India: रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख में जहां नई दिल्ली ने क्रेमलिन की एकमुश्त आलोचना करने से इनकार कर दिया है और रियायती कीमतों पर तेल खरीदा है, वहीं इस मुद्दे ने वैश्विक ताकतों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। कूटनीतिक के विश्लेषकों ने इस मुद्दे पर खुलकर भारत के रवैये की तारीफ की है।
कई टिप्पणीकारों ने हाल के सालों में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता को खारिज कर दिया था, खासतौर से पिछले दो दशकों में भारत सामान्य रूप से पश्चिम और विशेष रूप से अमेरिका के काफी करीब आ गया है। कई अन्य देशों की तरह विशेष रूप से अमेरिका (America) ने भारत को लेकर एक नया स्वतंत्र रुख अपनाया है, जिसे कई मुल्क गुटनिरपेक्षता 2.0 के रूप में मान्यता देंगे।
सार्वजनिक रूप से अमेरिका ने कहा कि वो रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले को अच्छे से समझता है। इसमें कोई शकोशुब्हा नहीं है कि भारत क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत) और I2U2 (अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, इस्राइल और भारत) जैसे प्लेटफार्मों पर अमेरिका के साथ मिलकर बेहतर काम कर रहा है, लेकिन रूस-यूक्रेन जंग (Russia-Ukraine War) समेत कई मुद्दों पर नई दिल्ली अपना अलग रुख है, जो कि पश्चिम से बेहद अलग हैं।
कई विश्लेषकों ने बार-बार ये दलील दी है कि बदलती वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था में और अपने बढ़ते आर्थिक दबदबे और रणनीतिक महत्व के साथ भारत के पास ‘गुट-निरपेक्षता’ के उलट ‘मल्टीप्ल अलाइनमेंट’ का विकल्प है और ये सिर्फ संतुलनकारी होने के बजाय प्रमुख आर्थिक और सामरिक मुद्दों पर निर्णायक आवाज बन सकता। पश्चिम के साथ नई दिल्ली (New Delhi) के मजबूत रिश्ते और विकासशील देशों की प्रमुख चिंताओं को लेकर इसकी समझ इसे अनूठी हालातों के बीच रखती है।
ये बातें और तर्क साफतौर पर नवंबर 2022 में इंडोनेशिया में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के बिंदुओं का दोहराव है। भारत ने संयुक्त घोषणा में अहम भूमिका निभायी थी। साथ ही पश्चिम और रूस के बीच नई दिल्ली मध्यस्थ रहा था। पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बार-बार कहा है कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं है’। नई दिल्ली उर्वरकों और खाद्य की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला जैसे मुद्दों पर रूस-यूक्रेन युद्ध के असर की ओर ध्यान आकर्षित करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
ये सिर्फ रूस-यूक्रेन जंग पर भारत के रुख का मुद्दा नहीं है, बल्कि बहुपक्षवाद की नाकामी से जुड़े कुछ सवाल भी हैं, जिसने इसे ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज बनने के अनूठे हालातों में ला खड़ा किया है। ये अवधारणा जो कई लोगों के मन में थी, इस सोच ने तेजी से दौड़ती वैश्वीकृत दुनिया में कई बड़ी सामरिक और आर्थिक ताकतों की अहमियत को खतम कर दिया, जहां कई विकासशील देश पश्चिम के साथ बाधाओं को तोड़ने के इच्छुक थे।
जी20 अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद भारत ने जोर देकर कहा था कि वो महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, जो कि अक्सर हाशियें पर चले जाते हैं। जनवरी 2023 में पीएम मोदी ने ऐलान किया कि भारत ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करेगा।
हाल ही में G20 के विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने विकासशील देशों की ओर सामना की जाने वाली प्रमुख आर्थिक चुनौतियों और भारत की G20 अध्यक्षता की प्रासंगिकता पर रौशनी डालने की मांग की। इस मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा कि, “कई विकासशील देश अपने लोगों के लिये खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश करते हुए अस्थिर ऋण से जूझ रहे हैं। वो अमीर देशों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग से भी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यही वजह है कि भारत की जी20 अध्यक्षता ने ग्लोबल साउथ को आवाज देने की कोशिश की। कोई भी समूह अपने फैसलों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए लोगों की बात सुने बिना वैश्विक नेतृत्व का दावा नहीं कर सकता।”
निश्चित रूप से ये बताना अहम होगा कि कुछ मुद्दों पर संतुलित रुख अपनाते हुए रूस के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किये बिना क्वाड (Quad) में भारत एक अहम खिलाड़ी है, दूसरी ओर जबकि G20 के विदेश मंत्री रूस-यूक्रेन जंग पर उपजे मतभेदों की वजब से संयुक्त बयान देने में नाकाम थे, क्वाड के विदेश मंत्रियों की ओर से 2 मार्च 2023 को G20 की साइड लाइन पर अपनी बैठक के दौरान जारी एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया। इस कथित बयान में रूस की सीधी आलोचना किये बिना ही जंग रोकने की बात कहीं गयी।
हालांकि अपने संयुक्त बयान में विदेश मंत्रियों ने दक्षिण चीन सागर (South China Sea) पर चीन के बढ़ते आक्रामक रुख और इलाले में उसके बढ़ते दबदबे के लिये बीजिंग (Beijing) की खुलकर आलोचना की। बैठक के दौरान काउंटर टेररिज्म पर एक वर्किंग ग्रुप बनाने की भी घोषणा की गयी।
आखिर में बदलती वैश्विक व्यवस्था में और ज्यादा आर्थिक प्रगति और रणनीतिक महत्व के साथ भारत का दबदबा बढ़ना तय है और नई दिल्ली कठिन और पेचीदा विकल्प चुनने की स्थिति में होगा। हालांकि कुछ चुनौतियां हो सकती हैं। भारत अपनी प्रासंगिकता का किस हद तक फायदा उठा सकता है, ये ना सिर्फ उसके अपने आगे के रास्ते पर बल्कि भू-राजनीतिक परिदृश्य पर भी निर्भर करेगा। हाल के महीनों में ये निश्चित रूप से पश्चिम और विकासशील दुनिया के बीच तथा पश्चिम और रूस के बीच अहम पुल बनकर उभरा है।