Imran Khan पर हमला लायेगा नया मोड़, बढ़ी सरगर्मियां

इमरान खान (Imran Khan) पर जानलेवा हमले की कोशिश ने नाटकीय रूप से सियासी दांव को काफी बढ़ा दिया। पाकिस्तान में सत्तारूढ़ सरकार के सामने पेश की गयी चुनौती के तेवर को पूरी तरह से बदल दिया है। अब तक पाकिस्तान भारतीय मीडिया में खेल के पन्नों के मुकाबले पॉलिटिकल कॉलम में ज़्यादा दिखायी देने लगा है। ये बदलाव पूरी तरह बाध्य है क्योंकि ये नवंबर पाकिस्तान से मुख्य समाचार में न सिर्फ उस देश के इतिहास में बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा के लिये भी एक और अहम मोड़ बनने की कुव्वत रखता है।

इमरान खान पूर्व प्रधान मंत्री और विपक्षी राजनीतिक दल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इस्लामाबाद तक एक लंबा मार्च कर रहे हैं, वो न सिर्फ प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ (Prime Minister Shahbaz Sharif) की सरकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि उम्मीद भी कर रहे हैं। इसके साथ ही वो पाकिस्तान के सशस्त्र बलों के नेतृत्व के भीतर भी दो-फाड़ करना चाहते है। जहां गुरूवार (3 नवंबर 2022) के हमले से पहले इमरान खान का मार्च अगले कुछ दिनों के भीतर इस्लामाबाद के बाहरी इलाके में पहुंचने की उम्मीद थी, वहीं नवंबर में एक और अहम कार्यक्रम देखने लायक होगा, जो महीने के आखिर में सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा (Army Chief Qamar Javed Bajwa) की तयशुदा रिटायरमेंट होगी।

क्या खान इस्लामाबाद (Islamabad) की घेराबंदी कर देंगे? क्या बाजवा रिटायर हो जाएंगे या पाकिस्तान की राजनीति में किसी तरह का सैन्य दावा होगा? क्या खान और शरीफ जैसे राजनीतिक नेता किसी ऐसे समझौते पर पहुंच सकते हैं जिससे देश को राहत मिले? क्या सेना शहबाज़ शरीफ को छोड़ देगी और इमरान खान का समर्थन करेगी? क्या पाकिस्तान की सियासी पार्टियां और सशस्त्र बल इस खेल की अहम खिलाड़ी है या फिर इसमें चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, तुर्की और सऊदी अरब (Turkey and Saudi Arabia) जैसे बाहरी खिलाड़ी भी शामिल हैं?

जिस हद तक पाकिस्तान आर्थिक संकट में फंस गया है, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद और स्ट्रक्चरल एडजस्टमेंट प्रोग्राम को लागू करना अहम है। बड़ा सवाल ये है कि क्या राजनीतिक अस्थिरता और अगले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा? ऐसे समय में जब राज्य के अन्य प्रमुख संस्थानों को चुनौती दी जा रही है, न्यायपालिका क्या भूमिका निभा सकती है? क्या इन सबका असर भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ेगा?

ये और कई अन्य सवाल इस इलाके और दुनिया भर में पाकिस्तान मामलों के विश्लेषकों के जरिये पूछे और जांचे जा रहे हैं। अफ़सोस की बात है कि ऐसे समय में भारतीय मीडिया के पास देश में सीधे रिपोर्ट करने के लिये एक भी संवाददाता तैनात नहीं है। जबकि प्रिंट मीडिया कम से कम कभी-कभी पाकिस्तान में हो रहे घटनाक्रम के बारे में पेशेवर नज़रिया पेश करता है। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पाकिस्तान की रिपोर्टिंग और विश्लेषण को सोप ओपेरा, सर्कस और सिर्फ दुष्प्रचार में तब्दील कर दिया है।

कुछ भारतीय विश्लेषकों का दावा था कि पाकिस्तान को ग्रे से वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की ब्लैक लिस्ट में ले जाया जायेगा। अमेरिका ने रक्षा आपूर्ति को फिर से शुरू पाकिस्तान के लिये बहाल कर दिया है। वाशिंगटन (Washington) के इशारे पर पश्चिमी राजनयिकों ने पाकिस्तानी राजनेताओं को लुभाना शुरू कर दिया। बावजूद इसके नई दिल्ली (New Delhi) में सत्तारूढ़ सरकार में कुछ लोग दावा करेंगे कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को “अलग-थलग” करने में कामयाब रहा है। इसके ठीक उल्ट आज पाकिस्तान के अमेरिका, चीन, तुर्की, सऊदी अरब, ईरान, ब्रिटेन और रूस (Britain and Russia) के साथ काफी अच्छे तालुक्कात हैं।

अतीत में सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के अलावा पाकिस्तान पर भारत में राजनयिक और पत्रकार दो ही ज़मात के लोग मजबूत विशेषज्ञ राय देते थे। कई डिप्लोमेट्स ने रिटायरमेंट के बाद पाकिस्तान पर कई किताबें भी लिखी। चीन और पाकिस्तान पर हाल के दिनों में प्रकाशित कुछ बेहतरीन पुस्तकों के लेखक पूर्व राजनयिक, खुफिया अधिकारी और वरिष्ठ रक्षा कर्मचारी रहे हैं।

कई अच्छे इतिहासकार हैं जिनके पास अभिलेखागार तक पहुंच है, खासतौर से ब्रिटेन में जिन्होंने अतीत पर दिलचस्प किताबें लिखी हैं, लेकिन पाकिस्तान की समकालीन अर्थव्यवस्था, राजनीति, जातीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य मुद्दों पर कुछ जानकार प्रकाशन हैं। जब वरिष्ठ पत्रकारों को या तो पाकिस्तान में तैनात किया जाता था या वो अक्सर यात्रा कर सकते थे और राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के साथ सामाजिक संबंध स्थापित कर सकते थे, अफसोस कि ये रवायत लगभग खत्म से ही गयी है। जिसके चलते हिंदुस्तानी मीडिया खासतौर से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के लिये पाकिस्तान बंद दरवाज़े वाला मुल्क सा बन गया है। सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी लोगों से लोगों की बातचीत में नाटकीय रूप से कमी आयी है।

यात्रा पर प्रतिबंधों के कारण पहुंच की कमी और इससे भी अहम बात ये है कि मौजूदा पीढ़ी काफी सीमित तौर पर पाकिस्तानी की भीतरी उथल-पुथल को जान पा रही है। जानकारी, पेशेवर रेगुलर रिपोर्टिंग और विश्लेषण के कमी से पैदा हुए खालीपन को अफवाहें, आक्षेप, और पूर्वाग्रहों से भरा जा रहा हैं।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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