इस तरह UCC का सीधा असर पड़ेगा शादी, तलाक और एबॉर्शन पर

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): पिछले महीने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में समान नागरिक संहिता (UCC) की शुरूआत का समर्थन किया था, और साथ ही कई धार्मिक समुदायों से इसके खिलाफ जाने का आग्रह करने के लिये विपक्षी दलों की आलोचना की थी। हालाँकि यूसीसी अभी भी देश भर में बहस का एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

पीएम मोदी की ओर से समान नागरिक संहिता का समर्थन करने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड (All India Muslim Law Board) ने कहा कि वो यूसीसी का डटकर विरोध करेंगे, साथ ही राजनीतिक दलों ने जनता को असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश के लिये भाजपा की अगुवाई वाले केंद्र पर हमला बोला।

यूसीसी के इर्द-गिर्द बहस का मुख्य मुद्दा ये है कि इसमें कई धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों को बदलने और पलटने की क्षमता है, जो कि बड़े  पैमाने पर देश में विवाह-तलाक, गोद लेने, करों और सहमति की उम्र से जुड़ा हुआ हैं, जो कि भारत के सभी नागरिकों के लिये एक समान मिसाल कायम करेगा।

विवाह को लेकर सहमति की उम्र

शादी सहमति की उम्र पूरे देश में बहस का मुद्दा है, क्योंकि भारतीय वयस्कता आयु अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम (Child Marriage Prohibition Act) और POCSO अधिनियम के तहत 18 साल से कम उम्र का शख़्स शादी नहीं कर सकता है। हालाँकि हिंदू कानून के तहत 16 साल की लड़की 18 साल की लड़की से शादी कर सकती है, लेकिन शादी की ये उम्र अब गैरकानूनी है।

इस बीच मुस्लिम कानून के मुताबिक कोई शख्स युवावस्था में पहुंचने के बाद शादी कर सकता है। इसमें पुरुषों के लिये 15-16 साल की आयु और महिलाओं के लिये 10-12 साल की उम्र निर्धारित की गयी है। हालाँकि यूसीसी देश में सभी के लिये शादी की सहमति की उम्र 18 साल तक बढ़ा सकता है।

शादी और तलाक

नाजायज़ रिश्तों (Illegitimate Relationships) के आरोप में तलाक मांगना सभी धर्मों हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और पारसी में लगभग एक समान है। नाजायज़ रिश्तों की परिभाषा सभी धर्मों में अलग-अलग है। हिंदू कानून में पुरुष व्यभिचार का दावा कर सकता है, न कि एक महिला। ईसाई कानून में महिला को व्यभिचार के साथ-साथ विवाह में हिंसा भी साबित करनी होती है, जबकि मुस्लिम कानून में महिलाओं को ये साबित करना होता है कि व्यभिचार में पुरुष के साथ शामिल औरत बुरे चालचलन वाली औरत है।

तीन तलाक के मुद्दों से लेकर व्यभिचार (Fornication) की धाराओं तक ये विवाह और तलाक कानून यूसीसी के लागू होने पर सभी धर्मों में एक समान हो सकती हैं।

नाबालिगों में एबॉर्शन का खात्मा

बिना किसी धार्मिक मायनों के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (Medical Termination Of Pregnancy Act) कहता है कि किसी नाबालिग की गर्भावस्था को एबॉर्ट सिर्फ उसकी घरवालों की मंजूरी से ही किया जा सकता है। अगर लड़की शादीशुदा है तो उसका कानूनी अभिभावक उसका पति होता है। अगर देश में विवाह और तलाक कानूनों में बदलाव होता है तो विवाहित नाबालिगों की गर्भावस्था को खत्म करने के नियमों में भी कुछ बदलाव हो सकते हैं।

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