भूकंप ने दिखा दी Turkey और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की खटास

6 फरवरी 23 की तड़के सीरिया की सीमा से सटे तुर्की (Turkey) के दक्षिण-पूर्वी इलाके में तबाही मचाने वाले तीन भूकंप आये। आये इन भूकंप की वज़ह से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ, कुछ ऐसा कि जिसकी किसी ने कल्पना तक ना की थी। बड़े पैमाने पर मची चीख पुकार को देखते हुए विश्व समुदाय ने राहत, बचाव और मदद के लिये तुरन्त हाथ बढ़ाया। इन्हीं हालातों के मद्देनज़र अपने पुराने तालुक्कातों को देखते हुए पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने भी तुर्की की ओर मदद का हाथ बढ़ाने की कोशिश की, जिसे अंकारा (Ankara) में बैठे हुक्मरानों ने सिरे से खाऱिज कर दिया।

अपनी व्यक्तिगत एकजुटता और करीबी दिखाने के लिये पाकिस्तान के पीएम ने अगले दिन 07 फरवरी 23 को तुर्की के दौरे के ऐलान कर दिया। हालांकि जल्दबाजी में घोषित किये गये इस गलत दौरे ने पाकिस्तान (Pakistan) के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई समुदायों से भारी नकारात्मक प्रतिक्रिया हासिल की। मौजूदा हालातों में जाने बचाने पर ध्यान लगाये तुर्की ने पाकिस्तान की बनावटी नेकनीयती को खारिज करते हुए शहबाज़ शरीफ (Shahbaz Sharif) को आने से मना कर दिया। ध्यान देने वाली बात ये कि हाल ही में 12 फरवरी को अंकारा पहुँचे कतर के शाह का तुर्की के राष्ट्रपति ने खुलकर खैरोमकदम किया।

इसी प्रकरण के बाद थिंक टैंक समूह की ओर से कई लेख छापे गये, जिसमें इस घटना का विश्लेषण किया गया है। इससे साफ हो जाता है कि कुछ हद तक इस्लामाबाद और अंकारा के रिश्तों में खटास या दबी छिपी तल्खी आयी है। कई विशेषज्ञों इसे तुर्की और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक संबंधों में आदर्श बदलाव बता रहे है।

ये सभी जानते है कि अंकारा और इस्लामाबाद (Islamabad) बड़े पैमाने पर भू-राजनीतिक संबंध साझा करते हैं और मुस्लिम-बहुल देशों के बीच लोकतांत्रिक और सैन्य दोनों शासनों में करीबी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सैन्य संबंधों का समृद्ध इतिहास रहा है। ऐतिहासिक रूप से तुर्की के लिये पाकिस्तान को समर्थन देना मध्य पूर्वी देशों के बीच अंकारा की तेजी से बढ़ती बढ़त का सूचक रहा है। लंबे समय से तुर्की मुस्लिम दुनिया में अगुवा बनने के लिए अरब देशों खासतौर से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ खुला मुकाबला कर रहा है। तुर्की और पाकिस्तान के बीच बढ़ती करीबी पिछले एक दशक में अरब देशों के साथ भारत के मजबूत और विविध संबंधों के नतीज़न ही बढ़ी है। जाहिर है पाकिस्तान का अरब देशों के साथ करीबी तालुक्कात रहे है, लेकिन भारत के अरब दुनिया (Arab world) में प्रमुखता हासिल करने के साथ पाकिस्तान ने तुर्की के करीब आना जारी रखा हुआ है।

दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर आधिकारिक बयान में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के महत्व, संसदीय संवाद और सहयोग को मजबूत करने, इन इलाकों में शांति, स्थिरता और विकास को बनाये रखने पर जोर दिया गया है। इन देशों के नागरिक नागरिकता पहल के तहत दोहरी नागरिकता का आनंद लेते हैं। यहाँ ये जिक्र करना जरूरी है कि पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे पर तुर्की अपनी घोषित नीति में बहुत खुला रहा है और उसने कश्मीर संघर्ष पर पाकिस्तान के रुख का खुलकर समर्थन किया है और भारत के साथ अपने संघर्ष के दौरान राजनीतिक और सैन्य समर्थन बनाये रखा है। तुर्की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में पाकिस्तान की सदस्यता का भी समर्थन करता रहा है। पाकिस्तान ने उत्तरी साइप्रस में तुर्की की नीति के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए प्रत्युत्तर दिया है। दोनों देश इस्लामिक सम्मेलन के संगठन के सदस्य हैं। पाकिस्तान ने पूर्वी भूमध्य सागर में गैस की खोज और अर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध (Armenia–Azerbaijan War) जैसे मुद्दों पर भी तुर्की का समर्थन किया है।

दोनों मुल्कों के रिश्ते में उतार-चढ़ाव का हिस्सा देर से आया। तुर्की में पाकिस्तान की कार्रवाई के खिलाफ तुर्की में कई मामले सामने आये हैं। अविश्वास की ओर ले जाने वाली कुछ घटनाओं में साल 2022 की एक घटना है, जहां पाकिस्तानी पुरुषों को तुर्की की महिलाओं और बच्चों के अनुचित वीडियो बनाते हुए पाया गया था, जो कुछ समय के लिये खासा चर्चा में रहा और ट्विटर के साथ ट्रेंड समेत सोशल मीडिया पर ये सार्वजनिक नाराजगी का सब़ब बना। इसे लेकर ‘पाकिस्तान गेट आउट’ जैसे हैशटैग ट्रेंड करते दिखे।

ये भी याद रखना चाहिये कि कैसे अभिनेता और वीजे अनुषे अशरफ (Actor and VJ Anushe Ashraf) ने पाकिस्तानी मर्दों के पाखंड पर अपनी राय रखी थी और कैसे सभी महिलायें पाकिस्तानी मर्दों के आसपास खुद असुरक्षित महसूस करती हैं। इसके अलावा अप्रैल 2022 में चार नेपाली नागरिकों को फिरौती के लिये इस्तांबुल के तकसीम स्क्वायर (Istanbul’s Taksim Square) से बंदूक की नोक पर छह पाकिस्तानी पुरुषों के एक गुट ने अपहरण कर लिया गया था। इन्हीं सब प्रकरणों के चलते तुर्की ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिये अपनी वीजा नीति को कड़ा कर दिया और साथ ही पाकिस्तानी नागरिकों को अस्थायी निवास परमिट जारी करना बंद कर दिया। इस घटना से पहले कुछ पाकिस्तानी नागरिकों को भी तुर्की के अधिकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) को सत्ता से हटाने का विरोध करने के लिये हिरासत में लिया था, बाद में तुर्की में पाकिस्तानी राजनयिकों के व्यक्तिगत दखल के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

हालांकि ये कहना शायद जल्दबाजी होगी कि पाकिस्तान के पीएम के तुर्की दौरे पर हुई रूकावट दोनों मुल्कों के बीच गिरते रिश्तों की तस्वीर है।

अब ये सवाल घूम रहा है कि आखिरी समय पर तुर्की ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ (Prime Minister Shahbaz Sharif) की मेहमानवाज़ी करने से इनकार क्यों किया? क्या इन दौरों की योजना बहुत विस्तार से और ढंग से बातचीत के बाद नहीं बनाई गयी? क्या ये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेताबी थी या पाकिस्तान के लिये दबा छुपा ये पैगाम कि वो अपने अंदरूनी मामलों की देखभाल करें जो कि रोजाना बढ़ता जा रहा है? अंकारा की मदद करने के लिये मौजूदा हालातों में पाकिस्तान पूरी तरह नाकाम है। इस्लामाबाद घरेलू मोर्चें पर रोजाना बदतर होती आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है।

पाकिस्तान अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद का सामना कर रहा है, जिसमें मंहगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गयी है और इस्लामाबाद पिछले छह महीनों से बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति, बुनियादी संसाधनों की कमी और आतंकवादी गतिविधियों का गवाह रहा है।

भारत-तुर्की संबंधों में गतिरोध मुख्य रूप से तुर्की की खुद को पाकिस्तान से अलग करने और स्वतंत्र रूप से भारत के साथ संबंधों का संचालन करने में नाकामी के चलते उपजा है। इसके बावजूद पिछले कुछ सालों में भारत और तुर्की के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के मकसद से भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (President Recep Tayyip Erdogan) के बीच समरकंद (Samarkand) में व्यक्तिगत मुलाकात समेत कई उच्च-स्तरीय जुड़ाव हुए हैं। खासतौर से आर्थिक सहयोग पर जोर जबकि कुछ थिंक टैंक इस बात पर जोर देते हैं कि तुर्की अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के रास्ते तलाश रहा है, जिसमें भारत के साथ संबंधों में सुधार से कम से कम कुछ हद तक कम हो सकती है। इसके अलावा तुर्की ने आर्थिक चिंताओं को दूर करने के एक हिस्से के तौर पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (Saudi Arabia and United Arab Emirates) के साथ रिश्ते सुधारने की मांग की है। इसका मतलब ये है कि तुर्की भारत के साथ संबंध सुधारने के लिये गंभीर रूप से इच्छुक हो सकता है

पाकिस्तान और तुर्की और साथ ही भारत और तुर्की के बीच रिश्तों का एक सारांश ये तथ्य सामने लाता है कि तुर्की हाल के दिनों में शांत कूटनीतिक क्रांति से गुजर रहा है और अंकारा ने अपने मध्य पूर्वी पड़ोस में विभिन्न संघर्षों और विवादों के पक्ष को मजबूती से तौला है और मुमकिन तौर पर इन हालातों ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और इज़राइल (Israel) समेत कई मध्य एशियाई मुल्कों के साथ तुर्की के रिश्तों में तेजी से गिरावट में खासा योगदान दिया है। तुर्की आज 2000 के दशक की मुकाबले काफी अलग स्थिति में है, उस दौरान इसकी अर्थव्यवस्था फलफूल रही थी, और अंकारा की शून्य समस्यायें नीति का मकसद फलते-फूलते विनिर्माण और निर्माण के लिये नये बाजार खोजना था। मिसाल के लिये सीरिया के साथ बेहतर संबंधों ने खाड़ी के बाजारों को लुभाने के लिये तुर्की के सामानों के बाज़ार बनने की इज़ाजत दी, जबकि उत्तरी इराक के साथ घनिष्ठ संबंधों ने तुर्की की कंपनियों को एर्दोगन की व्यक्तिगत लोकप्रियता के साथ-साथ कुर्दिस्तान क्षेत्रीय सरकार की तेल-संचालित समृद्धि से लाभान्वित होते देखा। आज का तुर्की बहुत कमजोर हालातों से गुजर रहा है। एर्दोगन और उनकी सरकार द्वारा सालों के खराब वित्तीय फैसलों के बाद इसकी अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है, जिसमें मुद्रास्फीति अब तक सर्वोच्च स्तर पर पहुँच गयी है। साथ ही पिछले एक दशक में असहमति, विपक्षी गुटों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी नकेल कसने के बाद एर्दोगन की लोकतांत्रिक साख को भारी नुकसान पहुंचा है।

जैसा कि कई देशों ने तुर्की की मदद देने के लिये खासा हाथ-पांव मारे हैं, भारत 6 फरवरी को आये भूकंप के बाद मदद के लिये सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहा है। प्रधान मंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से कहा है कि भारत तुर्की के लोगों के साथ एकजुटता से खड़ा है और इस त्रासदी से निपटने के लिये हर मुमकिन मदद देने के लिये तैयार है, जिसे जमीनी हालातों पर देखा जा सकता है और स्थानीय स्तर पर इसकी बहुत तारीफ की जा रही है। भारत में तुर्की के राजदूत फिरत सुनेल (Turkish Ambassador Firat Sunel) ने भी पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘ज़रूरत में काम आने वाला दोस्त ही सच्चा दोस्त होता है’।

भूकंप के बाद बड़े पैमाने पर तबाही के बाद तुर्की को पैसा मुहैया कराने के लिये अंकारा ने दिल्ली (Delhi) को अपनी उदारता के लिये “दोस्त” कहा है। भारत तुर्की के साथ एक मजबूत रिश्ते चाहता है, साथ ही भारत दोनों मुल्कों के बीच लचीले भारत-तुर्की संबंध की वकालत करता है। वहीं पाकिस्तान जो कि अपनी कारगुज़ारियों की वज़ह से भारी संकट से गुजर रहा है, उससे फिलहाल किसी भी देश को कुछ हासिल नहीं होने वाला है।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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