नई दिल्ली (शौर्य यादव): चीन और भारत के बीच राजनयिक वार्ताएं (Diplomatic talks) नाकाम होती दिख रही है। वार्ताओं के लंबे दौर के बाद मामला दूर-दूर तक सुलझता नहीं दिखता। चीन (China) की ओर से लगातार सामरिक दबाव (Strategic pressure) बढ़ता जा रहा है। जिसकी वजह से भारत को भी एलएसी (LAC) पर सैनिकों की मिरर डेप्लॉयमेंट (Soldiers’ mirror deployment) करनी पड़ रही है। दोनों देशों की तनातनी के बीच चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास दो इलाकों पर अपना कब्जा (Land Encroachment) कर लिया। गौरतलब है कि साल 1993 के दौरान दोनों देशों ने आपसी सहमति से इस इलाके को सीमा विवाद से परे घोषित किया था। फिलहाल गलवान और हॉट स्प्रिंग (Galvan and Hot Spring) में हुए चीनी कब्जे से भारतीय पक्ष (Indian side) काफी हैरान है। जिसका सीधा कारण ये है कि, दोनों ही इलाके कभी सीमा विवाद के दायरे में रहे ही नहीं।
लंबी कूटनीतिक कवायदों के बाद 1993 के दौरान भारत चीन संयुक्त कार्य समूह (India China Joint Working Group) ने विवादित और गैर-विवादित क्षेत्रों को पहचान कर उनका दस्तावेजीकरण (Documentation) किया था। भारतीय सैन्य अधिकारी के मुताबिक- हाल ही चीनी सेना द्वारा कब्ज़ाये इलाके सीमा विवाद का हिस्सा नहीं थे। गैर विवादित इलाके में इस तरह की सैन्य अतिक्रमण कार्रवाई काफी चिंताजनक है। वायरस इन्फेक्शन (Virus infection) के चलते सैन्य अभ्यास कार्यक्रम में खासा रुकावटें आई, वरना भारतीय पक्ष बेहतर तरीके से जवाब देने में सक्षम होता।
साल 2015 के दौरान हॉट स्प्रिंग इलाके में चीनी सैनिक निर्माण कार्य से जुड़े साजो सामान लाकर काम कर रहे थे, इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (Indo-Tibetan Border Police) ने मामले में हस्तक्षेप कर निर्माण कार्यों को तुरंत रुकवाया साथ ही साजो सामान (Equipment) को भी ज़ब्त कर लिया था। बाद चीनी पक्ष द्वारा गलती मानने पर उन्हें उनका सामान लौटा दिया गया। भारत की ओर से सैनिकों की तैनाती और कूटनीतिक कोशिशें ही जारी है। मौजूदा गतिरोध में चीनी नेतृत्व (Chinese leadership) काफी आक्रामकता से काम करता दिख रहा है। इन हालातों में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) को सीधे तौर पर हस्तक्षेप करके चीनी हुक्मरानों को, ये सब करने से रोकना चाहिए। वरना दो एशियाई ताकतों (Asian forces) का सैन्य आमना-सामना हुआ तो, इसके परिणाम काफी गंभीर होगें। जिसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर होगा।