अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) नाम के 30 वर्षीय विवादास्पद स्वयंभू उपदेशक, जिसके उग्र विचारों और मरहूम खालिस्तानी अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) के अनुकरण ने पंजाब के लोगों की सुरक्षा और भलाई के बारे में नई चिंतायें बढ़ा दी हैं। भाषणों में अमृतसिंह के कट्टर विचारों में भिंडरावाले के विचारों की काफी समानता मिलती है, जिसने सिखों के लिए एक अलग राज्य की मांग की थी, ये दावा करते हुए कि ये पंजाब की समस्याओं का एकमात्र “स्थायी समाधान” है, जल विवाद से लेकर नशीली दवाओं की लत और पंजाबी संस्कृति के बिगड़ने तक खालिस्तानी विचारधारा ही इसका इलाज है।
पंजाब के अमृतसर जिले के जल्लूपुर खेड़ा (Jallupur Kheda in Amritsar district) के रहने वाला अमृतपाल सिंह 2012 में दुबई (Dubai) चला गया और उसने ट्रक ड्राइवर के तौर पर काम किया। अगस्त 2022 में वो दुबई से भारत लौटा। एक महीने बाद अमृत सिंह को वारिस पंजाब दे का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो कि अभिनेता और कथित सामाजिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू (Deep Sidhu) की ओर से गठित संगठन था, जिसे किसानों की ओर से आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। साल 2022 में उसकी कार दुर्घटना में मौत हो गयी।
अमृतपाल के कट्टरपंथी विचारों ने थोड़े समय के भीतर उसे खालिस्तानी भावनाओं का बड़ा चेहरा बना दिया, उसे अचानक से ही लोकप्रियता की बड़ी खुराक मिल गयी। मादक पदार्थों की लत के गंभीर मुद्दों, कई पश्चिमी देशों खासतौर से कनाडा और ऑस्ट्रेलिया (Canada and Australia) में बड़ी तादाद में सिख युवाओं के प्रवास के कारण पंजाब में काफी समय से उथल-पुथल में है। केरल और आंध्र के प्रचारकों की ओर से बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरी गतिविधियों ने पंजाब में असुरक्षा की गहरी भावना पैदा की। इस अहम वक्त में अमृतपाल की एन्ट्री ली और सभी बीमारियों के लिये रामबाण इलाज के तौर पर सिख सिद्धांतों के कठोर पालन की वकालत ने उन्हें कई फॉलोवर दिये, जो कि तलवार और बंदूक लेकर घूमते हैं। जांच से पता चला है कि अमृतपाल को बड़ी भारी तादाद में विदेशी फंडिंग हासिल हुई थी, जो कि उसे लगभग 158 बैंक खातों के जरिये भेजी गयी थी।
चिंता का कारण दुनिया भर के कई शहरों में कुछ सिख लोगों की ओर से किया गया आंदोलन है, जिन्होंने विदेशी नागरिकता ले ली है। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया (UK and Australia) में ये आंदोलन उभर गये हैं। अन्य टारगेट के तौर पर केन्या, डेनमार्क, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड (Netherlands and New Zealand) में भी ठीक इसी तर्ज पर भारी विरोध प्रदर्शन पर हो सकते है। यूके में भारतीय उच्चायोग को खालिस्तान के नाम पर यूके सिखों के गुट की ओर से मार्च 2023 में निशाना बनाया गया था। सांप्रदायिक तनाव ने ब्रिटेन में लीसेस्टर और बर्मिंघम (Leicester and Birmingham) को हिला दिया, और हिंदू पूजा स्थलों पर इस दौरान हमले किये गये। खास बात ये रही कि पाकिस्तानी मुस्लिम महिलाओं के एक गुट ने साल 2022 में लंदन (London) में भारतीय उच्चायोग के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था।
इससे पहले 2019 में लंदन में भारतीय उच्चायोग को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के विरोध के बाद हमले का सामना करना पड़ा था। ब्रिटिश पाकिस्तानियों की 10,000 भीड़ ने ‘कश्मीर स्वतंत्रता मार्च’ लंदन में निकाला। कैनबरा, सैन फ्रांसिस्को, ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में कनाडाई शहर सरे, सभी ने खालिस्तानी अलगाववादियों की ओर से प्रायोजित भीड़ की हिंसा देखी है।
ठीक इसी तरह केप टाउन, वारसॉ और म्यूनिख (Warsaw and Munich) जैसी जगहों में सीएए के विरोध में विरोध प्रदर्शन किये गये। न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय के परिसर, फ़िनलैंड में टैम्पियर विश्वविद्यालय, पोलैंड में क्राको, भारत में एएमयू, जामिया और जेएनयू (Jamia and JNU) जैसे विश्वविद्यालयों में इस आग की लपटें साफ देखी गयी।
भारत के राष्ट्रीय मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय हंगामा क्या होना चाहिए? ये घटना सिर्फ भारत के खिलाफ हो रही है। किसी अन्य देश को ऐसे विकट हालातों में नहीं देखा गया। ऐसा लगता है कि एक अंतर्राष्ट्रीय लॉबी है, जो कि सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक हर तरह के सुधार में बाधा डालने पर आमादा है, जिसकी दबी छिपी मंशा है कि शहरों, कस्बों और विश्वविद्यालय परिसरों में अंतर्राष्ट्रीय हंगामा करके भारत के विकास को हर मुमकिन तरीके से रोका जाये।
भारत में लगभग 143,946 एनजीओ हैं, जो कि नीति आयोग के ‘एनजीओ दर्पण’ पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं। बड़ी तादाद में कुछ एनजीओ चरमपंथी ताकतों से पैसा हासिल कर रहे थे, जिस पर भारत सरकार ने नकेल कस दी है। अगर ये कदम ना उठाया गया होता तो कोई भी राष्ट्र-विरोधी अभियान थोड़े समय के भीतर सक्रिय हो सकता था। दिसंबर 2019 से मार्च 2020 तक चलने वाले शाहीन बाग पर अगर नज़र डाली जाये तो इसने दिल्ली में जनजीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया था। जैसा कि शक था इस आंदोलन की आड़ में नार्को-आतंकवाद एंगल छिपा था, जिसकी पुष्टि एक सौ करोड़ रुपये मूल्य की 50 किलोग्राम हेरोइन की जब्ती से हुई।
एक था किसान आंदोलन (Kisan Andolan) जिसे नवंबर 2020 में शुरू किया गया था, जो कि भारत का सबसे शानदार लग्जरी आंदोलन था। आंदोलनकारियों को रहने करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली ‘लक्जरी’ ट्रॉली, एयर कंडीशनर, वाई-फाई सिस्टम, महंगे गद्दे, टीवी स्क्रीन, म्यूजिक सिस्टम और अन्य महंगे सामान समेत उनके अंदर की सुविधाओं की वज़ह से ये सुर्खियों में आ गया। इस तरह के फिजूलखर्ची पर किस तरह का अंधाधुंध खर्चा किया जाता है, इसकी कल्पना की जा सकती है। ये समझने के लिए बहुत ज्यादा सामान्य ज्ञान की जरूरत नहीं है कि ये सब विदेशी फडिंग के दम पर किया जा रहा था।
इसी के तहत अब अब एक नई रणनीति को अमल में लाया गया है, जिसमें भारतीय छात्रों और असंतुष्ट प्रवासियों का इस्तेमाल करके विदेशी धरती पर बड़े पैमाने पर आंदोलन प्रायोजित किये जायेगें। ऐसी कवायद का बड़ा और सीधा फायदा ये है कि कोई भी जांच एजेंसी इसकी जांच नहीं कर सकती है, मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों से बचा जा सकता है। इसकी आड़ में नार्को-आतंकवाद आंतकवाद आसानी से चलाया जा सकेगा। हमें इस बात के लिये तैयार रहना होगा कि ऐसे और ज्यादा विदेशी जमावड़े भारत के विकास में आगे रूकावट डालेंगे।