आईएसआई महानिदेशक प्रेस कॉन्फ्रेंस देखने के बाद पाकिस्तान (Pakistan) का चल रहा राजनीतिक संकट इमरान के गोली लगने वाले प्रकरण पर फिर वापस आ गया है। इस्लामाबाद (Islamabad) में समर्थकों के “लॉन्ग मार्च” की अगुवाई करते हुए पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को 3 नवंबर को पंजाब के वज़ीराबाद (Wazirabad) में पैर में गोली लग गयी। ये इलाका उनकी पार्टी द्वारा शासित प्रांत है। फिलहाल उनका लाहौर के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत स्थिर बतायी जा रही है।
इस घटना की पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) और इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस के आला नेताओं ने तुरंत निंदा की, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने पेशावर (Peshawar) में कोर कमांडर के घर के बाहर जमकर बवाल काटा। संघीय सरकार ने पंजाब सरकार से हत्या के प्रयास की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने को कहा और जरूरी मदद देने का वादा भी किया। पाकिस्तानी मीडिया ने हिरासत में लिये गये एक संदिग्ध का वीडियो जारी किया जिसमें उसने दावा किया है कि उसने लोगों को “गुमराह” करने के लिये इमरान खान पर गोली चलायी थी। हालांकि कई मीडिया रिपोर्टों में जिक्र किया गया है कि कम से कम एक और पिस्तौल चलाने वाला शख़्स मौका-ए-वारदात पर मौजूद था।
पाकिस्तान का पिछला रिकॉर्ड बताता है कि सच्चाई कभी भी पता नहीं चल सकती है। साल 2007 में लोकप्रिय नेता बेनज़ीर भुट्टो (Benazir Bhutto) की हत्या के पीछे दोषियों के बारे में आज तक कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है। फिलहाल सेना, सरकार और इमरान खान के विरोधी ये दावा कर रहे है कि पीटीआई के सत्ता से बेदखल होने के बाद से ही वापस तख्त पर बैठने के लिये बेकरार है। बेबुनियादी आरोप और ध्रुवीकरण की कोशिश इमरान खन लगातार कर रहे है। इसी क्रम में उन्होनें लोकप्रियता में इज़ाफा करने के लिये फॉल्स फ्लैग ऑप्रेशन (False Flag Operation) को अंजाम दिया है।
पाकिस्तान के मौजूदा मिजाज को देखते हुए पीटीआई ने बयान जारी कर प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ, गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह खान (Rana Sanaullah Khan) और आईएसआई के काउंटर-इंटेलिजेंस विंग के प्रमुख मेजर जनरल फैसल नसीर (Major General Faisal Naseer) को इसके लिये दोषी ठहराया और उन्हें पद से तुरन्त हटाने की बात कहीं। हालांकि पाकिस्तान में ताकतों के तर्क गले के नीचे नहीं उतर रहे है। ये तंजीमें अच्छे से जानती है कि मौजूदा प्रकरण से इमरान खान को कितनी पॉलिटिकल माइलेज मिल सकती है, जो कि पुख़्ता तौर पर निश्चित है।
हालांकि सेना नेतृत्व के लिये ये निराशाजनक समय है। उन्हें काबू में करने की कवायदें अब तक नाकाम रही हैं। पाकिस्तानी सेना के सामने सेना-विरोधी, अमेरिका-विरोधी और पुराने सियासी धुरंधरों की एक बड़ी जमात है जो कि बड़ी चुनौती पेश कर रही है। ये किसी तरह के दबाव से पूरी तरह बाहर है। जैसे ही मीडिया से मुखातिब होकर डीजी आईएसआई अपनी कुर्सी से उतरे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखी गयी। पॉलिटिकल किलिंग और पाकिस्तान सेना चोली दामन का साथ रहा है, पाकिस्तान में इससे जुड़े किस्से आम लोगों के मुंह आसानी से सुने जा सकते है। साल 2014 में टीवी एंकर हामिद मीर (TV anchor Hamid Mir) पर जानलेवा हमला इसकी बानगी भर है। बाद में इस हमले के पीछे तत्कालीन डीजी आईएसआई (ISI) का नाम सामने आया था।
इमरान खान के लिये सियासी रफ्तार को बनाये रखना अहम है और वो इस घटना का इस्तेमाल आगे बढ़ाने के लिये कर रहे हैं। पीटीआई ने 4 नवंबर को जुमे की नमाज के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था, जो उनकी मांगें पूरी होने तक जारी रहेगा। इस साल मई में इस्लामाबाद (Islamabad) के लिये निकला उनका लंबा मार्च नाकाम हो गया था क्योंकि वो अच्छी खासी तादाद जुटाने में नाकाम रहे थे। जब पीटीआई ने पंजाब प्रांत में अच्छी तादाद में सीटें निकाली तो इमरान की मशहूरियत में खासा इज़ाफा हुआ और उनके लिये भीड़ जुटाना आसान हो गया है। हालांकि भले ही इमरान खान ने अपने विरोधियों पर दबाव डाला हो, वो कथित तौर पर सेना नेतृत्व के साथ बैक-चैनल संपर्कों में भी बने हुए है।
भले ही चल रहे राजनीतिक संकट का खात्मा अनिश्चित बना हुआ है, लेकिन आने वाले दिनों में पाकिस्तान में और ज़्यादा उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। ये भी तय है कि पाकिस्तान के लिये ये आखिरी संकट नहीं। ऐसे घटनायें वक्त बेवक्त पड़ोसी मुल्क से सामने आती रहेगीं। जब तक कि कई सियासी मुद्दों के साथ-साथ नागरिक-सैन्य असंतुलन की वज़ह से पैदा होने वाली दिक्कतों को दूर नहीं कर लिया जाता है।
इमरान खान ने इसके खिलाफ जाकर राष्ट्रीय मामलों में अपनी अहम मौजूदगी बनाये रखने में पाकिस्तानी सेना की चुनौती को टक्कर दी है। पेशावर में इमरान खान पर हमले के बाद प्रदर्शनकारियों की तोड़फोड़ के बीच खड़ा पाकिस्तानी सेना का टैंक इसी बिंदु ताकतवर तस्वीर को पेश करते है। हालांकि ये नतीज़ा निकालना जल्दबाजी होगी कि हम पाकिस्तान में लोकतांत्रिक क्रांति को फैलते हुए देख रहे हैं।
शुरुआत में तो इमरान खान सेना नेतृत्व का विरोध करते हुए उनसे जल्दी चुनाव कराने की गुहार भी लगाते रहे हैं। उन्हें पता हैं कि पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में सेना की भूमिका केंद्रीय नेतृत्व में हमेशा से रही है। साथ ही ये भी कि शहबाज शरीफ सरकार 28 नवंबर को जनरल बाजवा (General Bajwa) के एक्सटेंडिड कार्यकाल के पूरा होने पर अगले सेना प्रमुख की नियुक्ति से उपज़ने वाले उनके कड़े विरोध साफ है। पाकिस्तानी सेना के सभी रैंक अपने वजूद को लेकर खासा दिलचस्पी रखते है, इससे ही उनके भत्तें और विशेषाधिकार सुनिश्चित होते है और अगर इसमें किसी सिविलियन लीडर का दखल होता है तो वो एक साथ खड़े होंगे। इसके अलावा बड़ी बात ये भी है कि अतीत में कई मौकों पर देखा गया है कि पाकिस्तानी सेना ने कई सियासी शख़्सियतों की मशहूरियत को धूल में मिलाया है।
मौजूदा हालातों में बड़े पैमाने पर जनरल बाजवा के लिये बड़ी समस्या है कि, उनकी प्रतिष्ठा पर पीटीआई का हमला हुआ है। उन्होनें कई मौकों और कई मंचों पर ये कहा है कि वहो 28 नवंबर को अपनी वर्दी उतार देगें, लेकिन उसके इरादों पर शक बना हुआ है। वो कम से कम ऐसा सेना प्रमुख बनाना चाहेगें जो कि उनकी सरपरस्ती में पला हो और उनकी बातों को आंखें मूंदकर माने। फिलहाल झगड़ा इस बात को लेकर है कि 29 नवंबर को सेनाध्यक्ष कौन बनता है?