एंटरटेनमेंट डेस्क (शंशाक शेखर सिंह): दिग्गज़ अभिनेता इरफान खान (Actor Irrfan Khan) के निधन के बाद बॉलीवुड के काफी मायूसी छाई हुई है। ऐसे में कई करीबी लोग उनके साथ बिताये पलों को साझा कर रहे हैं। इस बीच जाने-माने स्क्रीनप्ले राइटर और निर्देशक वरदराज स्वामी भी उनके साथ बिताये हुए लम्हों को साझा कर रहे हैं। Trendy News Network से हुई खास बातचीत में उन्होनें इरफान से जुड़ी कुछ यादों को साझा किया।
निर्देशक वरदराज स्वामी ने कहा –
हमें ज़िन्दगी के इस पहलू से रूबरू होना चाहिए कि, कोई भी वक्त बुरा नहीं होता। जो भी अच्छे काम हमने अतीत में किये हैं उसका असर हमारे आज पर जरूर पड़ता है। लोग मानते हैं कि अच्छाई और बुराई के तराजू के बीच ज़िन्दगी अक्सर उनके मन-मुताबिक नहीं चलती। ऐसे लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि बुरे हालातों में घर के एक कोने में बैठकर वक्त को कोसने से अच्छा है कि काम करते रहे। बुरे वक्त का अच्छे से इस्तेमाल करके अपने काम को निखारते रहें। इससे हमारी ज़िन्दगी का बुरा वक्त निकल जायेगा।
साल 2004 में जनवरी के दौरान बोरीवली के नेशनल पार्क में चरस फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म के डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया थे, उनकी मदद के लिए मैं सैट पर मौजूद था। थिएटर करने के दौर से ही मैं इरफान खान का कायल था। इरफान के ड्रामा टीचर अलोक चटर्जी अक्सर उनकी एक्टिंग के किस्से मुझसे साझा किया करते थे। उनका एक्टिंग स्टाइल काफी गहराई से मेरे ज़हन में उतरता था। लंच ब्रेक के दौरान मैं अक्सर इरफान खान से बातें किया करता था और उनसे अनसुलझे सवालों के जवाब लेता था जो मेरे दिमाग में आया करते थे। अमूमन वो मेरे सवालों के ज़वाब लंच के दौरान ही दिया करते थे। हम दोनों शाकाहारी थे, इसलिए अक्सर साथ में ही खाना खाया करते थे।
एक दिन तिग्मांशु धूलिया (Tigmanshu Dhulia) फिल्म का एक सिक्वेंस शूट कर रहे थे। उस दिन तिग्मांशु खुद ही हाथों में कैमरा लेकर काफी गहराई से सिक्वेंस फिल्मा रहे थे। इस दौरान मैनें देखा कि इरफान भाई ने सिक्वेंस में एक भी रि-टेक नहीं लिया। उनका धैर्य देखकर मुझे काफी हैरानगी हुई। मैनें उनसे इसकी वज़ह जाननी चाही कि आखिर वो ये सब इतनी आसानी से कैसे कर लेते है। इरफान ने बेहद ही खूबसूरती के साथ जवाब दिया कि- सब कुछ तैयारियों के ऊपर है। फिल्मी सीन ज़िन्दगी की गहराइयों को कैद करते हैं। मुझे ये सब करना काफी पसन्द है। मैंने इरफान से कहा कि काफी लोग ऐसे हैं जो मेरे नज़रिये को नहीं समझते। मैं ये कतई नहीं कह रहा कि वो सभी लोग गलत हैं। पर बतौर कलाकार हम लोगों में कुव्वत है कि हम दूसरे लोगों को उनका नज़रिया समझा सकते हैं लेकिन सबसे पहले हमें खुद समझना होगा। हमें खुद के फायदे के लिए अपना नज़रिया दूसरों पर थोपना नहीं चाहिए।
एक दिन हम फिल्म सिटी में हॉस्पिटल का सीन शूट कर रहे थे। लंच के दौरान मैनें इरफान भाई से पूछा कि अगर डायरेक्टर बन गया तो क्या आप मेरी फिल्म में काम करेंगे। इतना सुनते ही उन्होनें पूछा कि- आप कौन सी फिल्म बनाना चाहते हैं। जवाब में मैंने कहा रवीन्द्रनाथ टैगोर पर या फिर खलील जिब्रान (Khalil Gibran) पर। इतना सुनते ही इरफान भाई खिलखिला कर हंस पड़े और कहा- माना कि मैं फिल्म कर भी लेता हूँ तो ऑडियन्स के नाम पर सिर्फ हम ही दो लोग होंगे। ये सुनते ही मैं भी काफी देर तक हंसता रहा। इस बीच उन्होंने काफी गंभीरता से कहा हमें इन दोनों के बीच लाइन खींचनी होगी। मैंने इरफान भाई से पूछा क्या आपके कहने का ये मतलब है कि कमर्शियल सिनेमा में ज़्यादा मनोरंजन होना चाहिए एक मज़बूत संदेश के साथ ? या फिल्म के मुद्दे ज़मीनी हकीकत के बेहद करीब होने चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास ऑडियंस की कमी नहीं है। दर्शक वही देखेंगे जो हम उन्हें दिखाएंगे। बशर्ते हमारे पास दिखाने की काबिलियत होनी चाहिए। उस दिन मुझे ताकत मिली और मैंने तय किया कि अब से मैं वही फिल्म करूंगा जो मुझे अपनी ओर खींचेगी।
इरफान भाई ने मुझे कई सलाह दी। जिन्हें मैं अब तक भूल नहीं पाया हूँ। मैं उन्हें बड़े भाई की तरह मानता हूँ। वो मुझसे काफी स्नेह करते थे। दरअसल सच्चाई ये है कि मांझी द माउंटमैन के लिए इरफान खान ही हमारी पहली पसन्द थे लेकिन बिज़ी शेड्यूल और कमिटमेंट्स के चलते इरफान फिल्म नहीं कर पाए। उनके साथ बिताया गया एक-एक लम्हा यादगार है।