही दबे-छिपे संघर्ष से गुजर रहा है। दोनों ही खुद को इस्लामिक दुनिया में ताकतवर बनाने की होड़ में लगे हुए है। झगड़े की बड़ी वज़ह दोनों देशों के बीच धार्मिक मतभेद हैं। ईरान बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम (Shia Muslim) देश है, सऊदी अरब प्रमुख सुन्नी मुस्लिम (Sunni Muslim) राज्य है। सऊदी अरब में इस्लाम ने पहली बार आंखे खोली, इस वज़ह से सऊदी की सल्तनत हमेशा खुद को दुनिया भर के मुसलमानों का खैरख्वाह मानती है, लेकिन सऊदी को सोच को साल 1979 में चुनौती मिली, जब ईरान में इस्लामी क्रांति (Islamic Revolution) हुई।

सऊदी अरब खुद को मुस्लिमों सबसे बड़ा नेता मानता है क्योंकि उसके पास इस्लाम की दो सबसे पाक और मुकद्दस जगहें मक्का और मदीना है। दूसरी ओर ईरान का मानना ​​​​है कि इस्लामिक जगत की रगों में बदलाव कि जो सियासी कुव्वत पैदा हुई है, वो उसी के इलाके से उभरी है।

जहां सऊदी अरब के अमेरिका और यहां तक ​​कि इजरायल (Israel) के साथ अच्छे संबंध हैं, वहीं ईरान दोनों देशों को अपने सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर देखता है। ईरान को लगता है कि मध्य पूर्व में अमेरिका और उसकी अगुवाई वाली ताकतों ने सबसे ज़्यादा शोषण किया है। इस कथित जुल्मोंगारत में उसे सऊदी अरब की भूमिका भी साफ दिखती है।

इसी क्रम में सऊदी अरब ने साल 2016 में ईरान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध तोड़ दिये, जब ईरानी प्रदर्शनकारियों ने तेहरान (Tehran) में सऊदी दूतावास पर सऊदी अरब के शिया मौलवी की फांसी के जवाब में धावा बोल दिया। सऊदी अरब ने साल 2019 में ईरान को एक बड़े हमले के लिये जिम्मेदार ठहराया, जिसके वज़ह से सऊदी का क्रूड ऑयल प्रोडक्शन (Crude Oil Production) घटकर आधा रह गया।

सऊदी यमन (Yemen) में ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों (Houthi Rebels) से लड़ रहा है और यमन में हवाई हमलों के लिये दुनिया भर में उसकी आलोचना हुई, इन हमलों में कई निर्दोष यमनी नागरिक मारे गये।

सऊदी और ईरानी अधिकारियों ने हाल के महीनों में सुरक्षा मुद्दों और यमन में युद्ध पर चर्चा करने के लिये चुपचाप मुलाकात की, लेकिन उनके बीच का संघर्ष पिछले महीने खत्म हो गया, लेकिन मौजूदा हालातों में बने समीकरणों ने एक बार फिर नये सिरे तनाव को चरम पर पहुँचा दिया है। कासिम सुलैमानी (Qasim Soleimani) की हत्या से ईरान अभी तक उभर नहीं पाया है, जिसमें वो कथित तौर पर अमेरिका और सऊदी का हाथ मानता है।

भले ही ईरान और सऊदी अरब के बीच संघर्ष मिडिल-ईस्ट में प्रभुत्व के लिये है, लेकिन इसकी तासीर का असर पूरी दुनिया में दिखेगा। मध्य पूर्व धरती पर सबसे बड़ा ऑयल सप्लायर है। इस्लामी जगत की दो सबसे बड़ी ताकत के बीच सीधे जंगी टक्कर वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपाहिज़ कर सकती है। खासकर जब हम पहले से ही रूस-यूक्रेन जंग (Russia-Ukraine War) का असर पूरी दुनिया पर देख रहे हैं।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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