नई दिल्ली (शौर्य यादव): INDIA vs BHARAT Controversy: ऐसी अटकलें तेज हो गयी हैं कि भारत सरकार आगामी विशेष संसदीय सत्र (Special Parliamentary Session) के दौरान देख का नाम बदलकर ‘भारत’ करने पर विचार कर रही है। जहां कांग्रेस (Congress) और विपक्ष इस विचार की आलोचना कर रहे हैं, वहीं भाजपा नेता इस बदलाव का समर्थन करते हैं। ऐसे में आइए ‘भारत’ शब्द की उत्पत्ति, ऐतिहासिक महत्व और व्युत्पत्ति के बारे में गहराई से जानें।
ऋग्वेद में ‘भारत’
ऋग्वेद (Rigveda) में राजा सुदास की ओर से शासित भरत जनजाति का जिक्र मिलता है। दस राजाओं का प्रसिद्ध ‘दाशराज्ञ’ युद्ध हुआ, जहाँ राजा सुदास के उन्नत सैन्य कौशल के चलते जीत हुई। लोगों ने खुद को भरत के रूप में पहचानना शुरू कर दिया और ये नाम उस समय से पड़ गया और भूमि का पर्याय बन गया।
‘भारत’ शब्द की व्युत्पत्ति
‘भारत’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत (Sanskrit) से हुई है, जो कि ‘भ्रु’ धातु से से बना है, जिसका अर्थ है प्रदान करना या सुरक्षा करना। ‘भ्राता’ (भाई) से ये ‘भारत’ में विकसित हुआ, जो कि एक ऐसी भूमि के बारे में है, जो पोषण, सुरक्षा और समर्थन मुहैया करवाती है, क्योंकि राजा भरत को भूमि और उसके लोगों के रक्षक के तौर पर जाना जाता था। इसके अलावा भारत’ की उत्पत्ति प्राकृत भाषा से हुई है, जो कि “भरद” या “भरह” से जुड़ा हुआ है, जो शिलालेखों और जैन अभिलेखों (Jain Inscriptions) में पाया जाता है।
महाभारत और पुराणों में ‘भारत’ को “भारतवर्ष” के तौर पर दर्शाया गया है, जो कि दक्षिणी महासागरों और हिमालय (Himalaya) के बीच एक भौगोलिक इलाका है, हालांकि राजनीतिक रूप से ये कई छोटे क्षेत्रों में बंटा हुआ था। ‘भारत’ शब्द प्राचीन है, जिसे जैन और हिंदू पौराणिक कथाओं में “भारत वर्ष” के नाम से भी देखा जाता है।
जैन धर्म के मतानुसार
जैन धर्म में ‘भारत’ प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (First Jain Tirthankar Lord Rishabhdev) के सबसे बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती से जुड़ा हुआ है, जो नाम के इतिहास में योगदान देता है।
राजा भरत
रानी शकुंतला और राजा दुष्यन्त के पुत्र राजा भरत एक कड़ी में अहम किरदार है, उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) को एकजुट किया और शासन किया, जिसका नाम उनके नाम पर “भारतवर्ष” रखा गया। उन्हें पांडवों और कौरवों का पूर्वज माना जाता है।
‘भारत’ शब्द में गहरी ऐतिहासिक और पौराणिक जड़ें हैं, जो इसे भारत की पहचान का अभिन्न हिस्सा बनाती है।