नई दिल्ली (निकुंजा राव): इंफेक्शन के बढ़ते खतरे के बीच निज़ामुद्दीन में हुए तबलीगी जमात के मरकज़ ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल मीडिया के तकरीबन सभी धड़ों पर कोरोना संक्रमण का सांप्रदायीकरण (communalization) करने का आरोप लगा है। समुदाय विशेष को घिरता देख, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। याचिका में दलील दी गई कि मीडिया रिपोर्टिंग में इंफेक्शन फैलने के लिए समुदाय विशेष को बड़ी वज़ह माना रहा है या यूं कहें कि इरादतन, खास ढंग से समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। भारतीय मीडिया एक खास वर्ग को बीमारी का ग्राफ बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार मान रही है। सुप्रीम कोर्ट को मामले में हस्तक्षेप करते हुए, इस तरह की रिपोर्टिंग तुरंत रूकवानी चाहिए।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दायर की गई याचिका पर संज्ञान लिया और कहा- हम मीडिया का मुंह बंद नहीं करवा सकते। लेकिन सुनवाई के लिए मामले को संज्ञान में लिया जा रहा है। फिलहाल के लिए कोई ऑर्डर पास नहीं किया जाएगा। लोग खुद ही समझ जाएंगे।
इसके साथ ही मामले की सुनवाई चार हफ्तों के लिए स्थगित कर दी गई। गौरतलब है कि दिल्ली में हुए मरकज के दौरान निज़ामुद्दीन में 3000 से ज़्यादा जमातियों की भीड़ इकट्ठा हुई थी। इस कार्यक्रम में कोरोना प्रभावित देशों से आए विदेशी लोगों ने भी हिस्सा लिया था।
जिस तरह से इंफेक्शन के आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसमें जमातियों का योगदान एकदम साफ तौर पर झलक लग रहा है। ऐसे में मामले की अगली सुनवाई का इंतजार रहेगा और देखने वाली बात ये होगी कि सुप्रीम कोर्ट मामले को लेकर किस तरह का रवैया अख़्तियार करेगा ?