न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ/राम अजोर): Meitei Reservation Issue: मणिपुर (Manipur) में मेइतेई/मीतेई समुदाय के आरक्षण का मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्थानीय समुदाय के नेता,जनजातीय छात्र संगठन और अन्य कई संस्थायें इस पुरजोर विरोध में खड़ी है। बीते सोमवार (24 अप्रैल 2023) को इस मामले को लेकर हुआ बंद काफी बड़े पैमाने पर असरदार रहा। रिम्स में रिक्तियों में आरक्षित पदों की बहाली को लेकर शुरू हुआ ये आंदोलन अब पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों में फैलता दिख रहा है। इसी मुद्दे पर अब यूनाइटेड नागा काउंसिल की प्रतिक्रिया भी सामने आयी है।
मेइतेई/मीतेई समुदाय आरक्षण मामले को लेकर हाल ही में प्रतिक्रिया देते हुए यूनाइटेड नागा काउंसिल ने कहा कि- मणिपुर का मेइतेई/मीतेई समुदाय देश में आर्थिक रूप से मजबूत जनजातीय समुदाय है, जिसकी भाषा मणिपुरी (मीतिलोन) भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है। वो पहले से ही भारत के संविधान के तहत संरक्षित हैं। समुदाय के सदस्य सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अनुसूचित जाति (एससी) के तहत सूचीबद्ध हैं। ये पूरी तरह से बेबुनियादी है कि मणिपुर के माननीय उच्च न्यायालय ने मणिपुर सरकार की भेदभावपूर्ण नीति को तव्ज़जों देते हुए अन्य समुदाय के लोगों के हितों की अनदेखी की है, जिसके बाद माननीय न्यायालय ने मेइतेई/मीतेई समुदाय को देश की अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में मेइतेई/मीतेई समुदाय को शामिल करने की सिफारिश का निर्देश दिया।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए यूनाइटेड नागा काउंसिल (UNC-United Naga Council)ने कहा कि- बीते 27 मार्च को माननीय मणिपुर उच्च न्यायालय (Manipur High Court) के निर्णय बड़े पैमाने पर कई जनजातीय समुदायों के हितों के खिलाफ है। इस फैसले से वंचित और हाशिये पर रहने वाले जनजातीय समाज के लोगों का बड़ा भारी नुकसान होगा। हम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अन्य कानूनी विकल्पों की ओर रूख़ कर करेगें। अनुसूचित जनजाति के कड़े विरोध के बावजूद मणिपुर सरकार को इस तरह फैसला लागू करने की जल्दबाज़ी से बचना चाहिये था।