न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): राज्यपाल और वाम सरकार के बीच जारी खींचतान के बीच केरल मंत्रिमंडल (Kerala Cabinet) ने आज (9 नवंबर 2022) राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Governor Arif Mohammad Khan) को कुलाधिपति पद से हटाने के लिये अध्यादेश लाने का फैसला किया। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल कुलाधिपति की जगह विशेषज्ञ को लाने की योजना बना रहा है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने हाल ही में राज्य के सभी नौ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के इस्तीफे की मांग की, जिसके बाद ये फैसला आया।
केरल के राज्यपाल की ओर जारी फरमान के मुताबिक- केरल विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, केरल मत्स्य पालन और महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय, कन्नूर विश्वविद्यालय, एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय संस्कृत, कालीकट विश्वविद्यालय और थुनाचथ एज़ुथाचन मलयालम विश्वविद्यालय (Thunachath Ezhuthachan Malayalam University) के कुलपतियों को अपने पदों से इस्तीफा देने के लिये कहा गया है।
बाद में नौ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने इस्तीफा देने के राज्यपाल के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय की ओर रूख किया। राज्यपाल ने सिज़ा थॉमस (Siza Thomas) को तिरुवनंतपुरम (Thiruvananthapuram) में एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (केटीयू) का प्रभारी कुलपति भी नियुक्त किया था।
इस बीच सीएम पिनाराई विजयन (CM Pinarayi Vijayan) सरकार ने उच्च न्यायालय से नियुक्ति पर रोक लगाने का अनुरोध किया, जिसके के तहत केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद ने खान राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर को ये आदेश दिया था। हालांकि कोर्ट ने मंगलवार (10 नवंबर 2022) को नियुक्ति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर में यूजीसी (UGC) के नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए डॉ राजश्री एमएस को कुलपति पद से बर्खास्त कर दिया था। प्रोफेसर श्रीजीत पी.एस. (Professor Shreejit PS.) ने न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की न्यायिक पीठ वाले केरल उच्च न्यायालय के 2 अगस्त, 2021 के आदेश को चुनौती दी थी।
मामले पर शीर्ष अदालत ने कहा कि, यूजीसी के नियमों के मुताबिक कुलाधिपति/कुलपति खोज समिति की ओर से सिफारिश किये गये नामों के पैनल में से कुलपति की नियुक्ति की जा सकती है। इसलिये जब सिर्फ एक नाम की सिफारिश की गयी थी और नामों के पैनल की सिफारिश नहीं की गयी थी, तब कुलाधिपति के पास अन्य उम्मीदवारों के नामों पर विचार करने का कोई विकल्प नहीं था। इसलिये प्रतिवादी राजश्री की नियुक्ति को अपमानजनक और/या यूजीसी विनियमों के प्रावधानों के साथ-साथ विश्वविद्यालय अधिनियम 2015 के ठीक उलट कहा जा सकता है।